विचार
विचार एक ऊर्जा है, इनर्जी है, जो मनुष्य के अंत:करण में प्रकट होती है. जिस प्रकार मन के विकार से काम, क्रोध, लोभ आदि मनोवेग पैदा होते हैं, उसी प्रकार मन के विकार से विचार भी पैदा होता है.
आचार्य सुदर्शन |
अभी तक हम विचार को भाव समझते रहे हैं, जिसका कोई अर्थ नहीं माना जाता था. हम यही समझते थे कि हवा के झोकों की तरह कुछ बात मन में उठती है और सागर की लहर की तरह विलीन हो जाती है.
अब तक सागर की लहर को भी ऊर्जा नहीं माना जाता था, लेकिन अब यह बात सिद्ध हो चुकी है कि सागर की लहर में अपार ऊर्जा है, उसी से शरीर को स्वास्थ्य प्रदान करने वाली ऋणायन शक्ति भी पैदा होती है, उसी प्रकार हमारे मन में विचार की ऊर्जा पैदा होती है. अब स्पष्ट हो गया है कि विचार एक इनर्जी है. विचार मन का वेग है. जिस प्रकार काम, क्रोध के वेग से मनुष्य का व्यक्तित्व प्रभावित होता है, उसी प्रकार विचार के वेग से मनुष्य का संपूर्ण व्यक्तित्व प्रभावित होता है.
लेकिन हमें उसका अनुभव नहीं है क्योंकि ऐसी संवेदनशीलता अभी तक हमने पैदा नहीं की है. हमारा सेंस ऑर्गेन इतना संवेदनशील नहीं है कि विचार की उत्पत्ति के मूल उत्स को जान सके, इसलिए हमें पता नहीं चलता कि मन में विचार कहां से उत्पन्न होता है और कहां चला जाता है? विज्ञान अब पूरी तरह मानने लगा है कि विचार एक ऊर्जा है और बहुत ही शक्तिशाली ऊर्जा है. यह वेगवान भी है, इसका वेग इतना प्रबल है कि एक सेकेंड में पृथ्वी की तीन बार परिक्रमा कर ले. इसी से विचार के वेग का अंदाजा लगाया जा सकता है.
जिसमें इतना वेग हो वह किसी भी वस्तु को आसानी से प्रभावित कर सकता है. पदार्थ एक स्थूल वस्तु है और विचार एक अतिसूक्ष्यम ऊर्जा. इसीलिए वैज्ञानिकों का मानना है कि इसे अदृश्य और सूक्ष्म ऊर्जा से पदार्थ को आसानी से प्रभावित किया जा सकता है. हाल ही में रूस के वैज्ञानिकों ने प्रयोग करके सिद्ध कर दिया है कि विचार के परमाणु पदार्थ के परमाणु को आसानी से प्रभावित कर देते हैं.
विचार के परमाणु में वेग अधिक होता है और पदार्थ का परमाणु किसी स्थूल वस्तु में छिपा रहता है इसलिए उसमें वेग कम होता है. शायद इसीलिए आइंस्टीन ने कभी कहा था कि जो पदार्थ तुम देखते हो, वह तरंग है, ऊर्जा है, क्योंकि पदार्थ की अंतिम परिणति ऊर्जा है, क्योंकि पदार्थ से ही ऊर्जा बनती है और ऊर्जा से ही पदार्थ बनता है. पदार्थ ऊर्जा का ही घनीभूत रूप है. दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं.
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