सच्चा प्रेम

Last Updated 20 Feb 2017 04:54:19 AM IST

अगर तुम्हारे जीवन में परमात्मा का प्रेम घटित होता है, तो रूपांतरण हो सकता है. प्रेम तुम पिता से करो, मां से करो या परमात्मा से करो. प्रेम तो प्रेम है.


सुदर्शनजी महराज (फाइल फोटो)

तुम ठंडे पानी को पीकर अपना मन शांत करो या मरु भूमि में फेंक दो. इससे पानी को कोई अंतर नहीं पड़ता. पानी तो जहां जाएगा अपना वही काम करेगा. लेकिन एक बात स्पष्ट है कि प्रेम बाजारू चीज नहीं है. यह ईश्वर का प्रसाद है जो दो दिलों को जोड़ता है. यह आध्यात्मिक घटना है. यह संसार से ऊपर का भाव है.

ध्यान रखें जो व्यक्ति परमात्मा से प्रेम नहीं कर सकता, वह न पिता से प्रेम कर सकता है, न पत्नी से प्रेम कर सकता है और न अपने बच्चों से प्रेम कर सकता है. क्योंकि उसे प्रेम करना नहीं आता है. उसका संपूर्ण जीवन पदार्थमय हो गया है. उसकी प्रेम करने की दिशा बदल गई. तभी वह न खुद से प्रेम करता है और न किसी से प्रेम कर सकता है.

छोटा बच्चा खुद से प्रेम करता है. इसलिए अपना दुख मिटाने के लिए मां से प्रेम करने लगता है और धीरे-धीरे उसके प्रेम का फैलाव होने लगता है और उसके खुद का प्रेम, समाज,  देश और मानवता का प्रेम बन जाता है. पति और पत्नी दोनों दांपत्य मैत्री के प्रणय सूत्र में बंधे होते हैं. प्रणय का अर्थ प्रेम है और परिणय का अर्थ विवाह होता है. जब दो भिन्न लोगों  में प्रेम होता है तभी परिणय होता है.

दो अनजान आत्माओं के प्रणय सूत्र में बंध जाने के कारण दांपत्य जीवन प्रारंभ होता है. दोनों अग्नि को साक्षी मानकर शपथ लेते हैं कि आज से हम दोनों एक-दूसरे के पूरक हुए. आज तक हम अलग-अलग अपूर्ण थे, अब शरीर, मन, आत्मा और विचार से एक होने का संकल्प करते हैं. अग्नि, पुरोहित और पंचों के सामने एक-तान, एक-लय और एकात्म बनने की शपथ लेते हैं. पहले बालिका अलग थी, बालक अलग था. अब एक हो रहे हैं.



इसलिए स्त्री को अर्धागिनी कहते हैं. अब तो विज्ञान भी मानने लगा है कि पति-पत्नी के मिलन से संतान तभी उत्पन्न होती है, जब पूर्ण विद्युत का पूर्ण सर्विफल बनता है. शास्त्रों में कहा गया है कि पति और पत्नी का जीवन प्रेमसूत्रा में बंध होना चाहिए. तभी सुसंतान उत्पन्न होगी, उसके जीवन में भी प्रेम के फूल खिल सकेंगे. लेकिन दुर्भाग्य से अब पति-पत्नी के जीवन में प्रेम का अभाव होता दिख रहा है.

पता नहीं इस मनमुटाव के और कितने कारण हैं, लेकिन इसमें से एक कारण तो प्रमुख है कि पति और पत्नी का जो दांपत्य प्रेम था, वह इसलिए कम हो रहा है कि अब वे एक-दूसरे को अपना पूरक व अभिन्न भाग नहीं मानते हैं.

सुदर्शनजी महराज


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