सुख और दुख

Last Updated 21 Feb 2017 05:44:43 AM IST

मनुष्य के अनुभव में, प्रतीति में सुख और दुख दो अनुभूतियां हैं-गहरी से गहरी.


आचार्य रजनीश ओशो

अस्तित्व का जो अनुभव है, अगर हम नाम को छोड़ दें, तो या तो सुख की भांति होता है या दुख की भांति. नाम बिल्कुल छोड़ दें, तो सुख दुख का हिस्सा मालूम होगा और दुख सुख का.

लेकिन हम हर चीज को नाम देकर चलते हैं. मेरे भीतर सुख की प्रतीति हो रही हो, अगर मैं यह न कहूं कि यह सुख है, तो हर सुख की प्रतीति की अपनी पीड़ा होती है. हर सुख की प्रतीति की अपनी पीड़ा होती है. प्रेम की भी. सुख का भी अपना दंश है, अपनी चुभन है, अपना कांटा है-अगर नाम न दें. अगर नाम दे दें, तो हम सुख को अलग कर लेते हैं, दुख को अलग कर देते हैं.

फिर सुख में जो दुख होता है, उसे भुला देते हैं-मान कर कि वह सुख का हिस्सा नहीं है. और दुख में जो सुख होता है, उसे भुला देते हैं-मान कर कि वह दुख का हिस्सा नहीं. क्योंकि हमारे शब्द में दुख में सुख कहीं भी नहीं समाता; और हमारे शब्द सुख में दुख कहीं भी नहीं समाता. अनुभव में उतरें, तो प्रेम और घृणा में अंतर करना बहुत मुश्किल है. लेकिन जीवंत अनुभव में प्रवेश करें, तो घृणा प्रेम में बदल जाती है, प्रेम घृणा में. असल में, ऐसा कोई भी प्रेम नहीं है, जिसे हमने जाना है, जिसमें घृणा का हिस्सा मौजूद न रहता हो.

इसलिए जिसे भी हम प्रेम करते हैं, उसे हम घृणा भी करते हैं. अनुभव में उतरें, भीतर झांक कर देखें, तो जिसे हम प्रेम करते हैं, उसे हम घृणा भी करते हैं. जिसे घृणा करते हैं, उसे घृणा इसीलिए कर पाते हैं कि हम उसे प्रेम करते हैं; अन्यथा घृणा करना संभव न होगा. शत्रु से भी एक तरह की मित्रता होती है; एक तरह का लगाव होता है. अस्तित्व बहुत तरल और लिक्विड है; अपने से विपरीत को सदा भीतर लेता है. हमारे जन्म में मृत्यु नहीं समाती; लेकिन अस्तित्व में जन्म के साथ मृत्यु जुड़ी है. हमारी बीमारी में स्वास्थ्य के लिए कोई जगह नहीं.

लेकिन अस्तित्व में सिर्फ  स्वस्थ आदमी ही बीमार हो सकता है. आप स्वस्थ नहीं हैं, तो बीमार न हो सकेंगे. मरा हुआ आदमी बीमार नहीं होता. बीमार होने के लिए जिंदा होना जरूरी है, बीमार होने के लिए स्वस्थ होना जरूरी है. स्वास्थ्य के साथ ही बीमारी घटित हो सकती है. अगर आपको पता चलता है कि मैं बीमार हूं, तो इसीलिए कि आप स्वस्थ हैं. अन्यथा बीमारी का पता किसको चलेगा? कैसे चलेगा? मैं यह कह रहा हूं कि जहां अस्तित्व है, वहां हमारे विपरीत भेद गिर जाते हैं, और एक का ही विस्तार हो जाता है.



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