परमात्मा तत्व

Last Updated 23 Jan 2017 04:33:26 AM IST

यह ठीक है कि हमारे वैज्ञानिकों ने अवश्य कुछ ऐसे ईजाद किए हैं, जिनके सहारे हमारी औसत आयु बढ़ गई है या फिर हम भूकंप, महामारी और बीमारी से थोड़ा निजात पा सके हैं.


सुदर्शनजी महराज (फाइल फोटो)

लेकिन आज भी हमारा रहना या जाना बहुत हद तक हमारी प्रकृति या परमात्मा पर ही निर्भर है. हमारे मन में यह आशंका बनी रहती है कि वह परमात्मा कैसा है और वह कहां रहता है? जहां तक मैं समझता हूं कि इस प्रकृति की जो ऊर्जा या चेतना-शक्तिहै, वास्तव में वही परमात्मा है. वही एक चेतन तत्व है, जो इस संपूर्ण सृष्टि के चराचर को अपनी ऊर्जा प्रदान कर सौंदर्यपूर्ण और गतिशील बनाए रखता है.

मैं तो यहां तक मानता हूं कि नदी-नालों, झरनों-तालाबों और पत्थरों-पहाड़ों में भी यह चेतन तत्व या प्राण-ऊर्जा प्रवाहमान है. अगर ऐसा नहीं होता तो नदी-नालों में प्रवाह नहीं होता और झरनों में कल-कल ध्वनि भी मुखिरत नहीं हो पाती. बिना इस चेतना के पत्थर, भला चमकीले और शक्तिवर्धक कैसे हो सकते हैं और पहाड़ इतने अडिग और चिरस्थायी कैसे बने रह सकते हैं?

आपने देखा होगा कि हममें से अनेक लोग अपने सौभाग्यवर्धन और अन्य अनेक उद्देश्यों की पूर्ति के निमित्त अपनी उंगलियों में विभिन्न प्रकार के चमकीले पत्थर और रत्न धारण किए रहते हैं. बहुत से लोग इन रत्नों की मालाएं पहनते हैं. इसका अर्थ है कि इन निर्जीव से दिखने वाले पत्थरों में भी प्रकृति ने अपनी ऊर्जा और चेतना को प्रवाहित किया है.



आप ध्यान दीजिए कि हम अपने गांवों के आस-पास अक्सर ऐसी नदियां देखते हैं, जिनमें बरसात को छोड़कर अन्य दूसरी ऋतुओं में पानी बिल्कुल नहीं ठहरता. ऐसी नदियों के बारे में हमें अपने बड़े-बुजुर्गों से यह सुनने को मिलता है कि पहले इस नदी में सालों भर पानी भरा रहता था. किंतु अब यह मर चुकी है. लोग यह नहीं कहते कि नदी सूख गई है. इसका आशय यह हुआ कि उसमें पहले जीवन था, जो अब नहीं रहा.

यही कारण है कि हमारे शास्त्रों में इन निर्जीव पदार्थों और वस्तुओं के भी पूजन और आराधना का उल्लेख मिलता है. \'ऋग्वेद\' में तो सरस्वती नदी को देवी और मां कहकर भी संबोधित किया गया है. आज भी गंगा आदि नदियों की आराधना इसी भाव से किया करते हैं. तात्पर्य यह है कि प्राण-ऊर्जा प्रकृति के कण-कण में विद्यमान है, जिसका मुख्य स्रेत सूर्य और निहारिकाओं को माना जाता है. यही जीवन का उत्स भी है. 

 

सुदर्शनजी महराज


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