Ganga Dussehra 2023: जानिए गंगा के धरती पर आने की कहानी, धार्मिक महत्व और पूजनविधि
शास्त्रों के अनुसार ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को हस्त्र नक्षत्र में स्वर्ग से गंगा जी का आगमन हुआ था।
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हिंदु ग्रंथों की मान्यता के मुताबिक स्वर्ग लोक से ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी को सूर्यवंशी राजा भगीरथ ‘देवनदी गंगा' को पृथ्वी पर लाए थे। इस दिन को लोग गंगा दशहरा के रूप में मनाते हैं।
इस बार दशमी तिथि और हस्त्र नक्षत्र का योग 30 जून को होने के कारण गंगा दशहरा 30 जून को मनाया जायेगा। इस दिन किये गये स्नान दान से सभी पाप समाप्त होते हैं।
दस प्रकार के पापों को हरने के कारण ही गंगा दशमी को गंगा दशहरा कहा जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दान, व्रत करने से व्यक्ति के सभी पापकर्म समाप्त हो जाते हैं। यह दिन सम्वत्सर का मुख माना गया है। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि स्कंदपुराण, वाल्मीकि रामायण आदि ग्रंथों में मां गंगा के अवतरण की कथा का वर्णन है। आज ही के दिन महाराज भगीरथ के कठोर तप से प्रसन्न होकर स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगाजी आई थीं।
ऐसे करें मां गंगा का पूजन : पापमोचनी मां गंगा जी का स्नान एवं पूजन तो जब मिल जाये तब ही पुण्यदायक है। इस दिन गंगा स्नान करने के बाद मां गंगा का पूजन दूध, बताशा, जल, रोली, नारियल, धूप, दीप से करना चाहिए। इस दिन गंगा जी के साथ शिव, ब्रह्म, सूर्य, भगीरथ तथा हिमालय की प्रतिमा बनाकर विशेष पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
ये हैं दस पाप : बिना अनुमति के दूसरे की वस्तु लेना, हिंसा, परस्त्री गमन, कटु बोलना, झूठ बोलना, पीछे से किसी की बुराई अथवा चुगली करना, निष्प्रयोजन बातें करना, दूसरे की वस्तु को अन्यायपूर्ण ढंग से लेने का विचार करना। दूसरे के अनिष्ट का चिंतन करना। नास्तिक बुद्धि रखना।
मंत्र का करें जप : गंगा दशहरा पर श्रद्धालुओं को गंगा स्नान के बाद विधि-विधान से मां गंगा की पूजा करनी चाहिए। मां गंगा को पुप्पांजलि अर्पित करें। गंगा जी को पृवी पर अवितरित करने वाले भगीरथ जी व हिमालय का पूजन करें। तत्पश्चात ‘ओम नम: शिवाय नारायण्यै दशहरायै गंगायै नम:’ मंत्र का यथासम्भव जाप करना चाहिए। गंगा दशहरा की कथा सुनकर व्रत समाप्त करें। इससे सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
इसका दान करें : गंगा जी की पूजा आदि के पश्चात दस-दस मुठ्ठी अनाज एवं अन्य वस्तुएं दस ब्राह्मणों को दान करना चाहिए। इस दिन सत्तु का दान अति महत्वपूर्ण माना गया है। इसी के साथ जरूरतमंदों को सुराही, खरबूज, जल, फल, कपड़े, छतरी, जूते-चप्पल व अन्न आदि भी दान कर सकते हैं।
गंगावतरण की कथा :
कथानक है कि एक बार अयोध्या के सूर्यवंशी राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान किया। यज्ञ के अश्व की रक्षा के लिए उनके साठ हजार पुत्र उसके पीछे-पीछे चले। इंद्र ने ईर्ष्यावश यज्ञ के अश्व को पकड़वाकर कपिल मुनि के आश्रम में बंधवा दिया। सगर के पुत्र अश्व को सब जगह खोजते हुए जब अंत में कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे तो वहां घोड़े को देखकर क्रोधित होकर उनको बुरा-भला कहने लगे।
कपिल मुनि को इंद्र के षड्यंत्र का पता न था। इसलिए उन्हें क्रोध आ गया और उन्होंने शाप देकर राजकुमारों को भस्म कर दिया। कई दिन बीतने पर जब राजकुमार लौटकर नहीं आये तो राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को पता लगाने के लिए भेजा। उत्साही और कुशल अंशुमान ने घोड़े का पता लगाया और अपने परिजनों की दुर्दशा भी देखी। उसे यह भी ज्ञात हुआ कि भस्म हुए राजकुमारों का उद्धार तभी संभव है, जब स्वर्ग लोक से गंगाजी पृथ्वी पर आएं और उनका इन सबकी भस्म से स्पर्श कराया जाये।
तब भगवान श्रीहरि के वाहन गरुड़जी के परामर्श पर अंशुमान ने सर्वप्रथम अश्वमेघ का अश्व ले जाकर यज्ञ पूरा कराया और फिर अपने पितामह को पितरों की मुक्ति का मार्ग सुझाया। राजा ने वैसा ही किया, पर स्वर्ग से गंगाजी को लाना आसान न था। राजा सगर और अंशुमान ने कड़ी तपस्या की, किंतु सफल नहीं हुए। उसके बाद अंशुमान के पुत्र दिलीप गद्दी पर बैठे पर उनका प्रयास भी सफल न हो सका। अंत में राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ राजा हुए। अपने पितरों का उद्धार करने की इच्छा से वे मंत्रियों को राज्य भार सौंपकर गंगाजी को लाने के लिए गोकर्ण तीर्थ में जाकर तप करने लगे।
उनके कठोर तप ने देवताओं तक को विचलित कर दिया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी उनके पास गये और उनसे वरदान मांगने को कहा। भगीरथ ने उनसे गंगा को पृथ्वी पर भेजने की प्रार्थना की। इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि गंगाजी की वेगवती धारा को भूतल पर संभालने के लिए भगवान शिव को प्रसन्न करना होगा। राजा भगीरथ पुन: महादेव को प्रसन्न करने में जुट गये। शिव ने प्रसन्न होकर गंगा की वेगवती धारा को संभालने का दायित्व खुद पर ले लिया।
शंकरजी ने अपनी जटाओं में गंगा को रोका और बाद में एक जटा के अग्रभाग से गंगाजल की बूंद कैलाश के पास बिन्दु सरोवर में गिरा दी। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार बिन्दु सरोवर से गंगाजी की सात धाराएं निकलीं। इनमें तीन धाराएं हादिनी, पावनी और नलिनी पूर्व दिशा में, सुचक्षु, सीता और सिन्धु-ये तीन धाराएं पश्चिम की ओर निकल पड़ी तथा सातवीं धारा राजा भगीरथ के पीछे-पीछे उनके पूर्वजों के उद्धार के लिए चल पड़ीं। वह धारा भगीरथ के पीछे पीछे गंगा सागर संगम तक गई, जहां सगर-पुत्रों का उद्धार हुआ।
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