पाप-ताप की मुक्ति का रास्ता भागवत कथा

Last Updated 23 Feb 2019 12:58:01 PM IST

श्रीमद्भागवत महात्म्य में गोकर्णोपाख्यान और भक्ति के कष्ट निवारण के लिए कथा श्रवण मात्र से उद्धार बताया गया। श्रवण की महिमा ही इसका सार बताया गया है।


प्रयागराज के कुंभ दर्शन में हिन्दू संस्कृति के विविध रंग बिखरे पड़े हैं। मुक्ति और मोक्ष के कई रास्ते नजर आये पाप, ताप, संताप की कई विधाएं परम्पराओं के साथ बढ़ती रही। संतों, महंथों और धर्माचार्य के प्रति अनुराग की पराकाष्ठा नजर आयी। इनके श्रीमुख से निकली वाणी को गुरु मंत्र के रूप में आत्मसात किया गया।

वेदों और पुराणों की ऋचाओं और सूक्तियों पर विद्वान संतों की मतभिन्नता की खनक भी सुनायी पड़ी। पुण्य लाभ के लिए त्रिवेणी में गोता लगान वाला नजर आया। संतों के चरणरज माथे पर लगाकर धन्य होने वाली जमात देखी गयी। मां गंगा के दर्शन से त्रिविध ताप दूर करने की मान्यताएं रहीं, तो श्रीमद्भागवत कथा के श्रवण मात्र से समस्त पापों के नष्ट होने और उद्धार के दावे पर जन आस्था की पराकाष्ठा देखी गयी।

रेती के अध्यात्म प्रवाह में विभिन्न कथाओं और धार्मिक प्रवचनों का समावेश रहा। श्रीमद्भागवत कथा और राम कथा के मर्मज्ञ और विद्वान संत शास्त्रीय तर्का से जन कल्याण के मार्ग प्रशस्त कर रहे थे। कुंभनगर में श्रीमद्भागवत कथा पंडालों में भारी भीड़ उमड़ी रही। यहां दर्जनों पीठाधीर, आचार्य, महामंडलेश्वर धर्माचार्य और कथावाचक भागवत कथा के गूढ़ रहस्यों की परतें खोलते हुए कथा श्रवण के पुण्य लाभ की व्यापकता को परम अनुभूति बताकर परोसते रहे।

श्रीमद्भागवत कथा शुकदेव जी द्वारा परिक्षित के शापित होने पर सुनायी गयी थी। इस सात दिवसीय कथा में द्वादस अध्याय की जगह ग्यारह अध्याय की कथा समयाभाव के कारण सुनायी गयी थी। संत इस पर तर्क देते हैं, परीक्षित के जीवन के मात्र सात दिन शेष थे। कई संत शुकदेवजी के अनुयायी हैं और शास्त्रीय मान्यताओं के हिसाब से इसे सात दिन के तय समय में पूरा कर लेते हैं। कुछ संत और कथावाचक इसे दस दिन में पूरा करते हैं। इसमें भागवत महात्म के साथ प्रथम स्कंद की कथा के कारण समय अधिक जाया होता है।

कुंभ क्षेत्र में माघ मास पर्यन्त सैकड़ों शिविरां में श्रीमद्भागवत कथा भव्यता के साथ चल रही थी। इसमें मेले के सबसे भव्य पंडाल जो सेक्टर 14 में था, यहां कथा चल रही थी। जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी यहां कथावाचक रहे। मेले के हरिश्चन्द्र माथुर पर कृष्ण कुंज सेवा समिति ऋषिकेश के पंडाल में स्वामी कृष्णाचार्य की भागवतकथा में भारी भीड़ उमड़ रही थी। अंतरराष्ट्रीय कथावाचक का शिविर सेक्टर 13 के हषर्वर्धन मार्ग पर लगा था, यहां संगीतमय भागवत कथा का आनंद कथा प्रेमियों की भारी भीड़ नाचते-झूमते ले रही थी। इनके अतिरिक्त सेक्टर 15 में स्थायी वासुदेवानंद सरस्वती के पंडाल से विद्याभूषण की कथा चल रही थी। हरिचैतन्य ब्रह्माजी, मुरारी बापू रामकथा के साथ भागवत कथा, तांत्रिक रमेश ओझा सहित अनेकों पंडाल ऐसे रहे जो भागवत कथा के जरिये श्रद्धालु को सतचरित्र बनने, मंगलकारी आचरण करने आर ताप संत की मुक्ति सहित भवसागर पार करने की सीख दे रहे थे। श्रवण विधा से मोक्ष प्राप्ति का यह रास्ता भी दिव्य है, जिस पर वेद, पुराण और शास्त्रों की प्रमाणिकता चस्पा है।



श्रीमद्भागवत महात्म्य में गोकर्णोपाख्यान और भक्ति के कष्ट निवारण के लिए कथा श्रवण मात्र से उद्धार बताया गया। श्रवण की महिमा ही इसका सार बताया गया है। इसके प्रथम स्कंद में भक्ति योग का वर्णन किया गया है। परिक्षिक की कथा नही बल्कि इस नर संसार की है, जिसमें प्रत्येक जीव जुड़ता और प्रभावित होता है। इसमें दर्शाया गया है कि जीव को मात्र सात दिन में जन्म और मरण की व्यवस्था दी गयी। द्वितीय स्कंध में योग धारणा के द्वारा शरीर त्याग की विधि बतायी गयी है। तृतीय स्कंध में कपिल गीता के वर्णन के साथ भक्ति मर्म काल की महिमा का उल्लेख है।

देह-गेह में आसक्त पुरुषों की अधोगति और जीव की गति से मुक्ति के उपाय बताये गये हैं। चतुर्थ स्कंध में यदि भक्ति सच्ची है तो उम्र का बंधन नहीं होता। ध्रुव की कथा से प्रभावित किया गया है। पुरजनोपाख्यान में इंद्रियों की प्रबलता की व्याख्या है।

पंचम स्कंध में भरत चरित्र और हिरण के मोह में तीन जन्म गंवाने का वर्णन है। ‘भवाटव’ में इंद्रियों के वशीभूत लोगों की दुर्गति का व्याख्यान है। कर्म के हिसाब से नर्क की यातनाओं की जानकारी दी गयी है।

षष्टम् अध्याय में भगवान नाम की  महिमा की अजामिलोपाख्यान चर्चा के साथ नारायण कवच के बारे में बताया गया है। इसमें ‘पुंसवन विधि’ के संस्कार का वर्णन भी है।

सप्तम अध्याय में प्रह्लाद चरित्र के साथ मुसीबत में नारायण का नाम न छूटे, इस पर जोर है। मानव धर्म, वर्ण धर्म, स्त्री धर्म, ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ आश्रम के नियम पालन कैसे करें, इसकी चर्चा है।

श्रीमद्भागवत के अष्टम स्कंध में भक्त उद्धार के साथ ‘गजेन्द्र गाह कथा’ का वर्णन है। समुद्र मंथन, मोहिन अवतार, वामन अवतार के माध्यम से भगवान की भक्ति और लीला का वर्णन है।

नवम स्कंध में सूर्यवंश और चन्द्रवंश के वर्णन के साथ उन राजाओं का वर्णन है, जिनकी भक्ति पर भगवान ने उनके घर जन्म लिया है। दसवें स्कंध के पूर्वार्ध को भागवत का हृदय कहा गया। इसमें भगवान का अजन्मा बताया गया है। यहां कृष्ण के प्राकटय़ का विशद वर्णन है। इस स्कंध के उत्तरार्ध में भगवान का ऐय लीला है। यहां बांसुरी छोड़कर सुदर्शन चक्रधारण किया है।

एकादश स्कंध में यदुवंश को ऋषि श्राप से मुक्ति के उपाय बताये गये हैं। द्वादसवें अध्याय में कलियुग में दोषों से बचने के लिए नामसंकीर्तन उपाय बताये गये हैं। श्रीमद्भागवत का श्रवण सारे पाप का नाश करता है। अध्यात्म के इस रूप में रमने वाले श्रद्धालुओं की भारी संख्या देखी गयी।

 

शशिकांत तिवारी/ सहारा न्यूज ब्यूरो
प्रयागराज


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