पीपल देवतुल्य और पूज्य

Last Updated 20 Feb 2019 04:21:13 PM IST

प्रकृति के अनमोल खजाने में वैसे तो बहुत कुछ है, लेकिन सांसारिक व्यवस्था में देवतुल्य पीपल वृक्ष को उपयोगी और पूज्य बताया गया है।


पीपल देवतुल्य और पूज्य

प्रकृति अबूझ पहेली है। विज्ञान भी इसके रहस्य की परतों में उलझा पड़ा है। ग्रह, नक्षत्र, जड़, चेतन के ऊर्जा का स्रोत भी प्रकृति ही है। ग्रहों-नक्षत्रों की गणना के जिस संयोजन पर कुंभ का आयोजन होता है, वह प्रकृति प्रदत्त है। नभ, जल, थल की प्रत्येक दशा प्रकृति ग्राही है। प्रकृति के अनमोल खजाने में वैसे तो बहुत कुछ है, लेकिन सांसारिक व्यवस्था में देवतुल्य पीपल वृक्ष को उपयोगी और पूज्य बताया गया है। वैदिक और पौराणिक मान्यताएं ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम: ‘ की संस्कृति को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति का साधन बताती है। देववृक्ष पीपल के सात्विक प्रभाव से अंत: चेतना जागृत और प्रफुल्लित होती है।

पीपल को भगवान विष्णु का जीवंत और पूर्णत: मूर्तिमान स्वरूप बताया गया है। शास्त्रों में अभीष्ट साधक की संज्ञा दी गयी है। इसका आश्रय मानव के सभी पाप-ताप का शमन करता है। भगवान श्री कृष्ण ने पीपल के देवत्व और दिव्यत्व बताते हुए कहा- ‘अत्थ: सर्ववृक्षाणां।’ कहा वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूं। पीपल वृक्ष नहीं अपितु साक्षात देवता है। इसके मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, प्रत्येक पत्ते में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत का वास होता है। इसके दर्शन और पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होने की मान्यता है। अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद में इसके औषधीय गुणों को अनेक असाध्य रोगों में बेहद कारगर बताया गया है।

श्रीमद्भागवत में द्वापर युग के वर्णित प्रसंग में भगवान श्रीकृष्ण ने परधाम जाने से पूर्व योगेश्वर रूप में पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर साधना की थी। मान्यता है कि पीपल का वृक्ष लगाने से और उसकी सेवा से सभी दोष नष्ट होते हैं और मन को शान्ति प्राप्त होती है। सूर्योदय से पूर्व पीपल की परिक्रमा से अस्थमा रोग नियंत्रित होता है। इसके नीचे बैठकर ध्यान करने से ज्ञान वृद्धि के साथ मन सात्विक होता है। नदी के किनारे इसके वृक्ष लगाने से समस्त पापों के नष्ट होने की मान्यता है। प्रत्येक दिन तीन बार परिक्रमा से और जल चढ़ाने से दरिद्रता, दुख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित कर पूजा से व्यक्ति समस्त कष्टों से छुटकारा पाता है। दिन ढलने के साथ वृक्ष के पास दीपक जलाना शुभ माना जाता है।

अनुराधा नक्षत्र में शनिवार की अमावस्या को इसके पूजन से शनि प्रकोप से मुक्ति मिलती है। श्रावण मास में अमावस्या की समाप्ति पर शनिवार के दिन वृक्ष के नीचे हनुमान चालीसा पाठ से बड़े से बड़े संकट से मुक्ति की मान्यता है। इस ब्रह्म स्थान पर सायंकाल समय सरसों के तेल युक्त मिट्टी के दिये जलाना अधिक मंगलकारी माना गया है। ग्यारह नव निर्मित मंदिरों में शुभ मुहूर्त में पीपल वृक्ष लगाकर चालीस दिन तक सेवा की जाय तो उस व्यक्ति की अकाल मौत नहीं होती है। शास्त्रीय मान्यता है कि ऐसा करने पर उसकी पीढ़ियों में अकाल मौत नहीं होती। रास्ते में दिखने वाले पीपल को देव की तरह प्रणाम करने का प्रत्यक्ष फल मिलता है।

प्रकृति के खजाने का यह अनमोल रत्न 24 घंटे प्राण वायु देता है। पीपल एक ऐसा वृक्ष है जो दिन-रात आक्सीजन छोड़ता है। यह देवतुल्य वृक्ष अनंत काल से जीवन मूल्यों के साथ रचाबसा है।

ब्राह्मण के सबसे शक्तिशाली और क्रूर ग्रह शनि का प्रकोप मात्र पीपल की पूजा से शान्त किया जा सकता है।

पौराणिक मान्यताओं में कौशिक मुनि के दो बच्चों के त्रेता युग के प्रसंग से जोड़ा गया है। अकाल और दुभिक्षु से पीड़ित मुनि बच्चों के साथ रोटी की तलाश में निकलते है। एक बच्चा उनका रास्ते में छूट जाता है और पीपल वृक्ष के नीचे पलता बढ़ता है। पीपल के फल खाकर बड़ा होने वाला यह बच्चा अपने जप, तप, साधना से कालांतर से पिपलाद ऋषि के नाम से जाना गया। भगवान विष्णु से भक्ति और योग का वरदान पाकर पिपलाद ने शनि को अपने परिवार को खंडित करने का दोषी मानकर सजा दी थी। व्यथित शनि ने ऋषि पपलाद से क्षमा याचना की। पिपलाद ने शनि से कहा था, जो पीपल की पूजा, आराधना करेगा, उस पर आपकी कुदृष्टि का प्रभाव नहीं होगा। उसके बाद मान्यता है कि पीपल की पूजा से शनि प्रकोप से मुक्ति मिल जाती है।

 

सहारा न्यूज ब्यूरो
प्रयागराज


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