तेरी मिट्टी में मिल जावां, गुल बनके मैं खिल जावां... जवानों के जज्बातों को छू रहा ‘केसरी’ का गीत
आजकल सेना के किसी भी समारोह में एक सुरीली परंतु दिल को चीरने वाली धुन बजने लगी है, ‘तेरी मिट्टी में मिल जावां, गुल बनके मैं खिल जावां, तेरी नदियों में बह जावां, तेरे खेतों में लहरावां, इतनी सी है दिल की आरजू’।
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फिल्म केसरी का यह गीत सैनिकों की जुबान पर चढ़ गया है।
12 मई 1897 को सारागढ़ी में सिख रेजिमेंट और अफगानों के बीच लड़े गए युद्ध पर आधारित फिल्म केसरी में गीतकार मनोज मुंतशिर के गीत-‘ऐ मेरी जमीं, अफसोस नहीं, तेरे लिए 100 दर्द सहे’ ने हरेक सेना के पराक्रम को शब्द दे दिए हैं। बहुत दिनों बाद कोई देशप्रेम से ओतप्रोत कोई गीत लिखा गया है। जितने मनोभाव से गीत लिखा गया है, बंगाल के संगीतकार आरको प्रावो मुखर्जी ने उसी शिद्दत से धुन बनाई और पंजाबी संगीतकार बी प्राक ने भावों में डूबकर गीत को अमर कर दिया।
सेना के समारोह में शामिल एक कर्नल ने कहा, हमारे सर्विस की एक सच्चाई यह भी है कि हमें शहादत तक देनी होती है।
मनोज मुंतशिर का यह गीत अब सेना बैंड का थीम गीत बन गया है। यह गीत सैनिक भी गुनगुनाते हैं। क्योंकि इसके हरेक शब्द में जज्बात हैं- ‘सरसों से भरे खलिहान मेरे, जहां झूम के भंगड़ा पा न सका, आबाद रहे वो गांव मेरा, जहां मैं लौटकर आ न सका’ ओ मेरे वतन, ओ मेरे वतन. तेरा-प्यार निराला था, कुर्बान हुआ तेरी अस्मत पे, मैं कितना नसीबों वाला था’ ‘तलवारों पर सिर वार दिए, अंगारों पे जिस्म जलाया है’.।
बैंड जब इस गीत की धुन बजाता है तो समारोह में शामिल लोगों के शरीर में सिहरन सी फैल जाती है। चेहरे के भाव शून्य हो जाते हैं और आंखें नम हो जाती हैं। क्योंकि आए दिन खबर आती है कि सीमा पर बहादुरी से लड़ते हुए हमारे सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए।
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