भारतीय सिनेमा के सौ साल: कुछ दिलचस्प पहलू

Last Updated 05 May 2012 05:34:06 PM IST

भारतीय सिनेमा अपने 100वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है. इस दौरान सिने जगत से जुड़ी ढेरों दिलचस्प बातें रहीं.


पहला भारतीय सीरियल और सेंसरशिप

श्रीराम पाटनकर ने पहले भारतीय सीरियल ‘राम वनवास’ (एक्जाइल ऑफ श्रीराम) का निर्माण किया. यह सीरियल चार अलग-अलग भागों में बनाया गया था. 1918 में भारत में ब्रितानी एक्ट की तर्ज पर सेंसरशिप लागू की गयी. इसके द्वारा फिल्मों की सेंसरशिप और लाइसेंसिंग की व्यवस्था की गयी.

सामाजिक हास्य फिल्म

समाज में पाश्चात्य रहन-सहन और पाश्चात्य मूल्यों का पोषण करने वाले लोगों पर व्यंग्य करने वाली फिल्म ‘द इंग्लैंड रिटर्न’ का निर्माण धीरेन गांगुली ने किया. इसे पहली सामाजिक उपहास फिल्म का दर्जा दिया जाता है. फिल्म की कहानी विदेश से लंबे समय बाद लौटे भारतीय की कहानी थी, जो अपने ही देश में खुद को अजनबी महसूस करता है.

समाज सुधार वाली फिल्म

मराठी फिल्मकार बाबूराव पेंटर की फिल्म ‘सवकारी पाश’ में एक लालची जमींदार एक किसान को उसकी जमीन से बेदखल कर देता है. गरीबी से लड़ता यह परिवार शहर आकर मजदूरी करके अपना जीवन यापन करने की कोशिश करता है. इस फिल्म में मशहूर फिल्म निर्माता निर्देशक वी. शांताराम ने युवा किसान की भूमिका की थी.

देशी फिल्म कंपनियों और टॉकी फिल्म का आगमन

वी. शांताराम ने 1929 में कोल्हापुर में प्रभात कंपनी और चन्दूलाल शाह ने बम्बई में द रंजीत फिल्म कंपनी की स्थापना की. प्रभात फिल्म कंपनी ने अपने 27 बरसों के सफर में 45 फिल्मों का निर्माण किया. रंजीत स्टूडियो में सत्तर के दशक तक फिल्मों का निर्माण होता रहा. इसी साल हॉलीवुड से आयातित बोलती फिल्म ‘मेलोडी ऑफ लव’ का प्रदर्श न हुआ.

अंग्रेजी में बनी चुंबन दृश्य वाली फिल्म

हिमांशु राय की इंग्लैंड में पिक्चराइज ‘कर्मा’ में हिमांशु राय और देविका रानी मुख्य भूमिका में थीं. राजकुमार और राजकुमारी की इस प्रेमगाथा में जबर्दस्त चुंबन और आलिंगन के दृश्य थे. हिमांशु राय और देविका रानी के बीच चला चार मिनट लंबा चुम्बन आज भी कीर्तिमान है. यह चुंबन विनोद खन्ना और माधुरी दीक्षित पर फिल्म ‘दयावान’ में पिक्चराइज चुंबन से चार गुना ज्यादा लंबा है. चूंकि, तत्कालीन ब्रिटिश शासन में चुंबन, सेक्स, हिंसा आदि टैबू नहीं थे, इसलिए इसे सेंसर की रोक का सामना तो नहीं करना पड़ा. इसके बावजूद ‘कर्मा’ डिजास्टर फिल्मों में शुमार की जाती है.

पार्श्व गायन की शुरुआत

प्रारंभ में परदे पर नायक-नायिका अपने गीत खुद ही गाते थे. 1935 में नितिन बोस ने अपनी फिल्म ‘धूप छांव’ में पाश्र्व गायन की तकनीक इंट्रोड्यूज की. इस तकनीक ने परदे पर कभी नजर ना आने वाले पार्श्व गायकों-गायिकाओं को भी स्टार बना दिया. ध्वनि तकनीक के विस्तार के साथ ही इन्द्रसभा और देवी देवयानी जैसे गीत संगीत से भरपूर फिल्मों का निर्माण हुआ.

रंगीन हुई फिल्में और मिले अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार

फिल्मों के गूंगे चरित्रों को आवाज दिलाने वाले आर्देशिर ईरानी ने ही ‘किसान कन्या’ के तमाम किरदारों में रंग भरे. ‘किसान कन्या’ भारत में ही प्रोसेस की गयी पहली फिल्म थी. एक गरीब किसान और जमींदार की बेटी की इस रंगीन प्रेम कहानी को खास सफलता नहीं मिली. वास्तविकता तो यह थी कि उस दौर में रंगीन चित्रों को दर्शकों ने मान्यता नहीं दी. सोहराब मोदी की 1953 में रिलीज फिल्म ‘झांसी की रानी’ टेक्नीकलर में बनायी गयी पहली फिल्म थी. विष्णु गोविन्द दामले और शेख फत्तेलाल की फिल्म ‘संत तुकाराम’ ने वेनिस फिल्म महोत्सव में इंटरनेशनल एग्जिबिशन ऑफ सिनेमैटोग्राफिक आर्ट की श्रेणी में चुनी गयी तीन फिल्मों में स्थान पाया.

सबसे ज्यादा गीतों वाली फिल्में

मदन थियेटर द्वारा निर्मित भारत की दूसरी सवाक् फिल्म ‘शीरी फरहाद’ 30 मई 1931 को रिलीज हुई थी. इस फिल्म का निर्देशन जे. जे. मदन ने किया था. इस फिल्म में 18 गीत थे. सबसे ज्यादा 69 गीतों वाली फिल्म ‘इन्द्रसभा’ थी. इस फिल्म में मास्टर निसार, जहांआरा और कज्जन मुख्य भूमिका में थे.

पहला स्वप्न दृश्य और गीत

राजकपूर की 1951 में प्रदर्शित फिल्म ‘आवारा’ में नरगिस और राजकपूर पर स्वप्न दृश्य और गीत ‘घर आया मेरा परदेसी’ पिक्चराइज किया गया था. इस गीत के बाद राजकपूर इंडस्ट्री के शोमैन मान लिए गये.

फिल्म में पहला फ्लैशबैक

1934 में प्रदर्शित फिल्म ‘रूपलेखा’ में पहली बार फ्लैशबैक तकनीक का उपयोग किया गया था. पीसी बरुआ और जमुना मुख्य भूमिका में थे. बाद में बरुआ ने जमुना से शादी भी की थी. वह बरुआ की ‘देवदास’ में पारो भी बनीं.

पहली महिलाएं

दुर्गा बाई और उनकी बेटी कमलाबाई गोखले फिल्मों में कदम रखने वाली पहली महिलाएं थीं. उन्होंने दादा साहेब फाल्के की 1913 में रिलीज दूसरी फिल्म ‘मोहिनी भस्मासुर’ में एक साथ अभिनय किया था. सवाक् फिल्मों की पहली महिला रानी जुबैदा थीं. उन्होंने ‘आलम आरा’ से पहले 36 मूक फिल्मों में अभिनय किया था.

पहली सेंसर्ड फिल्म

1920 में रिलीज फिल्म ‘ऑर्फन्स ऑफ द स्टॉर्म’ भारत में सेंसरशिप लागू होने के बाद सेंसर होने वाली पहली फिल्म थी. इस फिल्म में गिश बहनें मुख्य भूमिका में थीं.

सत्तर एमएम की फिल्म

पाछी की 1967 में रिलीज फिल्म ‘एराउंड द र्वल्ड’ को सत्तर एमएम यानी 70 मिलीमीटर में बनी पहली फिल्म कहा जाता है परन्तु वास्तव में इस फिल्म को 35 एमएम में पिक्चराइज करने के बाद ब्लोअप तकनीक के जरिये 70 एमएम में बदला गया था. जैसा कि आजकल 2डी फिल्मों को 3डी में कन्वर्ट किया जा रहा है. भारत की 70 एमएम फॉम्रेट में बनी पहली फिल्म ‘शोले’ थी, जो 1975 में रिलीज हुई थी तथा इसे फोर-ट्रैक स्टीरियोफोनिक साउंड तकनीक में प्रदर्शित किया गया था.

लगातार तीन जुबली फिल्में देने वाला अभिनेता

अमोल पालेकर भारत के पहले ऐसे अभिनेता थे जिनकी डेब्यू फिल्म ने सिल्वर जुबली तो मनायी ही, उसके बाद उनकी प्रदर्शित दोनों फिल्मों ने भी जुबलियां मनायीं. अमोल पालेकर ने 1974 में ‘रजनीगंधा’ फिल्म से डेब्यू किया था. इसके बाद उनकी दो फिल्में 1975 में छोटी सी बात और 1976 में ‘चितचोर’ रिलीज हुई थी. इन तीनों फिल्मों ने मुंबई में सिल्वर जुबली मनायी.

प्रमुख स्टूडियो

भारतीय फिल्मों को 21वीं सदी में पहुंचाने में स्टूडियो सिस्टम का बड़ा योगदान रहा है. प्रमुख स्टूडियो ने फिल्म निर्माण को नयी दिशा दी. फिल्म निर्माण से लेकर अब तक के कुछ प्रमुख स्टूडियो में बॉम्बे टाकीज, एवीएम प्रोडक्शन्स, जैमिनी स्टूडियोज, गुरुदत्त मूवीज प्रा. लि., मिनर्वा थियेटर, मॉडर्न थियेटर्स, बीएन सरकार न्यू थियेटर्स, प्रभात फिल्म कंपनी, प्रसाद स्टूडियोज, मदन थियेटर, फिल्मिस्तान, फेमस स्टूडियोज, आरके स्टूडियोज तथा वर्तमान में चल रहे वॉय फिल्म्स, यूटीवी मोशन पिक्चर्स, रामोजी फिल्म सिटी, फिल्मसिटी मुंबई, महबूब स्टूडियो, बी4यू फिल्म्स, रंजित स्टूडियोज आदि उल्लेखनीय हैं.



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