भारत के भरोसे अमेरिका का ’पुनर्जागरण‘

Last Updated 24 Jan 2021 12:59:01 AM IST

अमेरिका के नये राष्ट्रपति जो बाइडेन की पहली स्पीच और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विदाई भाषण में यूं तो फर्क करने के ढेर सारे मसले मिल जाएंगे, लेकिन एक बड़ा अंतर है जो यकीनन इस तरह के अवसरों की खुर्दबीन से समीक्षा करने वालों की नजरों से बच नहीं पाया होगा।


भारत के भरोसे अमेरिका का ’पुनर्जागरण‘

जाते-जाते भी ट्रंप ने जहां अपने भाषण में प्रतिद्वंद्वी से दुश्मन बन चुके चीन को जमकर कोसा, वहीं बाइडेन ने अपनी स्पीच में चीन का एक बार भी नाम नहीं लिया। यह जिम्मेदारी उन्हीं दो शख्स ने संभाली, जिन्हें बाइडेन ने इस काम के लिए चुना है अमेरिका के नये रक्षा मंत्री जनरल लॉयड ऑस्टिन और विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकेन। इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि बाइडेन ने इतने महत्त्वपूर्ण अवसर पर चीन को नजरअंदाज किया, बल्कि यह नये प्रशासन की कार्यशैली में उस बदलाव का इशारा है, जिसे सत्ता बदलने के बाद बाइडेन अमेरिका की नई पहचान बनाना चाहते हैं।

लॉयड ऑस्टिन ने अमेरिका की ओर से चीन को क्या संदेश भेजा, उससे पहले यह जान लेना भी दिलचस्प होगा कि उनकी नियुक्ति के जरिए बाइडेन दुनिया को क्या संदेश देना चाह रहे हैं। लॉयड अमेरिका के रक्षा मंत्री का पद संभालने वाले पहले अफ्रीकी-अमेरिकी हैं, इस नाते वो उस पेंटागन के भी मुखिया बन गए हैं, जिसे अमेरिकी सुरक्षा की सबसे अभेद्य दीवार माना जाता है। यानी अगले चार साल के लिए अमेरिका उस अेत समुदाय से आए शख्स के हाथों में खुद को सुरक्षित महसूस करेगा, जो महज चार दिन पहले तक एक जुनूनी राष्ट्रवाद के छलावे में खुद अमेरिका का सबसे ज्यादा असुरक्षित समुदाय बन चुका था। हाल के दिनों में दो विचारधाराओं के विरोधाभास की इससे बेहतर मिसाल शायद ही देखी गई हो। एक और दिलचस्प बात यह भी है कि लॉयड को इतना महत्त्वपूर्ण ओहदा देने के लिए अमेरिका ने उस नियम को भी दरकिनार कर दिया, जिसके तहत सेना की वर्दी उतारने और सियासी चोला पहनने के बीच सात साल का फासला रखना जरूरी होता है। लॉयड केवल चार साल पहले अमेरिकी सेना में जनरल के पद से रिटायर हुए हैं।

बहरहाल अपनी नियुक्ति पर सीनेट की आखिरी मुहर से पहले ही जब लॉयड ने अमेरिका के भविष्य की कार्ययोजना पर बोलना शुरू किया तो डेमोक्रेट ही नहीं, रिपब्लिकन सांसद भी राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर अपनी चिंताएं साझा करने में पीछे नहीं रहे। यह एक तरह से उस बदलाव की स्वीकारोक्ति भी है, जिसे ट्रंप लगातार नकारते रहे। सांसदों की सबसे बड़ी चिंता अमेरिका के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुके चीन को लेकर दिखी, जिसके जवाब में लॉयड ने जो कुछ कहा, उससे आने वाले दिनों में चीन और अमेरिका के आपसी संबंध और दुनिया पर पड़ने जा रहे उसके असर का अंदाजा लगाया जा सकता है। लॉयड ऑस्टिन ने बिना लाग-लपेट किए यह माना कि चीन क्षेत्रीय प्रभुत्वकारी शक्ति तो पहले ही बन चुका था, अब वो दुनिया पर राज करने वाली ताकत बनना चाहता है। लॉयड ऑस्टिन ने दो और महत्त्वपूर्ण बातें कही। एक अमेरिका के संदर्भ में और दूसरी समूची दुनिया के लिए। पहली बात यह कि चीन उभार पर है, इसलिए वो ढलान की ओर जा रहे रूस से भी बड़ा खतरा बन चुका है, दूसरी यह कि चीन की डराने-धमकाने वाली आक्रामकता का सबको मिलकर मुकाबला करना होगा। नये विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकेन ने भी कहा कि चीन का सामना कमजोर स्थिति से नहीं, बल्कि मजबूती से ही किया जा सकता है। तो ट्रंप के चार साल के शासन के बाद दुनिया की नजर में अमेरिका की स्थिति कैसी है? दरअसल, अमेरिका जिस मजबूत स्थिति में आने की बात कर रहा है, उसे मौजूदा दौर में चीन अपना नैसर्गिक अधिकार मान कर चल रहा है।

कोविड-19 महामारी और दूसरी घरेलू दुारियों से लेकर कैपिटल हिल के घटनाक्रम ने घरेलू मोर्चे पर अमेरिका को कमजोर किया है। इसका कुछ असर बाहरी दुनिया से संबंधों पर भी दिखेगा, जहां चीन इंच-दर-इंच अपना दबदबा बढ़ाने में जुटा हुआ है। इसलिए इस समय दोनों देश ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है। एक छोटी-सी गलती भी इंडो-पैसिफिक जैसे क्षेत्र में बड़ी झड़प में बदल सकती है, जहां अपनी समुद्री ताकत को लगातार बढ़ाने में जुटे चीन से अमेरिका का बार-बार सामना हो रहा है। ट्रेड वार ने वैसे भी दोनों देशों के बीच तल्खी को बढ़ा रखा है। जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दे पर भी तब तक कोई तरक्की नहीं हो पाएगी, जब तक दुनिया की इन दो सबसे बड़ी ताकतों के बीच संबंध सामान्य नहीं हो जाते। ‘कमजोर’ अमेरिका तकनीकी ताकत, क्षेत्रीय दबदबे और मानवाधिकार जैसे मसलों पर चीन को वो ‘आक्रामकता’ दिखाने के लिए और प्रेरित कर सकता है, जिसका अंदेशा लॉयड ऑस्टिन ने जताया है। साफ तौर पर दुनिया उस दौर में जाती दिख रही है, जहां चीन अपनी मनमर्जी का दायरा और फैलाएगा और अमेरिका उस पर नाखुशी जताता रहेगा। बाइडेन प्रशासन घरेलू कमजोरियों से उबरने में जितना वक्त लगाएगा, चीन को खुद को और मजबूत करने के लिए उतना ही समय मिलता जाएगा। यह समीकरण बताता है कि डोनाल्ड ट्रंप जैसे मुखिया दरअसल अपने देश का ही नहीं, दुनिया का भी कितना बड़ा नुकसान कर सकते हैं। फिर सवाल उठता है कि अमेरिका अब क्या करेगा?

इसका जवाब बाइडेन के भाषण और उनके दोनों अहम मंत्रियों के बयानों से मिलता है  अमेरिका में लोकतंत्र की ‘पुनर्स्थापना’ और दुनिया भर में मित्र देशों और सहयोगियों के साथ गठबंधन को दोबारा मजबूत बनाना। खासकर एशिया में, जहां इंडो-पैसिफिक से लेकर मध्य-पूर्व तक चुनौतियों का अंबार लगा हुआ है। ऐसा नहीं है कि ट्रंप प्रशासन इस ‘कमजोर’ होती जा रही स्थिति से अनजान रहा, लेकिन वो शायद इससे निपटने की योजना बनाने से ज्यादा इस मोर्चे पर कुछ कर नहीं सका। हालांकि इस योजना में भारत एक अहम किरदार बनकर सामने आया है। ट्रंप प्रशासन की एक कथित गोपनीय रिपोर्ट सार्वजनिक होने से इस योजना का खुलासा हुआ है, जिससे पता चलता है कि अमेरिका अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति में चीन से मुकाबले के लिए भारत को आगे बढ़ाना चाहता है। कहा जा रहा है कि दस पन्ने की इस रिपोर्ट में चीन को लेकर चिंता दिखी है और उत्तरी कोरिया को लेकर भी वही नजरिया है।

रिपोर्ट में इस बात पर जोर है कि चीन से मुकाबला करने के लिए उदार अर्थव्यवस्था वाले देशों से गठजोड़ किया जाए। साथ ही दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन की ताकत को संतुलित करने के लिए भारत में सैन्य, खुफिया और राजनयिक समर्थन बढ़ाने को उच्च वरीयता देने पर जोर दिया गया है। इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद अमेरिका की भारत से हालिया नजदीकी और गलवान घाटी में तनाव के दौर में सैन्य मदद की उसकी पेशकश को अब इससे जोड़कर देखा जा रहा है। हालांकि भारत को इस ‘अनुमान’ से भी तब तक कोई दिक्कत नहीं है, जब तक अमेरिका हमारे आंतरिक मामलों में घुसपैठ न करे या ईरान जैसे देशों से हमारे द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करने की ट्रंप जैसी कोशिश न करे।

बहरहाल इस रिपोर्ट की गोपनीयता अब भंग हो चुकी है और इसे लेकर चीन की ओर से अमेरिका को संयम बरतने की नसीहत भी जारी हो गई है, लेकिन अमेरिका में घरेलू मोर्चे पर पसरी निराशा के बीच बाइडेन चाहें भी तो चीन को लेकर ‘ट्रंप प्रशासन की सख्त नीति’ को पलटने का जोखिम नहीं उठा सकते। चुनावी रैलियों में बाइडेन ने कम-से-कम दो मौकों पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनिपंग को ‘ठग’ कहा था, इसलिए अगर उनके दो सबसे खास मंत्री कामकाज शुरू करने से पहले ही दुनिया को ड्रैगन की साजिश से आगाह कर रहे हैं, तो इसमें किसी को हैरान नहीं होना चाहिए। आखिर इसमें कुछ स्वार्थ तो अमेरिका का भी है, जिसके हाथों से सुपरपावर का ताज बड़ी तेजी से फिसल रहा है।

उपेन्द्र राय


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