आपदा के बीच कितने अवसर लाएगा बजट?

Last Updated 30 Jan 2021 12:47:26 AM IST

बड़ी चुनौतियों के बीच हाथों की उंगलियों से ‘वी’ का निशान बनाने का आशय जीत का भरोसा जताने से जोड़ कर देखा जाता है। ऐतिहासिक तथ्य है कि दूसरे विश्व युद्ध में मित्र देशों की ओर से इसकी शुरुआत हुई। बीते आठ दशकों में मानवता के विस्तार के बीच ‘वी’ के इस निशान का अर्थ भी व्यापक हुआ है, खासकर अर्थव्यवस्था में जहां ‘वी’ आकार को एक मुश्किल दौर के बाद रिकवरी का सर्वश्रेष्ठ विकल्प माना जाता है।


आपदा के बीच कितने अवसर लाएगा बजट?

इस तरह की रिकवरी में मांग खुलती है, बड़े पैमाने पर वित्तीय और मौद्रिक राहत पैकेज जारी किए जाते हैं, कार्यस्थलों पर कामकाज सामान्य होने लगता है, बेरोजगारी में गिरावट आती है और अर्थव्यवस्था तेजी से फिर अपने पहले वाले स्तर तक पहुंच जाती है।

हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत की अर्थव्यवस्था में 11.5 फीसद की ग्रोथ का अनुमान लगाया है, और साल 2021 में इसे दहाई अंकों में बढ़ने वाली दुनिया की इकलौती इकोनॉमी माना है। पिछले कुछ दिनों से हमारी अर्थव्यवस्था के कई सेक्टरों में हो रही ‘वी’ शेप की रिकवरी के दावे को आईएमएफ के इस अनुमान से बड़ा आधार मिला है। खास बात यह है कि इस अनुमान ने सालाना बजट से पहले देश के मूड को बड़ा सकारात्मक कर दिया है। बड़े कारोबार वाली कंपनियों के बीच हुए एक सर्वे में 41 फीसद सीईओ ने आने वाले बजट को आर्थिक तरक्की के लिए मील का पत्थर साबित होने की भविष्यवाणी की है। खुद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसे 100 साल का सबसे अलग बजट बताते हुए भारत के वैश्विक ग्रोथ का इंजन बनने की बात कही है।

महत्त्वाकांक्षी दावा
कोरोना काल में जब एकाध देश को छोड़कर तमाम देशों की अर्थव्यवस्था हिचकोले खा रही है, तब इस तरह का दावा उम्मीद तो जगाता है, लेकिन महत्त्वाकांक्षी भी लगता है। हालात बेशक सुधार का इशारा कर रहे हैं, लेकिन यह भी हकीकत है कि देश अभी भी साल भर के आर्थिक संकुचन, कारोबारी शटडाउन और बड़े पैमाने पर हुई छंटनी से उबरने की प्रक्रिया में ही है। अभी भी ग्रोथ को तेजी, रोजगार के नये अवसर बनाने, घरेलू आय बढ़ाने और निवेश को प्रोत्साहित करने यानी सामान्य अर्थो में अर्थव्यवस्था की सेहत में आमूल-चूल बदलाव लाने के लिए व्यापक कोशिशों की जरूरत है। क्या बजट इसकी बुनियाद रखने का काम करेगा? इस सवाल का जवाब वित्त मंत्री की कही बात में तलाशें, तो इसके दो सिरे दिखते हैं। पहला, उन सेक्टरों को सहारा देना जो महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और दूसरा उन सेक्टरों को मजबूती देना जो न्यू इंडिया की नई डिमांड के नये केंद्र बनकर भविष्य में विकास के नए इंजन बनने की राह पर हैं।

यह आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिहाज से भी जरूरी होगा। दशक का पहला बजट इस अभियान के अस्तित्व में आने के बाद का भी पहला बजट है। पिछले साल इस अभियान की शुरु आत करते हुए सरकार ने कारोबारी माहौल सुधारने, बाजार में तरलता लाने, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूती देने, किसानों की आय बढ़ाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने और बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित करने के लक्ष्य तय किए थे। इसे हासिल करने के लिए स्टिमुलस पैकेज भी जारी किया, लेकिन देश की जरूरतें इतनी ज्यादा थीं कि उनके सामने 20 लाख करोड़ रुपये का भारी-भरकम पैकेज भी हल्का पड़ गया, जबकि यह राशि कई देशों के सालाना बजट से भी ज्यादा थी। सरकार ने उस समय बड़े स्तर पर गरीबों के खाते में डायरेक्ट कैश भी ट्रांसफर किया, लेकिन मांग बढ़ाने की यह तरकीब काम नहीं आई क्योंकि तब तक गरीब अपनी तमाम बचत खर्च कर चुका था और खाते में आए पैसे को उसने मुश्किल वक्त के लिए बचा कर रखने में ज्यादा समझदारी समझी। बहरहाल, अब बजट आत्म निर्भर भारत के सपने को आगे बढ़ाने का काम कर सकता है। इसके जरिए वित्त मंत्री इंफ्रास्ट्रक्चर, मैन्युफैक्चरिंग, कारोबार, निर्यात और रोजगार में नई संभावनाओं के द्वार खोलने का काम कर सकती हैं। रोजगार की गारंटी आय बढ़ाने का आधार बनाएगी, जिससे खपत का पहिया रफ्तार पकड़ेगा। मांग निकलेगी तो घरेलू कंपनियों के साथ-साथ एमएसएमई के दिन भी बदलेंगे। आत्मनिर्भर भारत के लिए एमएसएमई की मजबूती इसलिए भी जरूरी है कि यह कृषि के बाद रोजगार देने वाला दूसरा सबसे बड़ा सेक्टर है। लॉकडाउन के बाद घर लौटे प्रवासी मजदूर अभी तक काम पर वापस आने का हौसला नहीं जुटा पाए हैं। इन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर देने के लिहाज से भी कृषि और एमएसएमई की बड़ी भूमिका हो सकती है।

कृषि का महत्त्वपूर्ण योगदान
रोजगार के साथ ही देश की आत्मनिर्भरता में भी कृषि सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है। कोरोना के बाद के दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था को सबसे बड़ा संबल कृषि क्षेत्र से ही मिला है। नये कृषि कानूनों को लेकर कुछ राज्यों के किसान जिस तरह नाराज चल रहे हैं, उससे भी इस बार के बजट में कृषि सेक्टर में कुछ बड़ा देखने को जरूर मिल सकता है। जिस तरह सरकार अगले साल तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए संकल्पित है, उसे देखते हुए इस बार के बजट में आर्थिक मदद, सब्सिडी और कैश इन्सेंटिव का दायरा और राशि, दोनों का बढ़ाया जाना जरूरी होगा। नये कृषि कानूनों के संदर्भ में सरकार को मुनाफे वाली वैकल्पिक खेती और एमएसपी पर निर्भरता घटाने के लिए फसल विविधता के नये विकल्प पेश करने होंगे। वैकल्पिक फसलों पर इन्सेंटिव बढ़ने से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी की नाराजगी भी काफी हद तक दूर हो सकती है।

आर्थिक पैकेज
कृषि और मैन्युफैक्चरिंग के साथ ही सर्विस सेक्टर अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने का अच्छा विकल्प हो सकता था, लेकिन जीडीपी में 50 फीसद तक की हिस्सेदारी के स्तर पर पहुंचने के बाद इस सेक्टर में अब ज्यादा गुंजाइश की संभावना नहीं दिखती। ऐसे में अर्थव्यवस्था की सुस्ती को दूर करने के लिए खर्च बढ़ाने के विकल्प पर फिर लौटना पड़ सकता है। कई विशेषज्ञ तर्क देते दिखे हैं कि जब चालू खाता अपने निम्न स्तर पर है और विदेशी मुद्रा भंडार अपने उच्चतम स्तर पर, तो सरकार को राजकोषीय अनुशासन की ज्यादा परवाह न करते हुए एक और आर्थिक पैकेज के बारे में सोचना चाहिए। गरीबों और छोटे दुकानदारों की जेब में पैसा जाएगा, तो सबसे बड़ा फायदा ग्रामीण इकोनॉमी को होगा, जो आत्मनिर्भर भारत के लिए प्राणवायु का काम कर सकता है। वैसे भी आर्थिक नीति निर्माताओं की सोच दिखी है कि देश में कोरोना वैक्सीन की उपलब्धता, एक बड़े स्टिमुलस पैकेज की जरूरत को भी साथ लेकर आएगी। अब जब देश में वैक्सीनेशन कार्यक्रम शुरू हो चुका है, तो देखना होगा कि वित्त मंत्री इस जरूरत को बजट में कितना तवज्जो देती हैं?

वैसे भी इस बार बजट में एक हिस्सा कोरोना और उससे जुड़ी स्वास्थ्य जरूरतों के लिए सुरक्षित रखा जाएगा। इसलिए, एक सवाल यह भी उठ रहा है कि अगर नये आर्थिक पैकेज का ऐलान होता भी है, तो उसकी भरपाई के लिए सरकार कहीं टैक्स तो नहीं बढ़ा देगी? बजट में कोरोना सेस को लेकर चर्चा जोरों पर है भी, लेकिन आम सोच यही है कि जिस तरह शिक्षा सेस कामयाब हुआ है, वैसे ही कोरोना सेस देने में भी आम लोगों को दिक्कत नहीं आनी चाहिए। इसके समर्थन में दलील यही दी जा रही है कि इसे सामान्य टैक्स चुकाने की आपदा न समझ कर राष्ट्र निर्माण में योगदान का अवसर समझना चाहिए। ठीक उसी तरह जैसे कोरोना के संकट काल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने का नाम दिया। देखना होगा कि अब बजट इस नये नाम को देश की नई पहचान बनाने में कितना खरा उतरता है?

उपेन्द्र राय


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