बदल गया जम्मू-कश्मीर, लोकतंत्र की बेजोड़ तस्वीर

Last Updated 22 Aug 2020 12:15:56 AM IST

धरती की जन्नत की फिजा बदल गई है। धमाकों के शोर और इंसानी जिस्म से बहते खून से सुर्ख हो चुकी खूबसूरत वादियों की रौनक लौटने लगी है। अनुच्छेद 370 से आजाद होकर हिन्दुस्तान के साथ आत्मसात हुए जम्मू-कश्मीर में साल भर से ज्यादा का वक्त हो चला है।


बदल गया जम्मू-कश्मीर, लोकतंत्र की बेजोड़ तस्वीर

इस दरम्यान आतंकी हिंसा, पत्थरबाजी, आगजनी, बंद जैसी घटनाओं में अप्रत्याशित कमी आई है तो 4जी इंटरनेट को छोड़कर बाकी तमाम तरह के प्रतिबंध लगभग हट चुके हैं। हालांकि आतंकियों के सफाए की चुनौती अभी बनी हुई है, मगर इस बीच विकास की राह पर जम्मू-कश्मीर चल पड़ा है। हर क्षेत्र में बदलाव दिखने लगा है।

जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त से पहले के एक साल और बाद के एक साल को अगर लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल करने के नजरिये से देखें तो घड़ी की सुई घूम कर वहीं पहुंचती हुई नजर आ रही है। मगर, जम्मू-कश्मीर का मसला सिर्फ  लोकतंत्र की बहाली या राष्ट्रपति शासन तक सीमित नहीं है। जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के अलग-अलग क्षेत्रों में कश्मीर की दबंगई का मुद्दा भी रहा है जिस पर कभी बात नहीं हुई। सबसे बड़ा भौगोलिक क्षेत्र होकर लद्दाख और सबसे अधिक जनसंख्या वाला होकर जम्मू उपेक्षित रहा। कश्मीर की प्रभुत्ववादी प्रवृत्ति का साथ देने वाली देशी राजनीति और उसके विदेशी, आतंकी और धार्मिंक कनेक्शन ने पूरे जम्मू-कश्मीर प्रांत को एक समस्या बना दिया। सवाल यह है कि 5 अगस्त के बाद एक समस्या के तौर पर जम्मू-कश्मीर कितना सुलझा हुआ दिख रहा है?

जम्मू-कश्मीर को बीते एक साल के संदर्भ में देखें तो घड़ी की सुई ने अभी 30 डिग्री से 45 डिग्री तक की दूरी भी तय नहीं की है। मगर, जो दूरी तय हुई है वह बहुत बड़ी उपलब्धि है और ऐतिहासिक भी। इसी परिप्रेक्ष्य में जम्मू-कश्मीर में सामान्य स्थिति बहाल होने की उम्मीद जगती है। जो प्रतिबंध लगाए गए हैं, उनमें ढील की उम्मीद बनती है। ऐसे में सवाल है कि क्या जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू हो पाएगी?

जम्मू-कश्मीर को लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार मिले, इसमें कोई बाधा नजर नहीं आ रही है। सरकार मंशा दिखा रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संकेत दिया है कि परिसीमन की जारी प्रक्रिया के पूरा होते ही जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र को बहाल कर दिया जाएगा। उपराज्यपाल के तौर पर मनोज सिन्हा की नियुक्ति से इसके आसार बढ़ गए हैं। मनोज सिन्हा को राजनीतिक रूप से सुलझा हुआ, सबको साथ लेकर चलने वाला, शांत और गंभीर प्रकृति का साफ-सुथरी छवि वाला राजनीतिज्ञ माना जाता है।

बहुत संभव है कि जम्मू-कश्मीर में पहले स्थानीय निकायों के चुनाव हों। इससे लोकतांत्रिक तरीके से चुना हुआ नया नेतृत्व सामने आएगा। चुनाव में जनभागीदारी को सुनिश्चित करना जरूरी है। इसके लिए विकास की प्रक्रिया से आम लोगों को जोड़ना होगा। लोग तब जुड़ेंगे जब विकास हो और उस विकास में लोगों की भागीदारी हो। यह सोच जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, दोनों पर लागू होती है।

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटते ही सरकारी कर्मचारियों को सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि उन्हें 7वें वेतनमान का लाभ मिलने लगा। केंद्रीय कर्मचारियों की तरह एलटीसी, बच्चों की शिक्षा का भत्ता और हॉस्टल सब्सिडी जैसी सुविधाएं मिलने लगीं। पुलिसकर्मिंयों को भी कई भत्ते और राशन दिए गए हैं। कुछेक अन्य उपलब्धियों पर भी गौर करते हैं, जो सिर्फ  और सिर्फ  अनुच्छेद 370 के हटने की वजह से संभव हो सकीं-
पाकिस्तान से आए 20 हजार से ज्यादा शरणार्थियों को नागरिकता दी जा चुकी है। हर परिवार को 5.5 लाख की मदद भी।
10 हजार सफाई कर्मचारियों के पास अब वैध डोमिसाइल हैं और अब एक नागरिक के सभी अधिकार और सुविधाएं उन्हें प्राप्त हैं।
10 हजार नियुक्तियों की प्रक्रिया जम्मू-कश्मीर सरकार ने शुरू की है। 25 हजार अतिरिक्त नौकरियां आने वाली हैं। इनमें डॉक्टर से लेकर जूनियर पदों की रिक्तियां शामिल हैं।
नौकरियों में ऐसे लोगों को प्राथमिकता दी जा रही है जो विधवा हैं, या फिर ऐसे परिवार से हैं, जिसका कोई सदस्य सरकारी नौकरी में नहीं है। अस्थायी श्रमिकों के लिए 5 साल की छूट भी दी जा रही है।
पहाड़ी और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए क्रमश: 4 प्रतिशत और 10 प्रतिशत आरक्षण देने की भी घोषणा हो चुकी है। इससे 70 हजार परिवारों को फायदा होगा।

इतना अवश्य है कि बीते एक साल में जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान बेचैन रहा है। चीन ने भी खुलकर उसका साथ दिया है। लद्दाख में सीमा पर तनाव के बाद चीन थोड़ा और मुखर होकर पाकिस्तान के साथ खड़ा हो गया है। फिर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र या फिर इस्लामिक देशों में भी जम्मू-कश्मीर को लेकर कोई प्रस्ताव पास कराने में पाकिस्तान विफल रहा। हाल में यूएई ने जिस तरीके से पाकिस्तान से मुंह मोड़ा है वह पाकिस्तान को करारा तमाचा है। जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर यह दूरी बनी है। यह बात भारत के लिए महत्वपूर्ण है।

कश्मीर में अवाम को भड़काने की कोशिश भी सफल नहीं हो सकी। यहां तक कि पाक अधिकृत कश्मीर में भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की भड़काने की कार्रवाई परवान नहीं चढ़ सकी। बीते साल 2019 में 1 जनवरी से 15 जुलाई के बीच 188 आतंकी घटनाएं हुई थीं, जो इस साल इसी अवधि में 120 पर सिमट गई हैं। इस दौरान बीते साल 126 आतंकी मारे गए थे, इस साल 10 ज्यादा यानी 136 आतंकी मारे गए हैं। ग्रेनेड हमले 51 से घटकर 21 रह गए हैं। पत्थरबाजी की घटनाएं 2018 में इसी अवधि में 532 थीं, 2019 में 389 हुई और अब 102 रह गई हैं। इसके अलावा हिज्बुल कमांडर रियाज नाइकू, लश्कर आतंकी हैदर, जैश आतंकी कारी यासिर, अंसार गजावतुल और हिन्द का आतंकी बुरहान कोका मार गिराया गया है।

जम्मू-कश्मीर में कई मोचरे पर एक साथ काम करना पड़ा है। उपद्रवी ताकतों पर अंकुश रखना, विदेशी ताकत को हस्तक्षेप से रोके रखना, आतंकियों को देश और विदेश से मिल रही मदद रोकना और इन सबके बीच विकास के काम में गति बनाए रखना। हालांकि विकास कायरे की बहुत अधिक चर्चा देश और दुनिया में नहीं हुई है, फिर भी अगर उन पर एक नजर डालें तो सरकार की नीति-रणनीति साफ हो जाती है।
दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज चेनाब नदी पर बन रहा है।
दिसम्बर, 2022 तक कश्मीर के कई शहर ट्रेन से जुड़ जाएंगे। उधमपुर-कटरा सेक्शन, बनिहाल-क्वाजीगंद सेक्शन और क्वाजीगंद-बारामुला सेक्शन तैयार हो चुका है।
शाहपुर-कंडी में 5 दशक से लंबित बिजली और सिंचाई प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो चुका है। श्रीनगर और जम्मू के बीच मेट्रो रेल का काम भी प्रगति पर है।
बिजली के क्षेत्र में भी सुधार हुए हैं। विभाग को पांच स्वायत्त कॉरपोरेशन में बांट दिया गया है ताकि उपभोक्ताओं का अधिक ख्याल रखा जा सके और राजस्व भी बढ़े।
भूमि की रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया में सुधार के बाद जम्मू-कश्मीर को स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फी से 100 करोड़ से भी ज्यादा की अतिरिक्त कमाई हुई है।
अब नगर निगम 5 करोड़ तक के प्रोजेक्ट पर खुद निर्णय ले रहा है। उदाहरण के लिए पारदर्शी ई-टेंडरिंग को अनिवार्य कर दिया गया है।

केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में परंपरागत नीति पलट कर देशी राजनीति की परंपरा को तोड़ा है। संविधान की व्याख्या नए सिरे से कर डाली है जिस वजह से अनुच्छेद 370 का विलोपन संभव हो पाया। पाक अधिकृत कश्मीर समेत पूरे जम्मू-कश्मीर को देखने का नजरिया बदला है। जम्मू-कश्मीर को अल्पसंख्यक राज्य के रूप में देखा जाता था। बीजेपी सरकार ने अल्पसंख्यक राज्य के भीतर अल्पसंख्यकों की बेचैनी की ओर दुनिया का ध्यान दिलाया और उसे खत्म करने की कोशिश की। जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी ही राज करते रहे थे, फिर भी कश्मीरी खुद को पीड़ित के तौर पर पेश करते रहे। इस सोच को बदलने की पहल की गई है और सोच में इस बदलाव को देश का भरपूर साथ मिला है। जम्मू और लद्दाख की जनता भी खुश है। इन सबके बीच कश्मीर में जो बेचैनी है, उसे विकास का रास्ता ही शांत कर सकता है।

उपेन्द्र राय


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