कोरोना के खौफ से कब मिलेगी आजादी?

Last Updated 16 Aug 2020 12:02:57 AM IST

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हमारा देश आजादी के 74वें वर्ष में प्रवेश कर गया है। जश्न-ए-आजादी के सबसे बड़े गवाह लाल किले पर जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तिरंगा फहराया, तो दुनिया को हमारी बुनियाद के और मजबूत होने का अहसास हुआ।


कोरोना के खौफ से कब मिलेगी आजादी?

सालों-साल से इसी बुनियाद के दम पर हिन्दुस्तान लाल किले की प्राचीर से सफलता के आसमान में ऊंची उड़ान का पैगाम देता आया है। पैगाम इस बार भी वही था, बस अंदाज जरा हट कर था। इस बार देश ने कोरोना संकट के बीच आजादी की नई सुबह का स्वागत किया।

कोरोना के साये में मना यह स्वतंत्रता दिवस चिरस्मरणीय रहेगा। कई छोटी-बड़ी हस्तियों के साथ हजारों लोग कोरोना वायरस की चपेट में आने की वजह से इस समारोह का हिस्सा नहीं बन सके। आजाद भारत में ऐसा पहली बार हुआ है। और भी बहुत कुछ ऐसा है, जो इससे पहले न कभी देखा, न कभी सुना गया। पिछले स्वतंत्रता दिवस पर करोड़ों नौकरियां थी, एक साल बाद उनमें से कुछ करोड़ नौकरियां जा चुकी हैं। तब सैलरी में इंक्रीमेंट लगने की आस थी, आज कट लगने से कर्मचारी उदास हैं। तब कारोबार शबाब पर था, आज कारोबारी दबाव में हैं। आर्थिक गतिविधियां सुधरने को बेताब हैं, लेकिन कोरोना का ‘ताप’ भी बरकरार है। 74वें स्वाधीनता दिवस का सबसे बड़ा सवाल भी यही है, आखिर कब मिलेगी कोरोना के खौफ से आजादी? पहले कुछ आंकड़ें देख लें, फिर समस्या की जड़ को नये सिर से पकड़ें। भारत में 2 करोड़ 76 लाख से ज्यादा आबादी की कोविड-19 टेस्टिंग हो चुकी है। दैनिक टेस्टिंग साढ़े 8 लाख के आस-पास है। संक्रमण से ठीक हो जाने वालों की तादाद साढ़े 17 लाख के पार है यानी रिकवरी की दर 71 फीसद से ज्यादा है, लेकिन मृत्यु दर भी 1.95 फीसद है। आंकड़ों का ये जाल ना तो कोई राह दिखाता है, ना सुकून देता है। क्योंकि आम आदमी को जो एक गिनती समझ आती है, वो है उसके आसपास संक्रमित हो रहे लोगों की संख्या में रोज हो रहा इजाफा। यह आंकड़ा अब 60 हजार को पार कर चुका है। ठीक होने वालों की संख्या बीमारी को पछाड़ना तो दूर, संक्रमण के ग्राफ को समतल भी नहीं कर पा रही है। कोरोना की दस्तक के छह महीने बाद देश अब इस ग्राफ में ढलान का इंतजार ही कर रहा है।

सरकार हाथ खड़े कर चुकी है, राज्य सरकारें बेबस हैं। 21 दिन में कोरोना से लड़ाई जीतने का प्रण24 मार्च को लिया गया था, अब वो बात अब कहीं गुम हो गई है। 15 अगस्त को कोरोना की बढ़ती धारा 144वें दिन में प्रवेश कर गई। इस दौरान संक्रमितों के लिहाज से सात राज्य लखपति बन चुके हैं। महाराष्ट्र में आंकड़ा हाफ मिलियन है, तो तमिलनाडु में 3 लाख से ज्यादा। आंध्र और कर्नाटक में संक्रमण 2-2 लाख लोगों तक पहुंच चुका है। दिल्ली ने भी डेढ़ लाख की लकीर पार कर ली है, जबकि उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल उसे कड़ी टक्कर दे रहे हैं। एक लाख की दहलीज पर खड़े बिहार के साथ ही छह ऐसे दूसरे राज्य हैं, जहां कोरोना संक्रमण 50 हजार से आगे निकल गया है। सिक्किम और मिजोरम ही दो ऐसे राज्य बचे हैं, जहां कोरोना के मरीज अभी सैकड़ों में ही हैं। कोरोना से पीड़ित लाखों लोग और इसकी आशंका में जी रहे करोड़ों लोगों के लिए वैक्सीन आने तक दो गज की दूरी और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का प्रयास ही जीने का मूल मंत्र बना हुआ है। वैसे भारत में वैक्सीन बनाने की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। दूसरे और तीसरे चरण का क्लीनिकल ट्रायल होना बाकी है। फिलहाल ऑक्सफोर्ड यूनिर्वसटिी-एस्ट्रा जेनेका कोविड-19 की वैक्सीन कोवीशील्ड (COVISHIELD) के दूसरे और तीसरे चरण के ह्यूमन क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति दी गई है। दवा कंपनी ने भी उम्मीद जताई है कि 2020 के अंत तक वह पहले और दूसरे चरण का परीक्षण कर लेगी। लेकिन वैक्सीन फिर भी हमें इस साल नसीब नहीं होगी, क्योंकि इसका तीसरा ट्रायल अगले साल मार्च-अप्रैल में ही हो सकेगा।

बाकी दुनिया में रूस वैक्सीन बना लेने का दावा कर रहा है। उसकी स्पूतनिक वैक्सीन आ चुकी है, मगर इसकी 15 लाख खुराक बनने में भी एक साल का वक्त लग जाएगा। किसी को भी इस वैक्सीन के दूसरे और तीसरे ट्रायल की खबर नहीं लग सकी, इसलिए इसके परफॉम्रेस को लेकर दुनिया भर में अविास का माहौल है। इसके बावजूद भारत की इस पर भी नजर है, क्योंकि अगर यह सफल रहती है तो हमारे पास भी ऐसी वैक्सीन को बनाने की पर्याप्त क्षमता है। वैक्सीन की सबसे ज्यादा जरूरत तो अमेरिका को है, जहां सबसे ज्यादा 1 लाख 70 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। खुद की रिसर्च के अलावा अमेरिका ने जर्मनी की एक दवा कंपनी के साथ वैक्सीन बन जाने की स्थिति में उसकी सप्लाई में सर्वोच्च वरीयता का करार भी कर रखा है। अमेरिका, ब्राजील और मैक्सिको के अलावा भारत में भी कोरोना से मौत का आंकड़ा 50 हजार के आस-पास पहुंच चुका है। दुनिया में 11 देश ऐसे हैं, जहां यह आंकड़ा 50 हजार से कम, लेकिन 10 हजार से ज्यादा है। बत्तीस देशों में 10 हजार से कम, लेकिन एक हजार से ज्यादा मौत हुई है। इसी तरह 16 देशों में 500 से हजार के बीच कोरोना से मौत हुई है। 36 देश ऐसे हैं जहां मौत का आंकड़ा 100 से ज्यादा है मगर 500 से कम है। बगैर वैक्सीन के कोरोना से बचाव का जो रास्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बता रखा है वह है टेस्टिंग, ट्रेसिंग और ट्रीटमेंट। संख्या के नजरिए से भारत ने अब तक करीब 3 करोड़ की टेस्टिंग कर ली है फिर भी वह चीन के 9.04 करोड़, अमेरिका के 6.85 करोड़ और रूस के 3.1 करोड़ से कम है। भारत में प्रति 10 लाख लोगों पर महज 20,045 लोगों की टेस्टिंग हुई है। इस हिसाब से दुनिया में भारत का नम्बर 126वां है। हालांकि, रैपिड एंटीजेन टेस्ट शुरू होने के बाद टेस्टिंग की रफ्तार तेजी से बढ़ी भी है।

टेस्टिंग तेज हुई है, तो कोरोना के मामले भी तेजी से बढ़े हैं। रास्ता भी यही है। टेस्टिंग, ट्रेसिंग और ट्रीटमेंट के बगैर कोरोना को हराया नहीं जा सकता। कोरोना के कारण ही देश दुनिया के सबसे सख्त लॉकडाउन में गया। इस वजह से देश की आर्थिक गतिविधियां रु क गई। कोरोना काल में बेरोजगारी 27 फीसद तक पहुंच गई। करोड़ों लोगों की नौकरियां गई। जिनकी बच भी गई, उनकी सैलरी कट गई। इसने नौकरी-पेशा से लेकर स्वरोजगार करने वालों और दिहाड़ी मजदूरों तक का बजट बिगाड़ दिया है। IANS के सर्वे ने बताया है कि लॉकडाउन में 23.97 फीसद लोगों की नौकरी चली गई। काम छूटने के बाद लाखों प्रवासी मजदूरों को पैदल अपने घर की ओर रु ख करना पड़ा। इन सबके बावजूद अनलॉक शुरू हुआ और अब देश में इसका तीसरा चरण चल रहा है, लेकिन बाजार में रौनक नहीं लौट रही है तो वजह यही है कि कोरोना का खौफ कम होने का नाम नहीं ले रहा है। आजादी के जश्न के बीच यही प्रश्न सबको सता रहा है कोरोना के खौफ से कब मिलेगी आजादी?

उपेन्द्र राय


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