आत्मनिर्भरता की अंगड़ाई आजादी की दूसरी लड़ाई

Last Updated 15 Aug 2020 12:36:08 AM IST

आजादी का संसार कल्पनाओं की ही तरह अनंत होता है। इस मायने में यह विस्तार इतना व्यापक है कि हर शख्स के लिए इस एक शब्द का अर्थ अलग-अलग हो सकता है।


आत्मनिर्भरता की अंगड़ाई आजादी की दूसरी लड़ाई

एक देश के तौर पर भी आजादी से आशय केवल अंग्रेजों की दासता से मुक्ति तक सीमित रख कर नहीं देखा जा सकता। इसीलिए आजादी के अहसास के लिए खुली हवा में उड़ने की इच्छाशक्ति और तत्परता दोनों जरूरी है। इस दिशा में बीते 73 साल में कई प्रयास हुए हैं, जो बीतते समय के साथ-साथ और तेज होते गए हैं। भारत अब जिस तरह विगुरु  बनने की ओर कदम बढ़ा रहा है, उसमें आजादी के यथोचित अहसास वाली इच्छाशक्ति भी दिख रही है और तत्परता भी झलक रही है।

इस तारतम्य में सदी का दूसरा दशक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम हो चुका है। कई बड़े फैसले, इन फैसलों से जुड़े बड़े काम और इन कामों के युगांतरकारी परिणामों की धूम अगले कई दशक तक देश को प्रभावित करती रहेगी। खासकर सेवा और लोक कल्याण के लिए मोदी सरकार ने अभूतपूर्व काम किया है। जन धन खाते, आयुष्मान योजना, असंगठित मजदूरों को पेंशन, हर गांव-हर घर बिजली, सबको आवास, किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पहल, स्वच्छता अभियान, हर घर नल जैसे अनगिनत काम हैं, जिनमें आम लोगों की जरूरतें पूरी करने की पहल भी है और समाज में बदलाव का विजन भी है। इसी तरह राजनीतिक मोर्चे पर भी मोदी सरकार के फैसलों का असर लंबे समय तक रहने वाला है। तीन तलाक की ‘विदाई’ से क्या मुस्लिम समुदाय अछूता रह सकता है? क्या अनुच्छेद 370 खत्म होने से जम्मू-लद्दाख में महसूस हो रही आजादी भुलाई जा सकती है? कश्मीर भी अगर शांति की राह पर चला, तो वहां भी विकास के रास्ते स्वयं निकल आएंगे। इसी तरह राम मंदिर के निर्माण की लड़ाई को संपत्ति विवाद से लेकर आस्था के दावे में बदल देना मोदी सरकार का मास्ट्ररस्ट्रोक ही कहा जाएगा। इसकी परिणति राम मंदिर के शिलान्यास के तौर पर हुई है।

जन धन खाते खुलवाने की ‘दूरदृष्टि’
करीब 40 करोड़ आबादी के जनधन खाते खुलवाने की ‘दूरदृष्टि’ को देश ने कोरोना काल में अच्छी तरह समझ लिया है। आयुष्मान योजना के जरिए जिस तरह सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित की गई हैं, वो भी 50 करोड़ भारतीयों के लिए चमत्कार से कम नहीं है। प्रधानमंत्री श्रम योगी मान धन योजना के तहत 42 करोड़ से ज्यादा असंगठित मजदूरों को मिल रही पेंशन सामाजिक सुरक्षा की अद्भुत पहल है। हर गांव में बिजली पहुंचाने का काम भी इसी सरकार के कार्यकाल में पूरा हुआ है। जिस तरह सरकार ने 2014 से 2019 के बीच 1.25 करोड़ से अधिक घर बनाए हैं, उसे देखते हुए 2022 तक हाउसिंग फॉर ऑल का सपना भी तेज रफ्तार से सच होता दिख रहा है। किसानों के लिए सालाना 87 हजार करोड़ रुपये की योजना ने तो अन्नदाता के जीवन में बड़ा बदलाव ला ही दिया है।

रोजगार दुनिया का संकट है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। देश में व्यापक सुधार के लिए कृषि, उद्योग, आईटी जैसे क्षेत्रों समेत बुनियादी संरचना के क्षेत्र में जो बड़े कदम मोदी सरकार ने उठाए हैं, उनसे रोजगार की संभावनाएं बनी हैं। बेशक, कोरोनाकाल ने इन संभावनाओं को जबरदस्त चोट पहुंचाई है, फिर भी स्वरोजगार के लिए युवाओं को अपने पैरों पर खड़ा करने की नीति ने उम्मीद को जिंदा रखा है। कह सकते हैं कि संकट के इस दौर में जन-धन योजना वाली दूरदर्शिता मुद्रा लोन की पहचान भी बनी है।

गौर करने वाली बात है कि यह पहचान ऐसे समय में भी कायम रही है जब दुनिया भर में उद्योग-धंधे चौपट हुए हैं। कई कंपनियों ने खुद को दिवालिया घोषित किया है, तो कई इसका इंतजार कर रहे हैं। श्रमिकों की छंटनी, सैलरी में कमी तो आम बात है। अमेरिकी कंपनी ब्रुक्स ब्रदर्स दिवालिया हो चुकी है जिसके बनाए कपड़े 40 राष्ट्रपति पहन चुके हैं। अब्राहम लिंकन भी हत्या के वक्त इसी कंपनी के कपड़े पहने हुए थे। जे क्रू,  नीमैन मार्कस, जेसी पेनी जैसी नामचीन अमेरिकी रीटेल कंपनियां दिवालिया हो चुकी हैं, लेकिन विक्टोरिया सीक्रेट ने जब खुद को दिवालिया घोषित किया, तो दुनिया ने दांतों तले उंगलियां दबा लीं। जारा, स्टारबक्स, चैनल, हर्मिंज, रॉलेक्स, रेनो, नाइकी, स्विगी जैसे इंटरनेशनल ब्रांड भी बड़े पैमाने पर अपना कारोबार समेटने के लिए मजबूर हुए हैं। साफ है कि बाजार में मांग नहीं है। मांग नहीं है तो बाजार गुलजार नहीं हैं। लिहाजा, उत्पादन ठप हुआ जा रहा है और रोज का खर्च निकालना दूभर हो गया है। 12 साल की मेहनत केवल 6 हफ्तों में बर्बाद हो गई-हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में बड़ी दखल रखने वाले एयरबीएनबी के सीईओ ब्रायन चेस्की का यह बयान कमोबेश समूचे कारोबारी जगत की कहानी है।

तेज रिकवरी
सीआईआई का एक सीईओ सर्वे बताता है कि 52 फीसदी नौकरियां खत्म हो गई हैं। हालांकि अनलॉक के दौर में बेरोजगारी में कमी आई है। अप्रैल-मई में जहां 23.2 फीसदी के स्तर पर बेरोजगारी पहुंच चुकी थी, वहीं जून में यह 11 फीसदी के स्तर पर आ गई। इतनी तेज रिकवरी के पीछे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत की सोच और 20 लाख करोड़ रुपये के कोरोना पैकेज का प्रभाव माना जा रहा है।

हालांकि इस सबके बावजूद अर्थव्यवस्था का सिकुड़ना आने वाले कुछ समय के लिए चुनौती बना रहेगा। माना जा रहा है कि जीडीपी नकारात्मक 4 से 5 फीसदी हो सकती है। चीन के साथ तनाव के बीच इस अवसर को भारत व्यापार संतुलन की चिंता से जोड़ने में जुटा है। इसका असर तत्काल अर्थव्यवस्था पर होगा, लेकिन भारत आत्मनिर्भर होने की ओर कदम बढ़ाएगा, यह भी तय है। भारत के लिए विदेशी व्यापार में चीन से कारोबार 10.1 फीसदी है जबकि चीन के लिए विदेशी व्यापार में भारत से कारोबार महज 2.1 फीसदी है। ऐसे में यह कारोबार पूरी तरह से खत्म करना दोनों में किसी देश के हित में नहीं है, लेकिन ऐप पर प्रतिबंध की दो-दो घोषणाएं और कई क्षेत्रों से चीनी कंपनियों के हाथ से काम छीन लेने जैसे फैसले भी हो रहे हैं। भारत के लिए जरूरी है कि चीन पर अपनी निर्भरता को कम करते हुए उसकी भरपाई आत्मनिर्भरता से करे। प्रधानमंत्री मोदी ने इसी दिशा में देश को आगे बढ़ाने का फैसला कर लिया है।

घरेलू मोर्चे के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भी भारत बड़ा बदलाव देख रहा है। प्रधानमंत्री के तौर पर सबसे ज्यादा विदेश यात्रा नरेन्द्र मोदी ने की है। इसका असर सुरक्षा परिषद में भारत के लिए उठ रही आवाज में दिखा है। अनुच्छेद 370 हटाने के मसले पर भारत विरोधी कोई प्रस्ताव अंतरराष्ट्रीय पटल पर ला पाने में  पाकिस्तान नाकाम रहा। पाकिस्तान के आतंकी संगठनों और आतंकियों पर वैिक प्रतिबंध लगाने में मिली सफलता भी भारत के लिए बड़ी कामयाबी रही। गलवान घाटी में चीन से संघर्ष के बाद किसी भी देश ने खुलकर चीन का साथ नहीं दिया तो यह भी भारतीय विदेश नीति की सफलता है।

व्यक्तिगत तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए यह बड़ी उपलब्धि है कि अमेरिकी राष्ट्रपति हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रंप जैसे कार्यक्रम में शरीक हुए। गणतंत्र दिवस पर मेहमान बनने से डोनाल्ड ट्रंप के इनकार के बाद इन आयोजनों का महत्त्व और बढ़ जाता है। इसका महत्त्व इसलिए भी ज्यादा है कि कभी यही अमेरिका नरेन्द्र मोदी को वीजा देने से इनकार किया करता था। कोरोनाकाल में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के लिए जिस तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति अधीर हो रहे थे, तब मदद का हाथ बढ़ाकर पीएम मोदी ने देश की साख बढ़ाई थी। कोरोनाकाल में सार्क देशों के बीच वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग हो या भारत की पहल पर दुनिया के प्रमुख देशों के प्रमुखों के बीच बातचीत-नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भारत ने नेतृत्वकारी भूमिका निभाई।

प्रधानमंत्री की यही भूमिका देश के भविष्य से जुड़े करोड़ों देशवासियों के भरोसे को नई मजबूती दे रही है। साल 2024 तक अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाना, साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करना, अगले चार साल में घर-घर पीने का पानी पहुंचाना, रक्षा और मैन्युफैक्चरिंग में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य साधना, नई नीति से भारत को शिक्षा का ग्लोबल हब बनाने का ऐलान इसी भरोसे की ऊंची छलांग है।

उपेन्द्र राय


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