आर-पार की लड़ाई के लिए दुनिया तैयार!

Last Updated 09 Aug 2020 12:03:12 AM IST

लेबनान की राजधानी बेरुत में ‘परमाणु बम’ जैसे धमाकों की धुंध बेशक अभी साफ न हुई हो, लेकिन इन धमाकों ने दुनिया को एक साफ संकेत जरूर दे दिया है।


आर-पार की लड़ाई के लिए दुनिया तैयार!

यह संकेत दुनिया भर में चल रही टकराहट से आने वाली तबाही की आहट का है। बेरुत धमाके की जांच अभी जारी है, लेकिन नतीजे से पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे ‘आतंकी’ हमला बता दिया। हालांकि इस अनुमान के समर्थन में ट्रंप अब तक कोई तर्क या सबूत पेश नहीं कर पाए हैं, लेकिन अपने स्वभाव के विपरीत वो अब तक अपने इस बयान से पलटे भी नहीं हैं। खास बात यह है कि लेबनान के राष्ट्रपति ने भी रॉकेट या बम से हमले की संभावना से इनकार नहीं किया है।

माना जा रहा है कि ‘बाहरी दखल’ की बात कह कर लेबनान ने अपने पड़ोसी इजरायल को मुजरिम साबित करने की कोशिश की है, लेकिन सऊदी अरब की मीडिया का खुलासा खुद लेबनान को कटघरे में खड़ा कर रहा है। इसके मुताबिक बेरु त के धमाके आतंकी समूह हिजबुल्लाह के हथियारों के गोदाम में हुए हैं। दरअसल, हिजबुल्लाह कंगाल हो रहे लेबनान की सत्ता भी है और सेना भी। बरसों से हिजबुल्लाह के लड़ाके इजरायल के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। कुछ दिन पहले ही इजरायल ने दावा किया था कि हिजबुल्लाह को ईरान से एक लाख से भी ज्यादा रॉकेट और मिसाइलें मिली हैं, जिनके दम पर उसने बेरुत में कम-से-कम 28 मिसाइल बेस बनाए हुए हैं। इजरायल इन मिसाइल बेस को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है और कई बार लेबनान को चेता चुका था कि अगर हिजबुल्लाह ने कोई भी गलत हरकत की तो वो इन ठिकानों को नेस्तानाबूद कर देगा। ऐसे वक्त में बेरु त में धमाके होने से दोनों संभावनाओं के दरवाजे खुले गए हैं। यह लेबनान की खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा दुस्साहस भी हो सकता है, जिसका इशारा सऊदी मीडिया कर रहा है या फिर इजरायल का साजिशन हमला भी हो सकता है, जिसका अंदेशा ट्रंप समेत लेबनान के राष्ट्रपति भी जता रहे हैं। सवाल इस बात का भी है कि हजारों टन का यह विस्फोटक पदार्थ बेरुत ही क्यों लाया गया? क्या इसकी सप्लाई सीरियाई विद्रोहियों को की जानी थी या फिर बेरु त में ही रखकर इसका इस्तेमाल आतंकी हमलों के लिए किया जाना था? वजह जो भी हो, मकसद दुनिया की शांति खतरे में डालना ही है। लेकिन इस धमाके को केवल लेबनान-सीरिया और इजरायल तक सीमित नहीं रखा जा सकता, व्यापक तौर पर यह घटनाक्रम समूचे मिडिल ईस्ट की चिंताजनक पहचान है।

आलम यह है कि मिडिल ईस्ट में कुल 18 देश हैं और आज यह सब एक-दूसरे के दुश्मन बने हुए हैं। उस पर तुर्रा यह है इन देशों के बीच शांति बहाल होने की भी दूर-दूर तक कोई उम्मीद नहीं दिखती। इजरायल को ईरान पसंद नहीं है, इराक को सीरिया नापंसद है, तुर्की-सीरिया में तनातनी है, इजरायल-तुर्की में भी अनबन है, फिलीस्तीन-इजरायल की दुश्मनी जग-जाहरि है तो कुवैत-इराक में भी नफरत का रिश्ता है। ओमान, जॉर्डन और लेबनान समान रूप से आतंकवाद के शिकार हैं और फिर भी एक-दूसरे की आंखों की किरकिरी बने हुए हैं। जिस धमाके ने बेरु त को तहस-नहस कर दिया वो 2700 टन अमोनियम नाइट्रेट का नतीजा था। इजरायल ने अपने हेफा बंदरगाह पर ऐसा ही 1200 टन अमोनियम नाइट्रेट स्टॉक कर रखा है। विस्फोटक हथियारों का इस तरह का जखीरा दुनिया की शांति के लिए बड़ा खतरा है और यह खतरा मिडिल ईस्ट में जगह-जगह पसरा है। इस गिनती में ईरान को कैसे भूल सकते हैं, जो अपने परमाणु कार्यक्रम के कारण आज दुनिया के लिए उत्तर कोरिया से कम खतरनाक नहीं है। ईरान इस मामले में भी बदनाम है कि वो हिजबुल्लाह को हथियारों की सप्लाई कर उसके जरिए दुनिया भर में आतंक का पैगाम भेजता है। हिजबुल्लाह के ईरान कनेक्शन और लेबनान में उसकी ताकतवर मौजूदगी को अमेरिका अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के लिए खतरा समझता है। इसी लिए उसने जॉर्ज बुश के जमाने की 13 साल पुरानी नीति दोबारा जिंदा करते हुए पिछले सप्ताह ही लेबनान के संदर्भ में एक साल की नेशनल इमरजेंसी लागू कर दी है। यह अजीबोगरीब संयोग है कि जो देश दुनिया और खासकर अमेरिका के लिए खतरा बन जाता है, वो चीन की नजरों में नगीना हो जाता है। उत्तरी कोरिया की ही तरह ईरान भी आजकल चीन की आंखों का तारा बना हुआ है। चीन ने ईरान में निवेश, सुरक्षा और मिलिट्री ट्रेनिंग के साथ-साथ हथियारों की टेक्नोलॉजी के विकास और खुफिया जानकारी साझा करने को लेकर बड़ा समझौता किया है। चीन इसमें अपने दो फायदे देख रहा है। पहला अपनी विस्तारवादी दखल को बढ़ाने के लिए उसे मिडिल ईस्ट जैसा क्षेत्र और ईरान जैसा देश मिल रहा है। दूसरा इस कदम से वो ईरान को आर्थिक प्रतिबंधों में जकड़ने की अमेरिका की योजना को पलीता लगा रहा है। ऐसे वक्त में जब मिडिल ईस्ट में तनाव अपने चरम पर है, तब अमेरिका और चीन की मौजूदगी वहां आग में घी डालने का ही काम कर रही है।

दरअसल, भूमध्य सागर यानी एशिया की पश्चिमी समुद्री सीमा, जो कई मिडिल ईस्ट देशों का किनारा भी है, वहां चल रहे तनाव को अलगाव में नहीं देखा जा सकता। इसके तार एशिया के पूर्वी समुद्री इलाके यानी भूमध्य सागर के दूसरी ओर स्थित प्रशांत महासागर में चल रहे अमेरिका और चीन के झगड़े से भी जुड़ते हैं, जिसका एक हिस्सा दक्षिण चीन सागर भी है। हालांकि यह सागर सात देशों से घिरा हुआ है, लेकिन चीन इस पर अपना एकछत्र राज जमाना चाहता है, जिससे अब वहां भी जंग के हालात बन गए हैं। चीन ने यहां हाल में जोरदार युद्धाभ्यास किया है, जिसमें उसके सुखोई विमान 10 घंटे तक आसमान से रहे। पिछले महीने ही चीन के लड़ाकू विमानों ने रात में लंबी दूरी तक बम बरसाने का अभ्यास किया था। माना जा रहा है कि यह सारी तैयारी दक्षिण चीन सागर में तैनात अमेरिकी बेड़े को निशाना बनाने की है। इसके साथ ही ताइवान पर कब्जा जमाने के लिए उसने युद्धाभ्यास के नाम पर हजारों सैनिक उतार दिए हैं, जिसके जवाब में ताइवान ने भी अपने मरीन कमांडोज की एक कंपनी तैनात कर दी है। यानी  दक्षिण चीन सागर में अमेरिका के बाद अब ताइवान भी चीन के आमने-सामने आ गया है। खेमेबाजी साफ है  एक तरफ अमेरिका है जिसे चीन, उत्तरी कोरिया, ईरान, पाकिस्तान और तुर्की जैसे देश फूटी आंख नहीं सुहाते हैं, तो दूसरी तरफ चीन है जो अमेरिका ही नहीं भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और ताइवान समेत पूरी दुनिया के लिए खतरा बन चुका है। चीन के खिलाफ एकजुट होने की ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री की गुहार का संदर्भ इसी खतरे से जुड़ता है। इस खतरे को लेकर दुनिया भारत की ओर भी बड़ी उम्मीद से देख रही है। पिछले आधे दशक में जिस तरह दुनिया में भारत का प्रभुत्व बढ़ा है, उसके बाद कई देश भारत से इस तनाव को दूर करने की गुहार लगाते रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भारत ने इस दिशा में कई सार्थक पहल भी की हैं, लेकिन चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों की पीठ पर वार करने की नीति ने भारत को भी अपनी सुरक्षा पर गंभीरता से विचार करने के लिए मजबूर किया है। मोदी सरकार बेहद मजबूती से यह संदेश स्थापित करने में कामयाब हुई है कि बुद्ध का देश विरोधियों को सबक सिखाने के लिए युद्ध करने से भी पीछे नहीं हटेगा। ऐसे हालात में जब सुलह-सफाई का दौर बीत चुका है, तब तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत का अंदेशा बहुत पुरानी बात लगने लगा है। हकीकत यह है कि युद्ध शुरू हो चुका है। दुनिया बारूद के ढेर पर बैठी है, बेरु त जैसी घटनाएं युद्ध का वार्म अप हैं, रीयल एक्शन के लिए शायद एक बड़े धमाके का इंतजार है।

उपेन्द्र राय


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