हार्ट डे : दिल से दोस्ती जरूरी है

Last Updated 29 Sep 2025 03:19:32 PM IST

मनुष्य का हृदय केवल शरीर के भीतर रक्त पंप करने वाली मशीन भर नहीं है, बल्कि जीवन का आधार और अस्तित्व की धड़कन है। जब यही धड़कन संकट में पड़ने लगती है तो संपूर्ण जीवन व्यवस्था असंतुलित हो उठती है।


हार्ट डे : दिल से दोस्ती जरूरी है

हाल में काउजेज ऑफडेथ इन इंडिया: 2021-23-शीषर्क से जारी रिपोर्ट ने एक बार फिर हमें सोचने पर विवश कर दिया है कि आधुनिक जीवन की चमक-दमक और सुविधा-संपन्नता के बीच कहीं न कहीं हम अपने हृदय को खतरे में डाल रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण हृदय संबंधी बीमारियां हैं, जिनसे 31 प्रतिशत लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं। 

पहले कहा जाता था कि बुढ़ापे की दहलीज पर पहुंचने के बाद दिल धोखा देता है, लेकिन ताजा आंकड़े बताते हैं कि अब 30 वर्ष से ऊपर के लोगों में ही यह मृत्यु का सबसे बड़ा कारण बन चुका है अर्थात अब हृदय रोग केवल वृद्धावस्था की बीमारी नहीं रह गई, बल्कि युवाओं और मध्यम आयु वर्ग के लिए भी उतनी ही घातक सिद्ध हो रही है। स्थिति इसलिए भी चिंताजनक है कि भारत की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा युवाओं का  है, और यही वर्ग हृदय रोग की चपेट में आने लगे तो न केवल परिवार, बल्कि समाज और राष्ट्र का भविष्य भी प्रभावित होगा।

हृदय रोग की बढ़ती भयावहता को समझने के लिए हमें जीवनशैली में आए बदलावों पर नजर डालनी होगी। आधुनिक जीवन ने हमें आराम, गति और साधन तो दिए हैं, किंतु साथ ही शारीरिक श्रम से दूरी, असंतुलित खानपान, मानसिक तनाव और अनुशासनहीन दिनचर्या जैसी आदतों को भी जन्म दिया है। एक ओर फैक्टरियां, दफ्तर और तकनीक ने जीवन को आसान बनाया तो दूसरी ओर शरीर की मशीनरी को निष्क्रिय भी कर दिया। घंटों तक कुर्सी पर बैठे रहना, फास्ट फूड और जंक फूड का सेवन, मीठे-नमकीन और तैलीय पदाथरे की अधिकता, धूम्रपान और मद्यपान जैसी आदतें हृदय को धीरे-धीरे कमजोर करती रहती हैं। 

यह भी ध्यान देने की बात है कि कोविड-19 महामारी ने इस संकट को और गहरा किया। लंबे समय तक घरों में कैद रहना, शारीरिक गतिविधियों की कमी और मानसिक तनाव ने हृदय संबंधी रोगों के मामलों को और बढ़ा दिया। हालांकि कोविड का सीधा कारण हृदय रोग नहीं था, किंतु महामारी के दौरान उत्पन्न जीवनशैली के परिणामस्वरूप फैली निष्क्रियता ने हृदय को अतिरिक्त खतरे में डाल दिया। अधिक नमक, चीनी और वसा का सेवन, व्यायाम की कमी और मानसिक दबाव-सभी हृदय पर बोझ डालते हैं। नतीजा  होता है कि रक्तचाप बढ़ने लगता है, धमनियां संकुचित हो जाती हैं, और हृदय की धड़कनें असामान्य हो जाती हैं। 

समय रहते ध्यान न दिया जाए तो स्थिति दिल के दौरे, हार्ट फेलियर या स्ट्रोक का रूप ले लेती है। रिपोर्ट बताती है कि   भारत में हर तीसरी मौत हृदय की बीमारी से हो रही है। यह आंकड़ा झकझोरने वाला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी मोटापे और हृदय रोग के बढ़ते संकट को रेड सिग्नल मानते हुए इन्हें नियंत्रित करने का आह्वान किया है। मोटापा वास्तव में हृदय रोग की जड़ है। शरीर का वजन बढ़ता है, तो सीधा असर हृदय पर पड़ता है। उच्च रक्तचाप, मधुमेह और कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियां मोटापे के साथ-साथ चलती हैं, और सभी मिलकर हृदय की सेहत बिगाड़ देती हैं।

इस समस्या का समाधान केवल दवाओं से संभव नहीं है। इसके लिए जन-जागरूकता, जीवनशैली में बदलाव और सामाजिक स्तर पर सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। हृदय रोग केवल व्यक्तिगत संकट नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय उत्पादकता और विकास से भी जुड़ा प्रश्न है। जब कार्यशील आयु वर्ग के लोग समय से पहले बीमार पड़ने लगें या असमय मृत्यु को प्राप्त हों, तो सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। परिवारों की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है। इसीलिए हृदय रोग के खिलाफ लड़ाई केवल चिकित्सीय लड़ाई नहीं, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय संघर्ष है।

समय की मांग है कि हम दिल की आवाज सुनें, उसकी धड़कनों को सुरक्षित रखें और उसे खतरे से बचाने के लिए ठोस कदम उठाएं। खानपान में सादगी, जीवन में अनुशासन, मन में संतुलन और समाज में जागरूकता-यही इस संकट के वास्तविक समाधान हैं। यदि हम इन बिंदुओं पर गंभीरता से काम करें तो हृदय रोग के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।  दिल का खतरे में होना केवल चिकित्सा का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह हमारे पूरे जीवन-तंत्र की असंतुलितता का प्रतीक है।

आधुनिकता की दौड़ में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जीवन की असली सफलता स्वास्थ्य में निहित है। यदि दिल स्वस्थ है, तभी जीवन सुखी है, और तभी राष्ट्र समृद्ध है। इसलिए अब देर किए बिना हमें हृदय स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी वरना दिन दूर नहीं जब विकास की चमक के बीच हमारी धड़कनें ही मद्धिम पड़ जाएंगी।

नृपेन्द्र अभिषेक नृप


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