बिहार में महिलान्मुखी नीतियां : बदलाव की बह रही बयार
बिहार अपनी बदली आबोहवा में नये प्रयोगों के जरिए नई पहचान बना रहा है।
![]() बिहार में महिलान्मुखी नीतियां : बदलाव की बह रही बयार |
पिछले पंद्रह वर्षो के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शासन में महिलाओं को केंद्र में रखकर ऐसी अनेक योजनाएं बनी जिसने इस सूबे की स्त्री हितैषी तस्वीर खींची, चाहे स्कूली लड़कियों को साइकिल देने की बात हो या शराबबंदी या अब मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना। इन सबमें कहीं-न-कहीं राज्य की एक कल्याणकारी तस्वीर प्रतिबिंबित होती रही। इसने सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के लिए बदनाम इस राज्य की तस्वीर बदल दी है।
आज स्थिति यह है कि यह महिलाओं के सशक्तिकरण के क्षेत्र में मिसाल बन रहा है। इसका श्रेय निश्चित रूप से सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दूरदर्शी नीतियों और उसके क्रियान्वयन को जाता है। साल 2005 से लेकर अब तक सरकार ने महिलाओं के प्रति किए अपने वादे के प्रति कटिबद्धता दिखाई है। महिलाओं को शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और राजनीतिक भागीदारी के क्षेत्र में मजबूत बनाने के इनके एजेंडे को भले ही शुरुआती दौर में थोड़ी आलोचनाएं झेलनी पड़ी हो, लेकिन धीरे ही सही अब वादे फलित हो रही है। यदि गहराई से इसकी पड़ताल करें तो सरकार की मौजूदा योजनाएं न केवल महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता सुनिश्चित कर रही है, बल्कि सामाजिक न्याय और लिंग समानता को भी बढ़ावा देती दिखती है। आधी आबादी की सलाहियत और हित को ध्यान में रखते हुए ‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ जैसी पहल इस दिशा में एक नया अध्याय जोड़ रही हैं।
महिलाओं की प्रगति और विकास के लिहाज से इन योजनाओं की सिरे से पड़ताल भी जरूरी है। खासतौर से शिक्षा के क्षेत्र में इन योजनाओं से क्रांतिकारी बदलाव लाया है। ‘मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना’ को एक ज्वलंत उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है। इस योजना की शुरु आत साल 2006 में तब हुई, जब सूबे में लड़कियों की स्कूल ड्रॉपआउट दर बहुत अधिक थी। योजना के तहत, कक्षा 9 में प्रवेश करने वाली हर लड़की को मुफ्त साइकिल प्रदान की गई, ताकि वे दूर-दराज के स्कूलों तक आसानी से पहुंच सकें। इसका परिणाम यह हुआ कि लड़कियों की नामांकन दर में 30 फीसद से अधिक की वृद्धि हुई। आज, लाखों लड़कियां इस योजना से लाभान्वित हो रही हैं।
इसी क्रम में, ‘मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना’ 2018 में शुरू की गई, जो लड़कियों को जन्म से स्नातक स्तर तक वित्तीय सहायता प्रदान करती है। योजना के अंतर्गत, जन्म पर दो हजार रु पये कक्षा एक से बारह तक विभिन्न राशियां, और स्नातक पर पच्चीस हजार रुपये दिए जाते हैं। इस योजना से अब तक करोड़ों रुपये वितरित हो चुके हैं, जिससे लड़कियों की शिक्षा दर में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। सरकार ने महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता पर भी विशेष ध्यान दिया है। ‘जीविका’ (बिहार ग्रामीण आजीविका परियोजना) इसे साल 2007 में विश्व बैंक की सहायता से शुरू किया गया था जो महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से सशक्त बनाती है। इसका उद्देश्य गरीब ग्रामीण महिलाओं को वित्तीय सहायता, कौशल विकास और बाजार पहुंच प्रदान करना है।
योजना के अंतर्गत, महिलाओं को बैंक से लिंक किया जाता है, जहां वे बचत खाते खोलती हैं और सूक्ष्म ऋण प्राप्त करती हैं। आज, सवा आठ लाख से अधिक एसएचजी समूह बने हैं, जो 88 लाख परिवारों को कवर करते हैं। इन समूहों ने महिलाओं को कृषि, पशुपालन, हस्तशिल्प और छोटे उद्योगों में संलग्न किया है। जीविका दीदियां अब बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट के रूप में काम करती हैं और ‘दीदी की रसोई’ जैसी पहल से सरकारी संस्थानों में भोजन उपलब्ध कराती हैं। इस योजना का प्रभाव इतना गहरा है कि गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्य इसे अपना रहे हैं।
जीविका ने महिलाओं की आय में पचास प्रतिशत तक वृद्धि की है और उन्हें निर्णय लेने की क्षमता प्रदान की है। अभी हाल ही में शुरू की गई ‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ महिलाओं के लिए एक नई उम्मीद की किरण है। इस योजना का उद्देश्य महिलाओं को स्वरोजगार शुरू करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है। योजना के तहत, हर परिवार से एक महिला को प्रारंभिक किस्त के रूप में दस हजार रुपये दिए जाते हैं, जिससे वे कोई छोटा व्यवसाय या रोजगार शुरू कर सकें। छह महीने बाद, सफल प्रदशर्न पर दो लाख तक की अतिरिक्त सहायता मिल सकती है। यह योजना विशेष रूप से ग्रामीण और शहरी महिलाओं को लक्षित करती है, जिनकी आय सीमा निर्धारित है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे महिलाओं का आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण होगा। इसी दिशा में और भी कई ऐतिहासिक कदम उठाए गए हैं जिसने महिलाओं को विकास के लिहाज से मजबूती प्रदान की है। साल 2006 में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए पचास प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया, जिससे ग्रामीण स्तर पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ी। इसी तरह, 2007 में नगर निकायों में भी पचास प्रतिशत आरक्षण दिया गया। साल 2016 में, सरकारी नौकरियों में पैंतीस प्रतिशत आरक्षण महिलाओं के लिए सुनिश्चित किया गया, जो पुलिस से लेकर प्रशासनिक पदों तक लागू है।
इसके अलावा, राज्य न्यायिक सेवाओं में पचास प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की गई, जिसमें अत्यंत पिछड़े वगरे के लिए अतिरिक्त कोटा है। इन नीतियों से महिलाओं की राजनीतिक और प्रशासनिक भूमिका मजबूत हुई है। ‘महिला थाना’ योजना के तहत, हर जिले में महिलाओं के लिए विशेष पुलिस स्टेशन स्थापित किए गए हैं, जहां महिला पुलिसकर्मी तैनात हैं। पैंतीस प्रतिशत पुलिस भर्ती में महिलाओं का आरक्षण सुनिश्चित किया गया, और ‘स्वाभिमान बटालियन’ जैसी इकाइयां गठित की गई। इन योजनाओं का समग्र प्रभाव बिहार की महिलाओं की स्थिति में सकारात्मक बदलाव लाया है। निश्चित ही महिलाओं के हित में उठाए गए क्रांतिकारी कदम इस बात की तस्दीक करते हैं कि मौजूदा राज्य सरकार महिलाओं के विकास को लेकर उदार रवैया अपना रही है। एक कल्याणकारी राज्य की भूमिका में निश्चित ही बिहार भविष्य में एक उदारवादी सूबा साबित होगा, इसकी अपेक्षा है।
(लेख में विचार निजी हैं)
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