जी-7 शिखर सम्मेलन : मोदी की भूमिका है बड़ी

Last Updated 16 Jun 2025 12:12:45 PM IST

जून 16-17, 2025 को कनाडा के कनानास्किस में आयोजित होने वाला 51वां जी-7 शिखर सम्मेलन न केवल इस समूह की 50वीं वषर्गांठ का प्रतीक है, बल्कि यह वैश्विक नेतृत्व के एक नये संतुलन की भी झलक देता है।


जी-7 शिखर सम्मेलन : मोदी की भूमिका है बड़ी

भले ही भारत जी-7 का औपचारिक सदस्य अभी नहीं है, किंतु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की निरंतर और प्रभावी उपस्थिति इस मंच पर भारत की बढ़ती रणनीतिक महत्ता को तो दर्शाती ही है।
इस वर्ष भारत की जी-7 शिखर सम्मेलन में 12वीं सहभागिता होगी जबकि जी-7 शिखर सम्मेलन में यह प्रधानमंत्री मोदी की छठी उपस्थिति है।

यह तथ्य स्वयं इस बात का प्रमाण है कि भारत को अब केवल एक आमंत्रित देश के रूप में ही नहीं, बल्कि वैश्विक विमर्श में एक सक्रिय भागीदार के रूप में देखा जाता है। प्रधानमंत्री मोदी की जी-7 शिखर सम्मेलन में निरंतर सहभागिता ने भारत की भूमिका को केवल आर्थिक शक्ति तक सीमित नहीं रखा है, बल्कि स्वयं को एक वैश्विक नीति-निर्माता के रूप में भी स्थापित किया है।

वर्तमान में भारत विश्व की सबसे तीव्र गति से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है, जिसकी जीडीपी कई जी-7 देशों विशेषकर-फ्रांस, इटली और कनाडा-से अधिक हो चुकी है। भारत का यह आर्थिक प्रभाव ध्यान खींचता है। इसके साथ ही भारत का युवा जनसांख्यिकीय लाभ और तकनीकी क्षमता यकीनन उसे एक वैश्विक साझेदार के रूप में और भी अधिक प्रासंगिक बनाते हैं। वर्ष 2023 में जी-20 की अध्यक्षता के दौरान भारत ने ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज को प्रभावशाली ढंग से विश्व मंचों पर प्रस्तुत किया था  जिससे उसकी रणनीतिक स्थिति और भी सुदृढ़ हुई है।
भारत का जी-7 शिखर सम्मेलन में दृष्टिकोण बहुआयामी रहा है।

इसलिए कि वह इस मंच को केवल आर्थिक नीति निर्धारण का अवसर भर नहीं मानता, बल्कि जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा सुरक्षा, डिजिटल परिवर्तन, वैश्विक स्वास्थ्य और वैश्विक शांति जैसे विषयों पर साझा रणनीति तैयार करने के लिए एक अवसर के रूप में भी देखता है। इस वर्ष के जी-7 एजेंडे के तीन प्रमुख स्तंभ हैं-1. शांति और सुरक्षा की रक्षा, 2. ऊर्जा और डिजिटल परिवर्तन, और 3. भविष्य के लिए साझेदारी। इन सभी में भारत की नीति और प्राथमिकताएं प्रतिध्वनित होती हैं।

कृत्रिम मेधा (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-एआई), खनिज सुरक्षा और डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन में भारत का योगदान इस कदर रहा है कि भारत आज विश्व में एआई के अनुसंधान एवं विकास में भारत अग्रणी भूमिका निभा रहा है। डिजिटल इंडिया अभियान, भारत स्टैक जैसे नवाचारों ने भारत को टेक्नोलॉजिकल सुपरपावर के रूप में उभारा है। जी-7 में यह अनुभव साझेदारी के रूप में काम आ सकता है, विशेषकर विकासशील देशों की डिजिटल समावेशिता में।

भारत लगातार इस बात पर बल देता आया है कि वैश्विक निर्णयों में विकासशील देशों की चिंताओं को समुचित स्थान मिलना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने जी-7 जैसे मंचों पर बार-बार यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका की समस्याएं भी वैश्विक एजेंडे का हिस्सा बनें। प्रधानमंत्री मोदी की जी-7 शिखर सम्मेलन में भागीदारी के साथ कई द्विपक्षीय वार्ता बैठकें भी प्रस्तावित हैं। ये वार्ताएं भारत की रणनीतिक साझेदारियों को मजबूत करने का अवसर देंगी, विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण में संयुक्त निवेश, आपूर्ति श्रृंखलाओं के विविधीकरण और रक्षा सहयोग के क्षेत्र में।

जी-7 शिखर सम्मेलन अब केवल एक पश्चिमी देशों का क्लब भर नहीं रह गया है, बल्कि यह एक ऐसा मंच बन चुका है जहां वैश्विक नेतृत्व की नई परिभाषाएं लिखी जा रही हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भागीदारी इस बात का संकेत है कि भारत अब केवल एक श्रोता या दर्शक भर नहीं रहा, बल्कि वह एक निर्णायक आवाज भी बन चुका है। भारत का दृष्टिकोण वैश्विक समरसता, साझा विकास और समावेशी भविष्य की ओर केंद्रित है, और जी-7 जैसे मंच भारत को इसी वैश्विक भूमिका को और मजबूत करने का अवसर प्रदान करते हैं। कहा जा सकता है कि भारत की भागीदारी, केवल उपस्थिति नहीं दर्ज कराने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका अपना एक अलग प्रभाव है।
(लेखक मगध विविश्व के कुलपति हैं। लेख में विचार निजी हैं)

डॉ. एस.पी. शाही


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