अफ्रीका : शांति व राहत प्रयास तेज करना जरूरी

Last Updated 18 May 2025 09:49:45 AM IST

वर्ष 2025 के आरंभ में अफ्रीका महाद्वीप में चिंताजनक स्थिति को देखते हुए यहां शांति प्रयासों को और सशक्त करने की चर्चा थी।


अब लगभग चार महीनों के बाद हम जो स्थिति देख रहे हैं, वह चिंताओं को कम नहीं करती है अपितु और बढ़ाती ही है क्योंकि इस दौरान सबसे संवेदनशील क्षेत्रों-सोमालिया, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो तथा सूडान एवं दक्षिण सूडान के हालात तेजी से और बिगड़े हैं।

सूडान में दो वर्ष से यानी अप्रैल, 2023 से गृह युद्ध चल रहा है। इससे पहले यहां अन्य गृह युद्ध भी हो चुके हैं और  सूडान से अलग होकर एक नया देश वर्ष 2011 में ही बन चुका है। अत: इस क्षेत्र में वैसे ही अमन-शांति बनाए रखने की बहुत जरूरत है पर वास्तविकता इससे विपरीत रूप में सामने आ रही है। सूडान में दो वर्षो से चल रहे गृह युद्ध में 150,000 लोग मारे गए हैं और 1 करोड़ 20 लाख लोग विस्थापित हुए हैं। तिस पर यदि आप यह याद रखें कि इनमें से बहुत से लोग पहले से अभावग्रस्त रहे हैं तो आप समझ सकते हैं कि यहां की मानवीय त्रासदी कितनी गहरी हो चुकी है। महिलाओं सहित अनेक लोगों को बहुत अत्याचार सहने पड़े हैं।

चूंकि सूडान के कुछ पड़ोसी देश स्वयं अभाव और हिंसा से त्रस्त हैं अत: बड़ा सवाल यह है कि सूडान की हिंसा से बचते हुए लोग आखिर, सुरक्षा के लिए जाएं तो जाएं कहां। इस स्थिति को दक्षिण सूडान की तेजी से बिगड़ती स्थिति ने और विकट बना दिया है। वर्ष 2011 में स्वतंत्र देश के रूप में अस्तित्व में आने के बाद वर्ष 2013 में दक्षिण सूडान में गृह युद्ध आरंभ हो गया था। यह पांच वर्ष तक चला। अनुमान है कि इसमें लगभग 4 लाख लोग मारे गए और लगभग 40 लाख लोग विस्थापित हुए। वर्ष 2018 में यह देश सुलह-समझौते की ओर बढ़ा। जो समझौता हुआ, उसमें हिंसा तो थम गई पर इसका आधार मजबूत नहीं था। इस वर्ष यह कमजोर आधार भी टूटने लगा है।

जिन मुख्य नेताओं को विभिन्न अपने जातीय आधार पर सरकार में शीर्ष के स्थान दिए गए थे, उनमें आपसी मतभेद और  टकराव आ गया है और डर है कि जातीय हिंसा फिर भड़क सकती है। उधर बड़े पड़ोसी देश सूडान में जो गृह युद्ध चल रहा है, उसका एक गुट भी दक्षिण सूडान में हिंसा भड़काने में लगा है। इस कारण यह खतरा बढ़ गया है कि इन दोनों देशों की हिंसा आपस में मिल कर एक और भी बड़ी मानवीय त्रासदी का रूप ले सकती है। इस हिंसा के तार कहीं न कहीं संसाधनों और भूमि को हड़पने के कुप्रयासों से जुड़ते हैं और इस होड़ में शक्तिशाली विदेशी तत्व भी जुड़े हुए हैं।

इस कारण यह संभावना बढ़ जाती है कि विभिन्न विरोधी गुटों को अलग-अलग विदेशी स्रेतों से धन मिलता रहेगा जिससे वे अधिक विध्वंसक हथियार खरीद सकेंगे और इस तरह विनाश बढ़ता रहेगा। इसी तरह यदि डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो जैसे बड़े और महत्त्वपूर्ण देश को देखें तो वहां सोने और अन्य बहुमूल्य खनिजों की बहुत उपलब्धि है और इसे हड़पने के प्रयासों में लगी ताकतें हिंसक हमले करते रहती हैं। यह प्रवृत्ति तब और तेज हो जाती है जब यहां की केंद्रीय सरकार कमजोर पड़ती है। ये हमलावर तव विदेशों से तो सहायता प्राप्त करते ही हैं साथ में कई बार तो विदेशी सेना स्वयं बहुत प्रत्यक्ष रूप में हमले में नजर आती है। हाल के महीनों में खनिजों की दृष्टि से संपन्न पूर्वी क्षेत्रों में विदेश से जुड़े सैनिक तेजी से आगे बढ़े हैं। यहां ध्यान रखना जरूरी है कि हाल के दशकों में अफ्रीका का सबसे बड़ा युद्ध डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो को केंद्र में रख कर ही हुआ था जिसमें आसपास के अनेक अन्य देश भी शामिल हो गए थे। इस इतिहास को देखते हुए इस ओर विशेष ध्यान देने की जरूरत है कि यहां की स्थिति अधिक विकट न बने।

इसके अतिरिक्त इथिओपिया, लीबिया, मोजाम्बिक, सोमालिया और  सेहल क्षेत्र के देशों में हाल में स्थितियां चिंताजनक रही हैं। मानवीय संकट बढ़ती भूख, विस्थापन और शरणार्थियों की समस्या के रूप में विकट हो रहा है। जलवायु बदलाव के दौर में प्रतिकूल मौसम की मार अनेक देशों को सहनी पड़ रही है। बढ़ते अभाव और भुखमरी के बीच बाहर से पहुंचने वाली सहायता सामग्री और खाद्य भी जरूरत से बहुत कम पड़ रहे हैं। इस स्थिति में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अफ्रीका के लोगों के दुख-दर्द को कम करने में वहां अमन-शांति कायम करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए। हाल के अनुभवों से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि अलगाववाद के रूप में समस्याओं के समाधान को खोजना निर्थक ही नहीं खतरनाक भी सिद्ध हो रहा है। सूडान में बढ़ती समस्याओं के बीच कुछ लोगों ने यह समाधान खोजा कि अपना अलग देश दक्षिण सूडान बना लें।

अलग होकर यह नया देश बन भी गया और इसे मान्यता भी मिल गई। पर इसके बावजूद कुछ ही समय बाद दक्षिण सूडान का अपना गृह युद्ध भी आरंभ हो गया। अब स्थिति यह है कि सूडान में बेहद हिंसक युद्ध चल रहा है और दक्षिण सूडान के हालात यदि समय रहते नहीं संभाले गए तो यह देश नये गृह युद्ध की ओर जा सकता है। सोमालिया में भी यही स्थिति देखी जा सकती है। यहां काफी समस्याएं बढ़ जाने के बाद देश का एक भाग सोमालीलैंड के रूप में वर्ष 1991 में अलग हो गया, हालांकि इसे संयुक्त राष्ट्र संघ के स्तर पर या अन्य व्यापक स्तर पर मान्यता नहीं मिल सकी पर कुछ समय बाद सोमालीलैंड में अपने झगड़े आरंभ हो गए। हाल के वर्षो में ये बढ़ गए और गृह युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। हिंसक झड़पों के बाद एक बड़े भाग ने अपना अलग अस्तित्व बनाने की कोशिश की। कुछ समय पहले, इस वर्ष अप्रैल में, इसका विलय सोमालिया में हो गया। इस तरह काफी हिंसा के बाद सोमालीलैंड का एक बड़ा भाग तो वापस सोमालिया में ही पहुंच गया।

दूसरी ओर, सोमालिया में भी आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं और दो अन्य क्षेत्र सोमालिया से फिर अलग होने की स्थिति में हैं। इस तमाम हिंसा में जनसाधारण पिसते रहे हैं। उधर विभिन्न विदेशी साधन-संपन्न ताकतें भी इस हिंसा को भड़का ही रही हैं। इनमें से कुछ देश सोमालिया की मदद कर रहे हैं तो कुछ सोमालीलैंड की। उनके द्वारा दी गई सहायता से अधिक तबाही हो रही है। सोमालीलैंड में कुछ विदेशी ताकतें सैन्य अड्डा बनाना चाहती हैं तो सोमालीलैंड को इस आधार पर और समर्थन मिल सकता है, पर सोमालिया का कहना है कि ऐसी भूमि लीज पर देने का हक केवल सोमालिया को है, सोमालीलैंड को नहीं है और इस कारण यहां के टकराव और बढ़ रहे हैं। अत: इन विभिन्न अनुभवों से सबक लेते हुए अलगाववाद और विशेषकर हिंसक अलगाववाद को छोड़ कर सार्थक बदलाव की अहिंसक राह पर चलने के साथ अमन-शांति के व्यापक प्रयास करने चाहिए।

भारत डोगरा


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