मुद्दा : सभी भारतीय धर्म, मत, पंथ शांति के वाहक
भारत में सनातन हिन्दू धर्म तो अनादि एवं अनंत काल से चला आ रहा है परंतु बाद के खंडकाल में भारत में कई अन्य प्रकार के मत पंथ भी विकसित हुए। जैसे बौद्ध, जैन, सिख धर्म आदि।
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ये विभिन्न मत, पंथ मूलत: सनातन हिन्दू संस्कृति का अनुपालन करते दिखाई देते हैं और कहा जाता है कि यह समस्त मत, पंथ सनातन हिन्दू धर्म की विभिन्न धाराएं ही हैं।
बौद्ध धर्म की उत्पत्ति भगवान बुद्ध की शिक्षाओं के आधार पर हुई। जैन धर्म में अहिंसा, आत्म संयम, सत्य एवं ईमानदारी पर अधिक जोर दिया जाता है। सिख धर्म ईर में विश्वास, सेवा, समानता एवं सत्यनिष्ठा पर आधारित है। सनातन हिन्दू संस्कृति को विश्व की अति प्राचीन संस्कृति के रूप में देखा जाता है। भारतीय सनातन हिन्दू संस्कृति में अध्यात्म का विशेष महत्त्व है जिसके अंतर्गत ‘वसुधैव कुटुंबकम’, ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’, ‘विश्व का कल्याण हो’, ‘किसी भी जीव का अहित न हो’ जैसे भावों पर अमल का प्रयास किया जाता है। भारत में चूंकि मनुष्य के साथ-साथ जीव-जंतुओं, नदियों, पहाड़ों, पेड़-पौधों एवं जंगलों आदि में भी ईर का वास माना जाता है, इसलिए किसी भी जीव को कोई क्षति न हो इस भावना को न केवल को बढ़ाया जाता है, बल्कि इस पर अमल भी किया जाता है। इसीलिए भारत मूलत: शांतिप्रिय देश माना जाता है।
सनातन हिन्दू संस्कृति के ग्रंथों, उपनिषदों आदि द्वारा काम, कर्म एवं अर्थ को धर्म के साथ जोड़ कर ही संपन्न करने के उपदेश दिए जाते हैं। महाभारत में वेद व्यास जी ने धर्म के आठ तरीके बताए हैं-(1) यज्ञ-जिसका आश्य है कि ऐसा कर्म जो समाज के लाभ के लिए किया जाता है, (2) दान-समाज की सहायता करना, (3) तप-अर्थात स्वयं में सुधार करते रहना, स्वयं का मूल्यांकन करना तथा नकारात्मक गुणों को दूर कर सकारात्मक गुणों का विस्तार करना, (4) सत्यम-सत्य के मार्ग पर चलना, (5) क्षमा-दूसरों तथा स्वयं को गलतियों के लिए क्षमा करना, (6) दंभ -इंद्रियों को वश में रखना, (7) आलोभ-लालच नहीं करना एवं लालच में न आना, तथा (8) अध्ययन-स्वयं और दुनिया का अध्ययन करना। सनातन हिन्दू धर्म एवं भारत में उत्पन्न मत-पंथों के अनुयायी सामान्यत: धर्म के उक्त वर्णित आठ तरीकों पर चलने का प्रयास करते पाए जाते हैं।
विश्व के अन्य देशों में विकसित मत-पंथों का अनुसरण करने वाले नागरिक भी भारत में निवास करते हैं जैसे यहूदी, ईसाई एवं इस्लाम के अनुयायी, आदि। इन मत- पंथों को सेमेटिक रिलिजन की श्रेणी में रखा जाता है क्योंकि इनकी साझा उत्पत्ति एवं कुछ सामान्य अवधारणाएं होती हैं, जैसे एक ही ईर में विश्वास, नैतिकता एवं कर्मकांड। यहूदी धर्म एक धर्म ग्रंथ (ताल्मुद) पर आधारित है। इस धर्म ग्रंथ में यहूदी लोगों की धार्मिंक और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाया गया है। यहूदी धर्म सेमेटिक धर्म की श्रेणी में आता है क्योंकि इसमें एक ईर (येहव) में विश्वास, अनुष्ठान एवं नैतिक नियमों का पालन किया जाता है। ईसाई धर्म ईसा मसीह की शिक्षाओं पर आधारित है, जो एक ईर में विश्वास एवं ईसा मसीह के द्वारा उद्धार करने एवं उनके द्वारा ही मोक्ष करने पर जोर देता है। इस्लाम भी पैगंबर मुहम्मद साहब की शिक्षाओं पर आधाति है, जिसका एक ईर (अल्लाह) में विश्वास एवं कुरान के पालन पर जोर है।
भारत में उत्पन्न विभिन्न धर्मो एवं मत पंथों में ईर की अवधारणा विविध है, परंतु सेमेटिक धर्मो में केवल एक ईर में ही विश्वास किया जाता है। भारतीय मत-पंथों में कर्मकांड का महत्त्व कम है जबकि सेमेटिक धर्मो में कर्मकांड की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। भारतीय मत-पंथों में मोक्ष की प्राप्ति के विभिन्न मार्ग उपलब्ध हैं, जिन पर चल कर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है परंतु सेमेटिक धर्मो में मोक्ष की प्राप्ति केवल ईर की कृपा से संभव है। भारतीय मत-पंथों में विविध सामाजिक संरचना रहती है जबकि सेमेटिक धर्मो में एक समान सामाजिक संरचना रहती है एवं इसमें विविधता का अभाव है।
भारत के बारे में कहा जाता है कि यहां विविधता में भी एकता दिखाई देती है क्योंकि आज भारत में विभिन्न धार्मिंक आस्थाओं एवं विभिन्न धर्मो की उपस्थिति तथा उनकी उत्पत्ति तो दिखाई ही देती है, साथ ही, व्यापारियों, यात्रियों, आप्रवासियों यहां तक कि आक्रमणकारियों द्वारा भी यहां लाए गए धर्मो को आत्मसात करते हुए उनका सामाजिक एकीकरण दिखाई देता है। सभी धर्मो के प्रति हिन्दू धर्म के आतिथ्य भाव के विषय में जॉन हार्डन लिखते हैं, ‘हालांकि, वर्तमान हिन्दू धर्म की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता उसके द्वारा एक ऐसे गैर-हिन्दू राज्य की स्थापना करना है, जहां सभी धर्म समान हैं।’ भारतीय नागरिक स्वयं को किसी न किसी धर्म से संबंधित अवश्य बताता है। इसी के चलते, भारतीय नागरिक विश्व के किसी भी कोने में चला जाए परंतु अपनी संस्कृति को छोड़ता नहीं है।
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