मुस्लिम आरक्षण : कांग्रेस का सच और झूठ

Last Updated 07 May 2024 01:45:42 PM IST

मुस्लिम आरक्षण इस चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बन गया है।। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित पूरी भाजपा कांग्रेस पर आरोप लगा रही है कि वह अनुसूचित जाति-जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्ग के आरक्षण हटाकर मुसलमान को देना चाहती है।


मुस्लिम आरक्षण : कांग्रेस का सच और झूठ

कांग्रेस सहित समूचा विपक्ष और भाजपा विरोधी कह रहे हैं कि मोदी और भाजपा देश में हिन्दू मुस्लिम के नाम पर चुनाव में ध्रुवीकरण चाहते हैं, जो सरेआम सांप्रदायिककरण है। अगर चुनाव में किसी संप्रदाय पर हमला किया जाए या उसके विरुद्ध दूसरे संप्रदाय को भड़काया जाए तो यह सांप्रदायिकता की श्रेणी में आएगा और इसके लिए चुनाव कानून ही नहीं सामान्य कानूनों में भी मुकदमा चलाने तथा सजा देने का प्रावधान है।
प्रश्न है कि क्या प्रधानमंत्री ने जो आरोप लगाया उसे चुनाव को सांप्रदायिक रंग देने का षड्यंत्र मान लिया जाए या उसके पीछे तथ्य भी हैं? कांग्रेस के नेता और प्रवक्ता प्रधानमंत्री पर हमले कर रहे हैं किंतु यह कहने को तैयार नहीं है कि वह मुसलमानों को आरक्षण देने के पक्ष में नहीं है। कांग्रेस यह भी स्पष्ट नहीं करती कि वह धर्म के आधार पर आरक्षण के विरु द्ध है। कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में आरक्षण की सीमा बढ़ाने का वचन देते हुए यह सुनिश्चित करने की घोषणा करती है कि अल्पसंख्यकों को शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, सार्वजनिक रोजगार, सार्वजनिक कार्य अनुबंध, कौशल विकास, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों में बिना किसी भेदभाव के अवसरों का उचित हिस्सा मिले तो इसलिए मंशा पर प्रश्न उठता है क्योंकि इसकी पृष्ठभूमि है।
कांग्रेस सरकारों ने पहले भी मुसलमानों को आरक्षण देने की पहल की है। चूंकि धर्म के आधार पर आरक्षण मान्य नहीं था, इसलिए अन्य पिछड़े वर्ग के आरक्षण में से ही कर्नाटक में मुसलमानों को चार प्रतिशत आरक्षण दिया गया। केंद्र में यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान आंध्र प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने मुसलमानों को आरक्षण देने का कानून बना दिया। यह विषय सर्वोच्च अदालत तक गया। आज भी अनुसूचित जनजाति से धर्म परिवर्तन कर मुसलमान या ईसाई बनने वालों को आरक्षण का लाभ मिलता है। वे अल्पसंख्यक होने का भी लाभ पाते हैं और अनुसूचित जनजाति का भी। कांग्रेस यह तो कह रही है कि इसमें मुस्लिम शब्द कहीं नहीं है पर अल्पसंख्यक का अर्थ क्या है? प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 9 दिसम्बर 2006 को राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक के भाषण में कहा  कि ‘मेरा मानना है कि हमारी सामूहिक प्राथमिकताएं कृषि, सिंचाई, जल संसाधन, स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढांचे में निवेश के साथ ही एससी/एसटी, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों, महिलाओं और बच्चों का उत्थान है। हमें ऐसी नई योजनाएं बनानी होंगी, जिनसे अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिमों को विकास में समान भागीदारी मिल सके। देश के संसाधनों पर उनका पहला हक होना चाहिए।’  2014 लोक सभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने से ठीक एक दिन पहले मनमोहन सरकार ने 5 मार्च 2014 को दिल्ली की 123 प्रमुख संपत्तियों को दिल्ली वक्फ बोर्ड के हवाले कर दिया। दिल्ली वक्फ बोर्ड ने 27 फरवरी, 2014 को राष्ट्रीय राजधानी में इन प्रमुख संपत्तियों पर दावा किया था।  
अनेक उदाहरण मिलेंगे जिनसे साबित होगा कि मनमोहन सरकार ऐसी मुस्लिम संस्थाओं, संगठनों और व्यक्तियों के पूरी तरह प्रभाव में था। यह आदेश सरकार ने उचित मुआवजे का अधिकार और भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में पारदर्शिता अधिनियम, 2013 के तहत मिली शक्तियों का प्रयोग करते हुए किया।  तो क्या यह संशोधित अधिनियम ऐसे ही कार्यों को ध्यान में रखते हुए पारित हुआ था?  नरेन्द्र मोदी सरकार के आने के बाद इन संपत्तियों को मुक्त कराया गया और उसके लिए भी न्यायालय में संघर्ष करना पड़ा। जिस तरह तेलंगाना एवं कर्नाटक में कांग्रेस को मुस्लिम समुदाय का वोट मिला उससे उसको लगता है कि  ऐसी नीतियों पर आगे बढ़ने से उसका खोया जनाधार वापस आ सकता है। इसलिए राहुल गांधी और उनके नेतृत्व में पूरी कांग्रेस यह साबित करने में लगी है कि मुसलमान के हितों के प्रति वह पूरी तरह समर्पित है या उसके लिए किसी सीमा तक जाने को तैयार है। ध्यान रखिए, पिछड़े वर्ग एवं अनुसूचित जाति व अनुसूचित जन जाति को आरक्षण पहले से प्राप्त है, नरेन्द्र मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 फीसद आरक्षण का प्रावधान कर दिया है। तो आप आरक्षण की सीमा को बढ़ाना किसके लिए चाहते हैं? अपने भाषणों और वक्तव्यों में राहुल गांधी सहित ज्यादातर नेता अनुसूचित जाति-जनजाति व पिछड़े वर्ग के साथ ही अल्पसंख्यकों और मुसलमानों के उत्थान की बात करते हैं।
आखिर अनुसूचित जाति-जनजाति जाति और पिछड़े वर्ग के साथ मुसलमान को क्लब कैसे किया जा सकता है? मुसलमानों ने देश में लंबे समय तक शासन किया और इस कारण वे विशेषाधिकार वर्ग में आते हैं। मोदी सरकार में ही सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की संख्या 2014 के मुकाबले दोगुनी से ज्यादा हुई है। किंतु हमारे यहां जाति व्यवस्था में हाशिए पर रहे समूहों के कारण आरक्षण का प्रावधान संविधान में लाया गया। इसमें धर्म के आधार पर आरक्षण की कोई व्यवस्था न थी और न हो सकती है। ऐसी अवस्था में निश्चित रूप से अन्य पिछड़े वर्ग का हक मार कर ही कांग्रेस या आईएनडीआईए के अन्य दल उन्हें आरक्षण दे सकते हैं। पश्चिम बंगाल से इसके संदर्भ में एक डराने वाला आंकड़ा आया है।
इस समय वहां 179 जातियां अन्य पिछड़े वर्ग में शामिल हैं, जिनमें 118 मुस्लिम हैं और हिंदू सिर्फ  61। मोदी सरकार ने जब राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया तो उसने राज्यों को भी पिछड़े वर्ग की सूची में जातियों को शामिल करने का अधिकार दिया। ममता बनर्जी ने 71 जातियां शामिल की जिनमें 65 मुस्लिम थे। जब पिछड़ा वर्ग आयोग ने इसका कारण पूछा तो बताया गया कि पिछड़े हिन्दुओं ने धर्म परिवर्तन कर इस्लाम ग्रहण कर लिया। जब यह पूछा गया कि कहां-कहां ऐसा हुआ तो उत्तर आया कि इसकी जानकारी नहीं है। सरकारों ने ऐसे नियम और ढांचे बना दिया जिनसे राजस्थान, बंगाल, कर्नाटक सहित कई राज्यों में पिछड़े वर्ग के आरक्षण का ज्यादातर लाभ मुस्लिम समुदाय को मिल रहा है। इसके बाद क्या किसी संदेह की गुंजाइश रह जाती है?

अवधेश कुमार


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment