कम मतदान : तात्कालिक सुधार जरूरी

Last Updated 26 Apr 2024 01:25:57 PM IST

वर्ष 2024 के संसदीय चुनाव के प्रथम चरण में कम मतदान को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों एवं राजनीतिक गलियारों में बहस छिड़ी है। इसके विपरीत मंथन इस बात पर होना चाहिए कि चुनावों के अगले चरणों में मतदान का प्रतिशत कैसे बढ़ाया जा सकता है?


कम मतदान : तात्कालिक सुधार जरूरी

2019 के चुनावों के प्रथम चरण में मतदान प्रतिशत 70.9 था जो 2024 के चुनावों में 7.7 प्रतिशत कमी के साथ 63.2 प्रतिशत पर ही सिमट गया। 16 करोड़ 64 लाख लोगों में से 6 करोड़ 12 लाख लोगों ने अपना वोट ही नहीं डाला।

यह आंकड़ा इसलिए भी चिंतित करता है कि लोगों की उदासीनता किसी एक राज्य या क्षेत्र में नहीं, बल्कि कमोबेश सभी राज्यों में एक सी ही रही। 2019 एवं 2024 के प्रथम चरण के चुनावों का तुलनात्मक कम मतदान अंतर हैरान करता है। बिहार में 53 प्रतिशत की तुलना में 47 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 67 प्रतिशत की तुलना में 57 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 75 प्रतिशत की तुलना में 63 प्रतिशत, राजस्थान में 64 प्रतिशत की तुलना में 57 प्रतिशत, तमिलनाडु में 72.44 प्रतिशत की तुलना में 69.46 प्रतिशत मतदान हुआ है। नागालैंड के 6 जिलों के 4 लाख लोगों ने चुनाव की इस प्रक्रिया में भाग ही नहीं लिया है। राजनीतिक विश्लेषकों ने कम मतदान के लिए भीषण गर्मी, लू, शादियों का मौसम अप्रत्याशित वष्रा, फसल कटाई आदि कारणों को जिम्मेदार माना है। कम मतदान वाले चुनाव परिणाम पूरी आबादी की इच्छा को बेहतर ढंग से नहीं दर्शाते। राजनीतिक अस्थिरता बढ़ाते हैं।

भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व के अगले चरणों में लोगों की प्रतिभागिता को बढ़ाने के लिए भारत निर्वाचन आयोग को अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन रणनीति पर कार्य करना चाहिए। अल्पकालीन रणनीति के तहत आगामी चरणों में मतदान प्रतिशत बढ़ाया जा सकेगा एवं दीर्घकालीन रणनीति के तहत भविष्य में होने वाले चुनावों के लिए नये उपायों पर कार्य करना होगा। अगले चरणों में लगभग 81 करोड़ मतदाता कतार में हैं। मत प्रतिशत बढ़ाने के लिए सर्वप्रथम महत्त्वपूर्ण कार्य बूथ स्तर पर बीएलओ का होता है जो स्थानीय लोगों के बीच से ही होता है। उसका कार्य सही प्रकार से लोगों के नामों की सूची तैयार करने में मदद करना है। नामों की पर्चियां लोगों तक पहुंचाने का कार्य भी बीएलओ का है। बीएलओ की उदासीनता के कारण ही मतदान बूथों पर लोगों को अनेक प्रकार की समस्याओं से दोचार होना पड़ता है। जैसे-लोगों के नाम सूची में न होना, मृत लोगों के नाम सूची में रह जाना, नामों की पुनर्रावृत्ति आदि। बीएलओ का गंभीर न होना ही समस्या को बढ़ावा देता है। मतदान से एक दिन पहले बीएलओ घर-घर जाकर मतदाताओं को मतदान के लिए प्रेरित करें।

उल्लेखनीय है कि निर्वाचन आयोग मतदाता जागरूकता के लिए विभिन्न प्लेटफार्म पर मतदाताओं को अनेक सेवाएं जैसे-ऑनलाइन पंजीकरण, मतदान स्थल की जानकारी, मतदाता हेल्पलाइन आदि-प्रदान करता है। जिला निर्वाचन अधिकारी का कार्य होता है कि शांति से चुनाव प्रक्रिया संपन्न हो। आगामी चरणों के मतदान के लिए मतदाताओं को प्रेरित किया जाना चाहिए। जिला मतदान अधिकारी को ऐसी टीमों का गठन करना चाहिए जो अपने-अपने क्षेत्र के सम्मानित और प्रभावी लोगों को साथ लेकर समाज के अन्य लोगों को वोट के लिए प्रेरित करें।  स्थानीय सामाजिक संगठनों की भी इस काम में मदद ली जा सकती है। मतदान में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग के प्रतिनिधियों को नाराज मतदाताओं से व्यक्तिगत रूप से मिलना चाहिए।

मतदान को सुखद अनुभव बनाने के लिए मतदान केंद्रों पर सुविधाएं बढ़ाने के साथ-साथ लाखों आंतरिक प्रवासी मतदाताओं के पंजीकरण को आसान बनाया जाना चाहिए। चुनाव तिथियां लोगों की सुविधा के अनुसार होनी चाहिए। कुछ विशेष राज्यों के विशेष जिलों-जहां तनावपूर्ण स्थिति, संघर्ष या विद्रोह की स्थिति हो-में सुरक्षा संबंधी उपाय इस प्रकार से होने चाहिए कि मतदाताओं को मतदान केंद्रों पर जाने से रोका न जा सके। निम्न-आय वाले व्यक्तियों को लगता है कि उनके वोट कोई मायने नहीं रखते। इस मानसिक बाधा को दूर करने के लिए लोगों को शिक्षित और संगठित करने के लक्षित प्रयास हों।

निर्वाचन आयोग के स्वीप कार्यक्रम के अंतर्गत करोड़ों लोगों द्वारा शपथ लिए जाने के बावजूद मत का कम प्रतिशत चौंकाता है। उत्तराखंड निर्वाचन आयोग ने दावा किया था कि 60 लाख से अधिक लोगों को मतदान की शपथ दिलवाई गई। इसका सीधा अर्थ है कि शपथ लेने के बाद भी लोग वोट डालने नहीं आए। इस बात की पड़ताल की जानी चाहिए कि जिन लोगों ने शपथ ली थी, उन लोगों ने मतदान किया है या नहीं। मतदान जागरूकता के नाम पर जो पैसा और समय खर्च किया गया उसका ऑडिट होना चाहिए। सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाला आज का युवा वर्ग मतदान केंद्रों तक जाना, लाइन में लगना, प्रतीक्षा करना आदि की बजाय ऑनलाइन वोटिंग करने के पक्ष में है। भविष्य में मतदान प्रक्रिया को अधिक सुविधाजनक बनाने के लिए चुनाव आयोग को मतदान बूथ के साथ-साथ ऑनलाइन वोटिग पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए। यदि बैंक लेनदेन को सुरक्षित बनाया जा सकता है, तो ऑनलाइन वोटिंग को भी सुरक्षित बनाए जाने पर विचार होना चाहिए।

शहरी नागरिक चुनावी प्रक्रिया में दिलचस्पी तो रखते हैं, लेकिन इसमें शामिल नहीं होते। उनकी प्रतिभागिता सुनिश्चित की जानी चाहिए। छात्रों को उनके मताधिकार और जिम्मेदारियों के बारे में शिक्षित करने के लिए स्कूल-कॉलेजों का भी सक्रिय सहयोग लिया जाना चाहिए। मतदान को उत्साहपूर्ण बनाने के लिए सबसे आसान रास्ता ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ है। चुनावों की आवृत्ति कम होने से मतदाताओं की अधिक केंद्रित और संलग्न भागीदारी में भी वृद्धि होगी। 2024 के संसदीय चुनाव के प्रथम चरण में होने वाले कम मतदान को लेकर मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों में भले ही अनेक प्रकार के कयास लगाए जा रहे हों, परंतु मात्र प्रथम चरण के चुनावों के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दीबाजी होगी। मतदाता को मतदान बूथ तक लाने के चुनौतीपूर्ण काम को निर्वाचन आयोग के साथ सभी पक्षों को मिल कर अंजाम तक पहुंचाना होगा।

डॉ. सुरजीत सिंह गांधी


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