अनाज मंडी : व्यवस्था में हो तत्काल सुधार

Last Updated 23 Apr 2024 01:42:18 PM IST

गेहूं और सरसों की फैसल तैयार है, मंडियों में खरीदारी शुरू हो गई है। कुछ मंडियों में सुचारू रूप से खरीदारी हो रही है किंतु ऐसी बहुत सी मंडियां हैं, जहां किसानों को परेशानियां झेलनी पड़ रही है।


अनाज मंडी : व्यवस्था में हो तत्काल सुधार

कहीं बारिश और ओले के कारण खेत में अनाज गीला हो गया है तो कहीं मंडी में खुले आसमान के नीचे। किसान की गाढ़ी कमाई पर पानी फिर रहा है, अधिकारी नम माल लेने से मना कर रहे हैं।

मंडियों में अव्यवस्था के कारण किसान का सब्र टूट रहा है और कुछ जगहों पर किसानों ने अपना रोष भी प्रकट किया है। अनेक मंडियों में उठान की स्थिति खराब है, शेड में, बाहर सड़क पर माल पड़ा है, टोकन काटने की व्यवस्था ठीक नहीं है। कभी-कभी मंडी के आगे मीलों लंबी लाइन लग जाती है, रात रात भर किसान को जागकर अपने माल की सुरक्षा करनी पड़ती है। मूलभूत सुविधाओं जैसे पीने का स्वच्छ पानी, शौचालय और साफ-सफाई का अभाव है।

मंडी को जाने वाली सड़कों में गड्ढे, अवैध रूप से खड़े वाहन और आवारा पशु, जगह-जगह जाम की समस्या से किसानों को जूझना पड़ता है। कुछ मंडियों में कंप्यूटर ऑपरेटर और स्टाफ की कमी है तो कुछ में तौल के लिए कांटे की व्यवस्था भी समय पर नहीं हो पाई। आवश्यक मात्रा में बारदानों (कट्टों) का अभाव भी परेशानी का कारण बन जाता है। यद्यपि सभी मंडियों में ऐसी अव्यवस्था नहीं है किंतु काफी संख्या में ऐसे मंडी है जहां व्यवस्था सुधार की एवं मंडी प्रबंधकों और सरकारी विभाग के बीच तालमेल और सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि किसान आसानी से अपनी फसल बेच सकें।

अनाज की खरीद के सीजन में मंडियों से जो रिपोर्ट आ रही हैं वे चिंताजनक हैं। चरखी दादरी में पहले ही दिन मंडी में हजारों किसान फसल लेकर पहुंचे, लंबी लाइन लग गई,  किसानों के वाहन घंटों जाम में फंसे रहे, पुलिस और प्रशासन को स्थिति संभालने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी। बैकडोर से टोकन लेने और व्यापारियों के वाहनों को बैकडोर से एंट्री देने के आरोप लगे। रोहतक की एक मंडी में किसानों को मजबूरी में अपनी फसल प्राइवेट कंपनियों को बेचने के आरोप लगे। ओला और बे मौसम बारिश की वजह से वहां फसल खराब हुई, अधिकारी फसल में नमी के कारण खरीद नहीं कर रहे थे।

सोनीपत के गन्नौर में मंडी सेक्रेटरी और अधिकारियों की मिलीभगत से किसानों को जो नुकसान हुआ उससे उनमें  जबरदस्त रोष था, मंडी पर उन्होंने ताला लगा दिया। पोर्टल पर फसल रजिस्ट्रेशन करवाने में भी धांधली के आरोप लगे। जहां किसान की 5 से 6 एकड़ का रजिस्ट्रेशन था वहां अधिकारी 1 से 2 एकड़ का माल ही खरीद रहे थे। भिवानी की एक मंडी में  हजारों क्विंटल सरसों खरीद के बाद कट्टों में पड़ी बारिश में भीग गई, बचाव का कोई इंतजाम नहीं था।

पूरी मंडी पानी से तरबतर थी, फसल की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ा जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। मौसम खराब होने की आशंका से किसानों ने भारी मजदूरी देकर समय से फसल कटवा दिया था और अब जब फसल लेकर मंडी पहुंचे तो वहां मौसम की मार झेलनी पड़ी। सरसों का रंग भूरा हो गया और उसकी गुणवत्ता कम हो गई। सिरसा की मंडी में उठान की स्थिति बेहद खराब रिपोर्ट की गई। उठान के लिए एजेंसियों का चुनाव समय से नहीं हुआ।

गेहूं की आवक एकाएक बढ़ जाने से अधिकारियों के हाथ पैर फूलने लगे, टोकन काटने के लिए पर्याप्त मात्रा में कर्मचारी नहीं थे, ना ही पूरे कंप्यूटर ऑपरेटर। नियमानुसार फसल उठान ट्रकों द्वारा किया जाना चाहिए किंतु एजेंसी ट्रैक्टर-ट्राली द्वारा करा रही है जो सस्ती पड़ती है। यह तब हो रहा है जब ट्रैक्टर के कमर्शियल उपयोग पर रोक लगी हुई है। पंजाब की मंडियों में फसल पहुंच रही है, लेकिन खरीद का पुख्ता इंतजाम बहुत कम मंडियों में है।

‘मेरी फसल मेरा ब्योरा’ के तहत प्रदेश के 9.25 लाख किसानों ने फसल बेचने के लिए 6.45 लाख एकड़ का पंजीकरण कराया। आरोप लगाया जा रहा है कि 10. 40 एकड़ रकबा ऐसा है, जिसका डेटा मिसमैच कर रहा है। मध्य प्रदेश के कई मंडियों में समय से उठान न होने से आवारा पशुओं से अनाज की रक्षा के लिए किसान रात रात भर जाकर अपने फसल की रक्षा करते हैं। अवैध रूप से ट्रक खड़े रहते हैं, मंडी को जोड़ने वाली सड़कों में गड्ढे, सफाई की कमी और मंडी में अतिक्रमण जैसी अव्यवस्था से किसान जूझ रहे हैं।

देश के लगभग सभी प्रदेशों में मंडियों की व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। पिछले वर्ष इन्हीं दिनों दिल्ली की नरेला मंडी, जो एशिया की सबसे बड़ी अनाज मंडी है, उसमें करोड़ों रु पए का अनाज भीग गया था, बारिश से बचाव का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं था। मंडियों में व्यवस्था के खिलाफ आढ़तियों की अपनी शिकायतें हैं। उनका मानना है कि उन्हें जो आढ़त मिलती है वह कम हैं, उनके खर्चे पूरे नहीं होते, उसमें बढ़ोतरी होनी चाहिए। मंडी के श्रमिकों के पारिश्रमिक के बारे में भी सरकार को विचार करना चाहिए खाद्य पदाथरे और जीवन की आवश्यकता की वस्तुओं की कीमतें दिनों-दिन बढ़ रही है श्रमिकों की मजदूरी भी बढ़ाई जानी चाहिए।

किसानों को मंडी में अपनी मेहनत का पूरा पैसा मिले इसके लिए आवश्यक है कि निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम दर पर खरीद ना की जाए। जहां अनाज में नमी उनकी गलती से ना हो उसके लिए उन्हें क्यों दंडित किया जाए? मंडियों में मूलभूत सुविधाएं जैसे पेयजल, शौचालय, साफ-सफाई, खाने पीने की व्यवस्था और किसानों के रुकने की व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। मंडियों से जुड़ी सड़कों को पक्की किया जाना चाहिए जहां अभी ऐसा नहीं है। खरीद के सीजन में जाम न लगे इसकी व्यवस्था भी स्थानीय प्रशासन को पहले से ही करना चाहिए। मंडी प्रशासन चुस्त एवं भ्रष्टाचार मुक्त होना चाहिए।

प्रो. लल्लन प्रसाद


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