सामयिक : चुनाव जो न कराए

Last Updated 09 Apr 2024 01:57:13 PM IST

समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने गाजीपुर में मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) के घर जाकर उसे महान और मसीहा साबित करने की उस अभियान को आगे बढ़ाया जो उसकी मौत के समय से ही चल रहा है।


सामयिक : चुनाव जो न कराए

उन्होंने कहा कि जनता ने जेल में रहते हुए मुख्तार को पांच बार विधायक बनाया तो इसका मतलब है कि वह जनता के दुख दर्द में शामिल रहे और उसी का परिणाम है कि जनाजे में इतनी अधिक भीड़ उमड़ी।  उन्होंने बांदा जेल में मुख्तार की मृत्यु पर सरकार को घेरा तथा उसकी तुलना रूस में बिना नाम लिए विपक्ष के नेता एलेक्सी नवलनी की जेल में हुई मृत्यु से कर दी।  
मुख्तार अंसारी पिछले लंबे समय से जब भी वीडियो में आया काफी कमजोर दिखता था। व्हीलचेयर पर ही उसके बाहर निकलने या अंदर जाने की तस्वीरें आई थीं। उसकी मेडिकल रिपोर्ट में अनेक बीमारियां लिखी हुई है। इतनी बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति की कभी भी किसी कारण से मृत्यु हो सकती है। वैसे भी बाहुबल और धनबल की बदौलत बादशाहत कायम करने की मानसिकता में जीने वाले व्यक्ति को जेल में आम अपराधी की तरह व्यवहार  से मानसिक आघात लगना बिल्कुल स्वाभाविक है।

प्रचार यही हो रहा है कि उसे मारा गया है। कुछ दिनों से उसके परिवार और वकील धीमा जहर देने का आरोप एक रणनीति के तहत लग रहे थे, जिसका उद्देश्य जमानत दिलाना या मन मुताबिक किसी जेल में शिफ्ट कराना था। मृत्यु से कुछ दिनों पहले बेटे से बातचीत के ऑडियो से उसके काफी अस्वस्थ व कमजोर होने के साथ गहरी निराशा में डूबे होने का पता भी चलता है। उसकी मृत्यु पर सपा, बसपा या कुछ अन्य पार्टयिों, मजहबी नेताओं आदि ने जिस ढंग का माहौल बनाया है उसने आम व्यक्ति को  उद्वेलित किया है।  ऐसा कोई कारण नहीं दिखता जिससे प्रशासन या जेल या सरकार उसे तत्काल गैरकानूनी तरीके से मारने का कदम उठाए। इस समय उसकी मृत्यु से किसी को कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला था। योगी आदित्यनाथ सरकार की दृष्टि से यह स्थिति ज्यादा अनुकूल थी। मृत्यु के बाद उसे गरीबों का मसीहा और नायक बनाया जाना भय पैदा करता है।

जितनी संख्या में उसके नमाज ए जनाजा में लोग शामिल हुए वह सामान्य अवस्था का द्योतक नहीं है। किसी उदारवादी, समाज हितैषी, हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए काम करने वाले मुसलमान की मृत्यु पर न ऐसी प्रतिक्रियाएं आतीं हैं न इतने लोग इकट्ठे होते हैं और न उनमें भावविह्वलता और आक्रामकता देखी जाती है। इसके विपरीत चाहे मुख्तार अंसारी हो, बिहार का बाहुबली सैयद शहाबुद्दीन, अतीक अहमद या मुंबई बम विस्फोटों का आतंकवादी टाइगर मेनन उनके जनाजे में इतने बड़े जन समूह का उभरना मुस्लिम समाज के अंदर बढ़ती ऐसी प्रवृत्ति है, जिससे डरने और जिसको हर हाल में रोके जाने की आवश्यकता है। मुख्तार अंसारी न्यायालय द्वारा सिद्ध माफिया, हत्यारा, अपहरणकर्ता, सांप्रदायिक दंगा करने वाला बाहुबली था। 65 से ज्यादा मुकदमे उसके नाम पर  थे जिनमें आठ में उसे सजा दी जा चुकी थी। इनमें दो में उम्र कैद की सजा थी। न्यायालय द्वारा घोषित सजा प्राप्त अपराधी को मुसलमानों का नायक, गरीबों का मसीहा बताया जाए तथा राजनीतिक पार्टयिां और नेता उसके पक्ष में बयान दें इससे ज्यादा डरावना देश के लिए कुछ नहीं हो सकता? वे सरकार और पुलिस प्रशासन के साथ न्यायपालिका पर भी प्रश्न उठा रहे हैं।

2013 में मुंबई बम विस्फोटों के अपराधी टाइगर मेनन के जनाजे में मुंबई में उमड़ी भीड़ ने पहली बार देश को हैरत में डाला था। उस समय से यह एक स्थापित प्रवृत्ति है। अतीक अहमद की हत्या पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्न था लेकिन उसकी मृत्यु पर विशेष नमाज जगह-जगह अदा कर जन्नत की दुआ करना किस बात का द्योतक था? डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की मृत्यु पर इस तरह का दृश्य नहीं था। वस्तुत: उनके जनाजे में हिंदुओं की संख्या सर्वाधिक थी। कांग्रेस के शासनकाल से उत्पन्न राजनीति के अपराधीकरण के भयावह दौर में ऐसे अपराधी और बाहुबली, जिन्हें जेल में होना चाहिए वो माननीय विधायक और सांसद बनकर नीति-नियंता बन गए। अतीक, अंसारी या शहाबुद्दीन जैसों की एकमात्र योग्यता यही थी कि वो अपने अपराध के बल पर साम्राज्य कायम कर चुके थे तथा एक क्षेत्र विशेष में चुनाव जीतने-जिताने में सक्षम थे। इसी कारण सपा-बसपा दोनों ने उन्हें महत्व दिया और कांग्रेस पार्टी का भी उन्हें समर्थन ही रहा। जरा सोचिए, मुख्तार अंसारी ने उत्तर प्रदेश के वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय के बड़े भाई अवधेश राय की सरेआम हत्या करवाई और आज कांग्रेस उसे अपराधी तक कहने के लिए तैयार नहीं है। कांग्रेस ने उसे बचाने के लिए उत्तर प्रदेश से पंजाब की रोपड़ जेल में शिफ्ट कराया तथा उसे वापस न लाया जा सके इसके लिए सर्वोच्च अदालत तक लड़ाइयां लड़ी। ऐसी पार्टयिों के होते क्या उसे सजा मिल सकती थी?

ये पार्टियां भूल रही हैं कि देश ने राजनीति के अपराधीकरण और अल्पसंख्यकवाद के दौर को पीछे छोड़ दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की केंद्र या फिर राज्यों में सरकार गठित होने के पीछे भी हिन्दुत्व, राष्ट्रवाद, विकास, जन कल्याण के साथ अपराध और भयमुक्त माहौल की उम्मीद भी बहुत बड़ा कारण रहा है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में 2022 में भाजपा सरकार की वापसी का सबसे बड़ा कारण यही था कि अपराधी और माफिया के विरुद्ध अविसनीय स्तर तक कार्रवाई हुई। योगी आदित्यनाथ  केवल उत्तर प्रदेश नहीं, बल्कि देश में आम लोगों के बीच अपराधियों व माफियाओं के विरुद्ध किसी भी दबाव से परे अडिग रहते हुए कठोरता से कार्रवाई करने वाले नायक के रूप में खड़े हुए हैं तो इसी कारण। उप्र में सभी समुदायों के आम आदमी की प्रक्रिया होती है कि हम अब निर्भय होकर सड़कों पर चल सकते हैं।

इसलिए बसपा, सपा या कांग्रेस या अन्य पार्टियां अगर मानती है कि ऐसे अपराधियों के पक्ष में खड़ा होकर वे मुस्लिम वोटों से फिर विजय प्राप्त कर सत्ता पा लेंगे तो यह सपना पूरा नहीं होने वाला। पर इस व्यवहार के कारण सांप्रदायिक तत्वों द्वारा फैलाया गया खतरनाक झूठ कि मुसलमानों की चुन-चुन कर हत्याएं हो रही हैं- देश में सांप्रदायिक तनाव का वातावरण पैदा कर रहा है। ऐसी राजनीति और एक्टिविज्म भयभीत करने वाली है। मुख्तार जैसे लोग समाज के नायक नहीं खलनायक हैं। खलनायक को नायक बनाने की सांप्रदायिक और विभाजनकारी प्रवृत्ति के विरुद्ध डटकर खड़ा होने की आवश्यकता है।

अवधेश कुमार


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