प्रदूषण नियंत्रण : संसाधनों की कमी बड़ी बाधा

Last Updated 14 Mar 2024 01:13:23 PM IST

एनजीटी ने पिछले साल अक्टूबर, 2023 में राज्यों में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) और केंद्रशासित प्रदेशों की प्रदूषण नियंत्रण समितियां (पीसीसी) में पदों पर कर्मिंयों और संसाधनों की कमी से जुड़ी 24 अक्टूबर, 2023 की एक मीडिया खबर पर स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की तो ट्रिब्यूनल ने पाया कि प्रदूषण के खिलाफ लड़ने वाली संस्थाएं सीपीसीबी और पीएससी भी कर्मिंयों के पदों की रिक्तियों और संसाधनों से जूझ रही हैं।


प्रदूषण नियंत्रण : संसाधनों की कमी बड़ी बाधा

क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क साउथ एशिया के सीनियर एडवाइजर शैलेंद्र यशवंत ने पिछले साल अपनी इस रिपोर्ट में दिल्ली स्थित थिंकटैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च का हवाला देते हुए दावा किया था कि देश में प्रदूषण नियंत्रण करने वाली संस्थाएं मसलन, राज्यों में एसपीसीबी और केंद्रशासित प्रदेशों में पीसीसी के पास कर्मिंयों की अपर्याप्त स्वीकृत शक्ति, विशेष रूप से तकनीकी पदों की संख्या, उचित प्रशिक्षण का अभाव, प्रदूषण निगरानी और निवारण उपकरणों की कमी, तकनीकी रूप से सक्षम नेतृत्व की अनुपस्थिति, लंबे समय तक प्रवर्तन तंत्र का अभाव, अपर्याप्त धन और प्रभावी खर्च जैसी समस्याएं बनी हुई हैं।

कहा कि भारत में वायु प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में प्रदूषण नियंत्रण बोर्डस और समितियां केंद्र में हैं। दावा किया गया कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्डस खस्ताहाल हैं। इन सबके मद्देनजर मुद्दा यह है कि देश में प्रदूषण से कैसे निजात पाई जा सकती है। दरअसल, एनजीटी पिछले साल प्रदूषण के एक मामले की सुनवाई कर रहा था। इसी बीच 24 अक्टूबर, 2023 को जब यह मीडिया रिपोर्ट आई तो एनजीटी ने इस पर स्वत: संज्ञान लेकर मूल आवेदन संख्या 693/2023 में इसे शामिल करके कार्रवाई करते हुए सीपीसीबी और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को नोटिस देकर 23 नवम्बर, 2023 को मीडिया खबर पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आदेश दिए थे।

एनजीटी के आदेशों के अनुपालन में सीपीसीबी की 23 नवम्बर, 2023 को रिपोर्ट मिली तो एनजीटी ने पाया कि मीडिया रिपोर्ट में सीपीसीबी और पीसीसी में अपर्याप्त कर्मिंयों और संसाधनों संबंधी दावे सही हैं। रिपोर्ट में देखा गया कि कुल 28 राज्यों और 8 केंद्रशासित प्रदेशों में एसपीसीबी और पीसीसी के कर्मिंयों की स्थिति के ब्यौरे में 11,969 स्वीकृत पदों के सापेक्ष 5,877 पद ही भरे हुए हैं जबकि 6,092 पद खाली पड़े हैं। हर साल सर्दियों में वायु प्रदूषण की दिक्कतों का सामना करने वाली दिल्ली पीसीसी में 344 पद स्वीकृत हैं, लेकिन 191 पद ही भरे हैं। उत्तर प्रदेश की एसपीसीसी में 732 स्वीकृत पद हैं, लेकिन 407 पद ही भरे हुए हैं।

उत्तराखंड राज्य में 130 पदों की स्वीकृति के सापेक्ष सिर्फ  51 पद ही भरे हुए हैं। आंध्र प्रदेश में हालत बहुत गंभीर है, 289 स्वीकृत पदों के सापेक्ष सिर्फ  87 पद भरे हैं। बिहार में 249 स्वीकृत पदों के सापेक्ष 202 पद खाली हैं। मध्य प्रदेश में 1228 पदों में 459 पद ही भरे हुए हैं। गुजरात में 831 के सापेक्ष 894 भरे हुए हैं, और 334 खाली हैं। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, केरल, कर्नाटक, झारखंड, ओडिशा में तो स्वीकृत स्ट्रेंथ से 50 प्रतिशत से भी अधिक पद खाली हैं।  अन्य संसाधनों की बात करें तो देश में दो तरह की सेंट्रल और रिजनल एनवायरनमेंटल लैबोरेट्रीज की व्यवस्था हैं। रिपोर्ट्स में पाया गया कि देश की कुल 194 लैबोरेट्रीज में 31 सेंट्रल और 163 रिजनल लैबोरेट्रीज हैं। इन 194 लैबोरेट्रीज में से 41 लैबोरेट्रीज राष्ट्रीय परीक्षण और अंश शोध प्रयोगशाला प्रत्यायन बोर्ड के तहत एक्रेडेटिड और 12 लैबोरेट्रीज एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एक्ट द्वारा मान्यता प्राप्त हैं। यदि इनकी संख्या और बढ़ जाए तो प्रदूषण नियंत्रण को संबल मिलेगा।

इन सब को देखते हुए एनजीटी ने अपने 23 नवम्बर, 2023 को जारी आदेशों में सीपीसीबी की केंद्रीय और रिजनल लैबोरेट्रीज के साथ सभी 28 राज्य और 8 केंद्रशासित प्रदेशों के पर्यावरण एवं वन विभागों को पक्षकार बनाया। इन्हें नोटिस जारी कर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आदेश दिए। पूछा कि कर्मचारियों की स्वीकृत संख्या और पदों पर वर्तमान में नियुक्ति, प्रशासनिक, मंत्रालयी और तकनीकी कर्मचारियों का अनुपात, मौजूदा रेग्युलेटिंग और मॉनिटिरंग सुविधा, लैब स्ट्रैंथ इंफ्रास्ट्रक्चर, उपकरणों और हॉटस्पॉट की निगरानी से जुड़ी सुविधाएं क्या हैं।

पिछले दो वित्त वर्षो 2020-21 और 2021-22 के बजट, आय के स्रेत और खर्च का ब्यौरा भी मांगा गया। सीपीसीबी के अलावा करीब 20 एससीपीसी और पीसीसी ने एनजीटी के आदेशों के अनुपालन में रिपोर्ट्स प्रस्तुत की और एनजीटी ने 2 फरवरी, 2024 को सुनवाई की। एनजीटी ने 12 अप्रैल, 2024 में अगली सुनवाई नियत की है। प्रदूषण नियंत्रण के दायित्व के लिए जिम्मेदार संस्थाएं मजबूत होंगी तो निश्चय ही देश में किसी भी तरह के प्रदूषण की समस्या पर नियंत्रण करना आसान होगा।

अनिरुद्ध गौड़


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