मुद्दा : बढ़ रही गरीबी और असमानता

Last Updated 22 Feb 2024 01:32:35 PM IST

सामाजिक असमानता की खाई निरंतर बढ़ती जा रही है, जबकि आम आदमी की आय में बेहद कम बढ़ोतरी हो रही है।


मुद्दा : बढ़ रही गरीबी और असमानता

दूसरी तरफ, अमीर वर्ग की संपत्ति कई गुना बढ़ी है। वैसे न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर के कई देशों में भी आर्थिक असमानता की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है। गरीबी उन्मूलन के लिए कार्यरत गैर-सरकारी संगठन ‘ऑक्सफैम इंटरनेशनल’ ने पिछले महीने विश्व आर्थिक मंच की बैठक में आर्थिक असमानता पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी करते हुए बताया था कि पिछले कुछ वर्षो के दौरान अमीरी और गरीबी की खाई पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ी है।

रिपोर्ट में कहा गया कि आर्थिक असमानता के दृष्टिगत पिछले कुछ वर्ष बेहद खराब साबित हुए और विगत चार वर्षो के दौरान कोरोना महामारी, युद्ध और महंगाई जैसे पैमानों ने विश्व भर में अरबों लोगों को गरीब बनाया है, 2020 के बाद से अब तक दुनिया में करीब 5 अरब लोग गरीब हुए हैं। रिपोर्ट में चिंता जताई गई है कि एक ओर जहां गिने-चुने लोगों की बेतहाशा कमाई हो रही है, वहीं अरबों लोग गरीब होते जा रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के शीर्ष 5 अमीरों की दौलत बीते चार वर्षो के दौरान 405 अरब अमेरिकी डॉलर से दोगुनी से अधिक बढ़कर 869 अरब अमेरिकी डॉलर हो गई जिसका स्पष्ट अर्थ है कि इन चार वर्षो के दौरान इन पांच सबसे अमीर लोगों की हर घंटे 14 मिलियन डॉलर (करीब 116 करोड़ रु पये) की कमाई हुई। ऑक्सफैम के मुताबिक सबसे अमीर लोगों ने सांठ-गांठ वाले पूंजीवाद और विरासत के जरिए बनाई गई संपत्ति का  बड़ा हिस्सा हड़प लिया है जबकि गरीब अभी भी न्यूनतम वेतन अर्जित करने और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जो लगातार कम निवेश से पीड़ित हैं। ये बढ़ती दूरियां और बढ़ती असमानताएं महिलाओं और बच्चों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं।

अरबपतियों की सम्मिलित दौलत पिछले चार वर्षो में 3.3 ट्रिलियन डॉलर बढ़ी है जबकि दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत की जीडीपी करीब 3.5 ट्रिलियन डॉलर है। दुनिया के 148 शीर्ष घरानों ने 1800 अरब अमेरिकी डॉलर का मुनाफा कमाया, जो तीन वर्षो के औसत से 52 फीसद अधिक है। जहां अमीर शेयरधारकों को भारी भुगतान किया गया वहीं करोड़ों लोगों को वास्तविक अवधि के वेतन में कटौती का सामना करना पड़ा। ऑक्सफैम के मुताबिक यदि मौजूदा रु झान जारी रहा तो दुनिया से गरीबी आगामी 229 वर्षो तक भी नहीं मिटाई जा सकेगी।
ऑक्सफैम का भारत के संदर्भ में कहना है कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है लेकिन सबसे असमान देशों में से भी एक है। भारतीय आबादी के शीर्ष 10 फीसद लोगों के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 77 फीसद हिस्सा है।

2017 में उत्पन्न 73 फीसद संपत्ति सबसे अमीर 1 फीसद के पास चली गई थी जबकि 670 मिलियन भारतीयों, जो आबादी का सबसे गरीब आधा हिस्सा हैं, की संपत्ति में केवल 1 फीसद की वृद्धि देखी गई। ऑक्सफैम के अनुसार देश में एक दशक में अरबपतियों की संपत्ति करीब 10 गुना बढ़ गई और उनकी कुल संपत्ति वित्त वर्ष 2018-19 के लिए भारत के पूरे केंद्रीय बजट से अधिक है, जो 24422 बिलियन थी। आम भारतीय अपनी जरूरत की स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच पाने में सक्षम नहीं हैं, जिनमें से 63 मिलियन (हर सैकेंड दो) लोग प्रति वर्ष स्वास्थ्य देखभाल की लागत के कारण गरीबी में धकेल दिए जाते हैं। भारत सरकार अपने सबसे धनी नागरिकों पर बमुश्किल कर लगाती है, सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल पर इसका खर्च दुनिया में सबसे कम है जबकि अच्छी वित्त पोषित स्वास्थ्य सेवा के स्थान पर इसने तेजी से शक्तिशाली वाणिज्यिक स्वास्थ्य क्षेत्र को बढ़ावा दिया है। परिणामस्वरूप अच्छी स्वास्थ्य देखभाल केवल उन लोगों के लिए उपलब्ध विलासिता है, जिनके पास भुगतान करने के लिए पैसे हैं।

बहरहाल, विश्व के कई देशों के साथ भारत में भी बढ़ती आर्थिक असमानता चिंताजनक है क्योंकि बढ़ती विषमता का दुष्प्रभाव देश के विकास और समाज पर दिखाई देता है और इससे कई प्रकार की सामाजिक-राजनीतिक विसंगतियां भी पैदा होती हैं। हालांकि संयुक्त राष्ट्र जैसी कुछ वैश्विक संस्थाओं के अलावा कुछ देशों की सरकारें भी गरीबी उन्मूलन, बेरोजगारी और आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए वर्षो से प्रयासरत हैं,  लेकिन बेहतर परिणाम सामने आते नहीं दिख रहे। यही कारण है कि ऑक्सफैम द्वारा प्रति वर्ष दुनिया भर में सरकारों से आह्वान किया जाता रहा है कि वे धनी लोगों पर उच्च संपत्ति कर लगाते हुए श्रमिकों के लिए मजबूत संरक्षण का प्रबंध करें। दरअसल, बड़े औद्योगिक घरानों पर कर लगाकर सार्वजनिक सेवाओं के लिए आवश्यक संसाधन जुटाए जा सकते हैं।

योगेश कुमार गोयल


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