मुद्दा : हक अदा न हुआ नदियों का

Last Updated 19 Oct 2023 01:46:23 PM IST

पवित्र नदी गंगा की सफाई का मुद्दा साधारण नहीं है। बढ़ती आबादी और बढ़ते शहरीकरण के कारण इस नदी को साफ और स्वच्छ रखना एक चुनौती है।


मुद्दा : हक अदा न हुआ नदियों का

कई पहल एवं कोशिशों के बाद समय-समय पर कुछ बदलाव भी देखने को मिले, परंतु गंगा को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सफाई एवं स्वच्छता का जो संकल्प लिया, उसके बाद कुछ हद तक सुधार जरूर आया है। उनके शासनकाल से पहले भी गंगा की सफाई और स्वच्छता के लिए अरबों-खरबों रुपये खर्च किए गए मगर मोदी के कार्यकाल ने इसमें बड़ा बदलाव लाया। स्वयं उन्होंने ‘गंगा’ को अपनी ‘मां’ कहा और काशी जैसे पवित्र स्थल से चुनाव लड़ा। निश्चित रूप से गंगा के प्रति उनकी कृतज्ञता, श्रद्धा भाव एवं सफाई को लेकर उनकी प्रतिबद्धता दिखलाई दी। गंगा नदी की सफाई को लेकर विभिन्न योजनाओं का ईमानदारी से क्रियान्वयन मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में से एक है, और इस पर हद तक उनके संबंधित मंत्रालयों एवं विभिन्न संगठनों का योगदान सराहनीय रहा है।

सनद रहे कि गंगा की सफाई का अभियान 1979 में भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया था। उसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा 1985 में गंगा एक्शन प्लान शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य गंगा के जल की गुणवत्ता को सुधारना था। केंद्र में अलग-अलग सरकारों ने भी इस प्रकार गंगा को प्रदूषण मुक्त एवं स्वच्छ बनाने का बीड़ा उठाया, लेकिन राजनीति या लालफीताशाही की वजह से उनका यह अभियान ज्यादा प्रभावी नहीं बन सका। जब मोदी सरकार ने ‘नमामि गंगे’ नामक परियोजना बनाई तब जाकर गंभीरता से इस पर पहल हुई। परियोजना की कार्यकारी समिति ने गंगा बेसिन में साफ-सफाई और घाटों के विकास के लिए नौ करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंजूरी दी, जिसमें सात गंगा बेसिन और दो घाटों के विकास का लक्ष्य रखा गया। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की 47वीं बैठक में जल शक्ति मंत्रालय ने इन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए 1278 करोड़ रु पये की मंजूरी दी। सभी परियोजनाओं पर तेजी से काम चल रहे हैं।

‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम एक एकीकृत संरक्षण मिशन है। जून, 2014 में इसे राष्ट्रीय नदी गंगा के प्रदूषण, संरक्षण और कायाकल्प के प्रभावी उन्मूलन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए 20 हजार करोड़ रुपये के बजट से शुरू किया गया था। इस मिशन के तहत उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान राज्यों में अड़तालीस सीवेज प्रबंधन परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं तथा 98 सीवेज परियोजनाएं पूरी की जा चुकी हैं। इन सब का उद्देश्य गंगा नदी का संरक्षण एवं कायाकल्प करना है। अब स्थिति यह है कि गंगा की मुख्य धारा विभिन्न प्रयासों की वजह से काफी हद तक साफ हो गई है। मगर नदी में गंदे पानी का बहाव रोकना बेहद जरूरी है। हालांकि कल-कारखानों के केमिकल या नालियों के बहाव को लेकर भी सरकार ने सजगता दिखाई है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि 2025 तक गंगा में नाले गिरना बंद हो जाएंगे। साफ-सफाई एक लगातार प्रक्रिया है, जिसके लिए केंद्र सरकार हमेशा प्रयत्नशील है। सरकार ने अन्य प्रदूषित नदियों की भी पहचान कर राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम शुरू किया है। नदियों को कैसे सुरक्षित और संरक्षित रखा जाए, अपनी शहरी योजनाओं का हिस्सा कैसे बनाया जाए। इसके लिए लोगों के बीच जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है। अभियान का उद्देश्य नदियों को स्वच्छ बनाना और पुनर्जीवित करना है। साथ ही, नमामि गंगे को जन आंदोलन बनाने का भी लक्ष्य है। इस दिशा में काम भी हो रहे हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि नदियां हमारा जीवन हैं। ये हमारा पोषण करती हैं, और जहां तक गंगा की बात है, तो हमारी सांस्कृतिक विरासत होने के नाते गंगा के किनारे धार्मिंक एवं पर्यटन क्षेत्र हमें रोजगार तक मुहैया कराते हैं। दुनिया की सबसे लंबी नदियों में से एक गंगा इस प्रकार हमारे देश की चालीस फीसद से अधिक आबादी का भरण-पोषण करती है। यही नहीं, नदियां विभिन्न संस्कृतियों को एक सूत्र में पिरोने का माध्यम भी हैं। इसलिए इनकी स्वच्छता और संरक्षण हम सबके लिए जरूरी हो जाता है। हालांकि यह कार्य कठिन है, लेकिन इस कठिन कार्य को नरेन्द्र मोदी जैसे दूरदर्शी नेता ने आसान कर दिखाया है। उनके कदम और प्रयास सार्थक साबित हुए हैं। अक्सर कई सरकारों का यह राजनीतिक कर्त्तव्य रहा मगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गंगा की सेवा को अपनी नियति बताया, जिससे देशवासियों की भी सोच बदली है। मानव सभ्यताओं को नदियों ने जीवन दिया लेकिन हमने नदियों को क्या दिया? इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की जरूरत है। हम पर नदियों का इतना कर्ज है, सो गंगा के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए हमें भी अच्छी सोच रखनी चाहिए।

सुशील देव


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