जल संकट : वर्षा जल सहेजने का शऊर सीखना होगा

Last Updated 26 Aug 2023 01:17:09 PM IST

पानी समस्त मानव जाति के लिए प्रकृति के सबसे आवश्यक और अमूल्य उपहारों में से एक है, जिसकी हमें अपने दैनिक जीवन में निरत्तर आवश्यकता होती है।


जल संकट : वर्षा जल सहेजने का शऊर सीखना होगा

पानी हमारे जीवन में पीने से लेकर सफाई तक अनेक उद्देश्यों की पूर्ति करता है, लेकिन भारत सहित दुनिया के अनेक देश जिस प्रकार पानी के अभूतपूर्व संकट से जूझ रहे हैं, ऐसे में इसका संरक्षण करना हमारे लिए बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

स्टॉकहोम अंतरराष्ट्रीय जल संस्थान द्वारा अंतरराष्ट्रीय जल संकट के लिए समाधान विकसित करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष विश्व जल सप्ताह आयोजित किया जाता है। इस बार 20 से 24 अगस्त तक वर्तमान जल चुनौतियों से निपटने में नवाचार के महत्व पर प्रकाश डालती थीम ‘सीड्स ऑफ चेंज: इनोवेटिव सॉल्यूशन फॉर ए वाटर-वाइज र्वल्ड’ (परिवर्तन के बीज: जल आधारित दुनिया के लिए अभिनव समाधान) के तहत वाटरफ्रंट कांग्रेस सेंटर में विश्व जल सप्ताह का आयोजन हुआ। 1991 से ही स्टॉकहोम अंतरराष्ट्रीय जल संस्थान द्वारा प्रतिवर्ष इस वैश्विक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।

पानी को लेकर हाल ही में सामने आई वैश्विक संकट की एक ताजा रिपोर्ट में तो चौंकाने वाला यह तथ्य सामने आया है कि जल संरक्षण के प्रयासों को गति देने के बजाय दुनियाभर में पानी को बेतहाशा बहाया गया है। ऐसे में ‘जल है तो कल है’ जैसे नारे केवल किताबों तक ही सीमित रह गए दिखते हैं। र्वल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट की इस रिपोर्ट में आशंका व्यक्त की गई है कि यदि पानी नहीं बचाया गया तो दुनियाभर में आने वाले वर्षो में जीडीपी के नुकसान के साथ वैश्विक खाद्य सुरक्षा संकट तक का खतरा बन सकता है। दरअसल, पानी न केवल ऊर्जा और कृषि उत्पादन के लिए आवश्यक घटक है बल्कि औद्योगिक उत्पादन भी पूरी तरह से पानी पर ही निर्भर करता है, ऐसे में जल संकट बढ़ने का सीधा सा अर्थ है विकास के पायदान पर तेजी से नीचे गिरना। रिपोर्ट में चेताते हुए यह भी बताया गया है कि दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी वाले 25 देशों में जल संकट तेजी से बढ़ रहा है और यदि ऐसा ही चलता रहा तो वर्ष 2050 तक इन देशों की जीडीपी को आधे से ज्यादा नुकसान हो जाएगा।

चिंता की बात यह है कि जिन 25 देशों का इस रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, उनमें भारत 24वें स्थान पर शामिल है। र्वल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट यह दर्शाने के लिए काफी है कि जल संरक्षण को लेकर कहीं भी किसी की कोई सटीक नीति अथवा दूरगामी तैयारी नजर नहीं आती। जल संकट को यदि भारत के ही संदर्भ में देखें तो देश में हर साल मानसून में अरबों-खरबों लीटर पानी व्यर्थ बह जाता है। इस वर्ष भी हिमाचल-उत्तराखण्ड इत्यादि कई राज्यों में पानी से भारी तबाही की तस्वीरें लगातार सामने आती रही हैं, ऐसे में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के नियम-कायदे किताबों से निकलकर धरातल पर आते प्रतीत नहीं होते। देश में जल संकट गहराते जाने की प्रमुख वजह है भूमिगत जल का निरंतर घटता स्तर। एक ओर जहां ग्रामीण इलाकों में सिंचाई के लिए भूजल का दोहन हो रहा है तो दूसरी ओर शहरी क्षेत्रों में उद्योगों में बड़े पैमाने पर भूजल का दोहन किया जा रहा है। इसके अलावा देशभर में पेयजल के लिए तो भूजल का दोहन होता ही रहा है।

हमारे यहां स्थिति इतनी विकट है कि गर्मी के मौसम की शुरुआत के साथ ही कई जगहों पर लोगों के बीच पानी को लेकर मारपीट तथा झगड़े-फसाद की नौबत आ जाती है, लेकिन बारिश के मौसम में इसी पानी से तबाही ही तबाही की तस्वीरें नजर आने लगती हैं। हालांकि हाल ही में जलशक्ति मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों से यह अवश्य पता चला है कि देश में भूजल दोहन में विगत पांच वर्षो के मुकाबले कुछ सुधार हुआ है और यह 63 से 60 प्रतिशत के स्तर पर आ गया है, लेकिन पांच वर्षो के अंतराल में भूजल दोहन में महज तीन फीसद की ही कमी आने को संतोषजनक नहीं माना जा सकता। इस दिशा में और तेजी से गंभीर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।

विशेषज्ञों के मुताबिक आगामी 25-25 वर्षो की जरूरत के लिए नदी जोड़ो योजनाएं तो स्वीकृत की गई हैं, लेकिन ये सभी योजनाएं भी खर्च की कमी के कारण सुस्त हैं। जलशक्ति मंत्रालय की ही रिपोर्ट बताती है कि देश के कुछ राज्यों में अभी भी भूजल का जमकर दोहन हो रहा है, जिनमें राजस्थान, पंजाब, हरियाणा इत्यादि सबसे आगे हैं। बहरहाल, केवल यह समझने से ही काम नहीं चलेगा कि वर्षा की एक-एक बूंद बेशकीमती है बल्कि इसे सहेजने के लिए भी देश के हर नागरिक को संजीदा होना पड़ेगा। यदि हम वर्षा के पानी का संरक्षण किए जाने की ओर विशेष ध्यान दें तो व्यर्थ बहकर नदियों में जाने वाले पानी का संरक्षण करके उससे पानी की कमी की पूर्ति आसानी से की जा सकती है और इस तरह जल संकट से काफी हद तक निपटा जा सकता है।

योगेश कुमार गोयल


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