तीर्थस्थल : भीड़ से अफरातफरी

Last Updated 21 Aug 2023 01:02:51 PM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हिन्दू तीर्थ के विकास की तरफ जितना ध्यान पिछले सालों में दिया है, उतना पिछली दो सदी में किसी ने नहीं दिया था।


तीर्थस्थल : भीड़ से अफरातफरी

यह बात दूसरी है कि उनकी कार्यशैली को लेकर संतों के बीच कुछ मतभेद हैं। पर आज जिस विषय पर मैं अपनी बात रखना चाहता हूं उससे हर उस हिन्दू का सरोकार है, जो तीर्थाटन में रु चि रखता है। जब से काशी, अयोध्या, उज्जैन और केदारनाथ जैसे तीर्थस्थलों पर प्रधानमंत्री मोदी ने विशाल मंदिरों का निर्माण करवाया है, तब से इन सभी तीथरे पर तीर्थयात्रियों का सागर उमड़ पड़ा है। इतनी भीड़ आ रही है कि कहीं भी तिल रखने को जगह नहीं मिल रही।

इस परिवर्तन का एक सकारात्मक पहलू यह है कि इससे स्थानीय नागरिकों की आय तेजी से बढ़ी है, और बड़े स्तर पर रोजगार का सृजन भी हुआ है। स्थानीय नागरिक ही नहीं, बाहर से आकर भी लोगों ने इन तीर्थ नगरियों में भारी निवेश किया है। इससे यह भी पता चला है कि अगर देश के अन्य तीर्थस्थलों का भी विकास किया जाए तो तीर्थाटन और पर्यटन उद्योग में भारी उछाल आ जाएगा। इस विषय में प्रांतीय सरकारों को भी सोचना चाहिए। जहां एक तरफ इस तरह के विकास के आर्थिक लाभ हैं, वहीं इससे अनेक समस्याएं भी पैदा हो रही हैं।

उदाहरण के तौर पर अगर मथुरा को ही लें तो बात साफ हो जाएगी। दो वर्ष पहले तक मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन और बरसाना आना-जाना काफी सुगम था जो आज असंभव जैसा हो गया है। कोविड के बाद से तीर्थाटन के प्रति भी एक नया ज्वार पैदा हो गया है। आज मथुरा के इन तीनों तीर्थस्थलों पर प्रवेश से पहले वाहनों की इतनी लंबी कतारें खड़ी रहती हैं कि कभी-कभी तो लोगों को चार-चार घंटे इंतजार करना पड़ता है। यही हाल इन कस्बों की सड़कों और गलियों का भी हो गया है। जनसुविधाओं के अभाव में, भारी भीड़ के दबाव में वृन्दावन में बिहारी जी मंदिर के आसपास आये दिन लोगों के कुचल कर मरने या बेहोश होने की खबरें आ रही हैं। भीड़ के दबाव को देखते हुए आधारभूत संरचना में सुधार न हो पाने के कारण आये दिन दुर्घटनाएं हो रही हैं।

जैसे हाल ही में वृंदावन के एक पुराने मकान का छज्जा गिरने से पांच लोगों की मौत और पांच लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। अब नगर निगम ने वृन्दावन के ऐसे सभी जर्जर भवनों की पहचान करना शुरू किया है, जिनसे जान-माल का खतरा हो सकता है। ऐसे सभी भवनों को प्रशासन निकट भविष्य में मकान-मालिकों से या स्वयं ही गिरवा देगा, ऐसे संकेत मिल रहे हैं। यह एक सही कदम होगा पर इसमें एक सावधानी बरतनी होगी कि जो भवन पुरातात्विक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, या जिनकी वास्तुकला ब्रज की संस्कृति को प्रदर्शित करती है, उन्हें गिराने की बजाय उनका जीर्णोद्धार किया जाना चाहिए। इस संदर्भ में यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि जो नये निर्माण हो रहे हैं, या भविष्य में होंगे, उनमें भवन निर्माण के नियमों का पालन नहीं हो रहा जिससे अनेक समस्याएं पैदा हो रही हैं। इस पर कड़ाई से नियंत्रण होना चाहिए।

पिछले दिनों यमुना जी की बाढ़ ने जिस तरह वृन्दावन में अपना रौद्र रूप दिखाया उससे स्थिति की गंभीरता को समझते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यमुना डूब क्षेत्र में हुए सभी अवैध निर्माण गिराने के आदेश दिए हैं। फिर वो चाहें घर हों, आश्रम हों या मंदिर हों। स्थानीय नागरिकों का प्रश्न है कि यमुना के इसी डूब क्षेत्र में हाल के वर्षो जो निर्माण सरकारी संस्थाओं ने बिना दूर-दृष्टि के करवा दिए, क्या उनको भी ध्वस्त किया जाएगा? जहां तक तीर्थनगरियों में भीड़ और यातायात को नियंत्रित करने का प्रश्न है, तो इस दिशा में प्रधानमंत्री मोदी को विशेष ध्यान देना चाहिए। हालांकि यह विषय राज्य का होता है, लेकिन समस्या सब जगह एक सी है। इसलिए इस पर एक व्यापक सोच और नीति की जरूरत है, जिससे प्रांतीय सरकारों को हल ढूंढ़ने में मदद मिल सके। वैसे आंध्र प्रदेश के तीर्थस्थल तिरु पति बालाजी का उदाहरण सामने है, जहां लाखों तीर्थयात्री बिना किसी असुविधा के दशर्न लाभ प्राप्त करते हैं जबकि मुख्य मंदिर का प्रांगण बहुत छोटा है, और उसका विस्तार करने की बात कभी सोची नहीं गई। इसी तरह अगर काशी, मथुरा और उज्जैन जैसे तीर्थ नगरों की यातायात व्यवस्था पर विषय के जानकारों और विशेषज्ञों की मदद ली जाए तो विकराल होती इस समस्या का हल निकल सकता है।

तीर्थस्थलों के विकास की इतनी व्यापक योजनाएं चलाकर प्रधानमंत्री मोदी ने आज सारी दुनिया का ध्यान सनातन हिन्दू धर्म की ओर आकर्षित किया है। स्वाभाविक है कि इससे आकर्षित होकर देशी पर्यटक ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी भारी संख्या में पर्यटक इन तीर्थ नगरों को देखने आ रहे हैं। अगर उन्हें इन नगरों में बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिलीं या भारी भीड़ के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ा तो इससे गलत संदेश जाएगा। इसलिए तीथरे के विकास के साथ-साथ आधारभूत ढांचे के विकास पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारें हमारे धर्मक्षेत्रों को सजाएं-संवारें तो सबसे ज्यादा हर्ष हम जैसे करोड़ों धर्मप्रेमियों को होगा पर धाम सेवा के नाम पर अगर छलावा, ढोंग और घोटाले होंगे तो भगवान तो रुष्ट होंगे ही, भाजपा की भी छवि खराब होगी।

2008 से मैं, अपने साप्ताहिक लेखों में मोदी जी के कुछ अभूतपूर्व प्रयोगों की चर्चा करता रहा हूं, जो उन्होंने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए किए थे। जैसे हर समस्या के हल के लिए उसके विशेषज्ञों को बुलाना और उनकी सलाह को नौकरशाही से ज्यादा वरीयता देना। ऐसा ही प्रयोग इन तीर्थ नगरों के लिए किया जाना चाहिए क्योंकि कानून-व्यवस्था की दैनिक जिम्मेदारी में उलझा हुआ जिला-प्रशासन इस तरह की नई जिम्मेदारियों को संभालने के लिए न तो सक्षम होता है, और न उसके पास इतनी ऊर्जा और समय होता है। इसलिए समाधान गैर-पारंपरिक तरीकों से निकाला जाना चाहिए।

विनीत नारायण


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