बिग थ्री : अब आगे देखने का समय
भारतीय क्रिकेट टीम (Indian Cricket Team) की आईसीसी ट्रॉफी (ICC Tropy) से लगभग एक दशक से चली आ रही दूरी इस बार भी खत्म नहीं हो सकी।
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भारत को वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप (WTC) के फाइनल में बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। इस तरह भारत इस चैंपियनशिप के दूसरे आयोजन में लगातार दूसरी बार फाइनल तक तो पहुंच गया पर खिताब तक नहीं पहुंच सका। भारत की हार के बाद कप्तान रोहित शर्मा ने कहा कि इस तरह की चैंपियनशिप की तैयारी के लिए कम से कम 21 दिन तो मिलने ही चाहिए। पर सवाल यह है कि यह समय दिलाएगा कौन। एक तो बीसीसीआई और दूसरे खिलाड़ी ही यह काम कर सकते हैं। लगता है कि दोनों को ही कमाई ज्यादा अहम लगती है और तैयारियों पर किसी का कोई ध्यान नहीं था।
बीसीसीआई चाहता तो डब्ल्यूटीसी के फाइनल में भाग लेने वाले खिलाड़ियों को आईपीएल से अलग कर सकता था पर उसने ऐसा कुछ किया नहीं। आईपीएल शुरू होने से पहले यह कहा जरूर गया था कि भारतीय टेस्ट टीम के खिलाड़ियों को आधे आईपीएल से अलग करके तैयारियों में लगाया जाएगा। पर ऐसा कुछ हुआ नहीं। हमें याद है कि भारत 2021 के फाइनल में भी पहुंचा था और उस समय भी लगभग इन्हीं खिलाड़ियों पर टीम का दारोमदार था, खास तौर से बल्लेबाजी बिग थ्री रोहित शर्मा, विराट कोहली और चेतेश्वर पुजारा पर ही था।
यह तिकड़ी इस बार भी कुछ खास नहीं कर सकी। ये तीनों दिग्गज अपने कॅरियर के ढलान पर हैं, क्योंकि इनकी उम्र 34 से 36 साल के बीच है। इसलिए लगता है कि इनसे आगे देखने का समय आ गया है। सही है कि टेस्ट क्रिकेट में किसी खिलाड़ी को स्थापित करना बहुत आसान नहीं होता और एकदम से पूरी टीम को नहीं बदला जा सकता। साथ ही इन तीनों में अभी कुछ क्रिकेट बाकी भी होगी। इसलिए यशस्वी जायसवाल, ऋतुराज गायकवाड़ जैसे क्रिकेटरों की टेस्ट टीम में राह बनाने पर ध्यान देने की जरूरत है। यह प्रयास अभी से शुरू किए जाएंगे तो एक-दो साल में यह क्रिकेटर टेस्ट टीम में स्थापति हो पाएंगे। सही है कि भारत की इस बिग थ्री तिकड़ी जबर्दस्त प्रतिभा की धनी रही है पर हर खिलाड़ी की उम्र बढ़ने पर प्रदर्शन में गिरावट आना स्वाभाविक है। इसके अलावा इन खिलाड़ियों के प्रदर्शन से यह भी लगा कि उनमें जिम्मेदारी के अहसास में कमी है।
यही वजह है कि फाइनल की दूसरी पारी में रोहित अच्छी लय में खेल रहे थे और जानते थे कि टीम पर से खतरा टालने के लिए लंबे समय तक विकेट पर रुकना जरूरी है। पर वह नाथन लियोन पर जबर्दस्ती रिवर्स स्वीप खेलने के प्रयास में आउट होकर लौट गए। इस गंभीर स्थिति में ही पुजारा भी अच्छी लय में दिखने के बाद रैंप शॉट खेलकर विकेट गंवा बैठे। खास बात यह है कि वह इस तरह के शॉटों को खेलने के लिए ना तो जाने जाते हैं और ना ही कभी खेलते दिखते हैं। कहने का मतलब है कि फाइनल जैसे महत्त्वपूर्ण मौके पर जब संयम की जरूरत थी, उस समय प्रयोग करना अदूरदर्शिता को ही दर्शाता है। टेस्ट क्रिकेट में कहा जाता है कि बैटर्स को मालूम होना चाहिए कि उसका ऑफ स्टंप कहां पर है। इसका मतलब है कि उसे पता होना चाहिए कि कौन सी गेंद बाहर जा रही है और उसे छोड़ने की जरूरत है। पर शुभमन गिल और पुजारा दोनों पहली पारी में विकेट को पूरी तरह से ढके बिना गेंद छोड़ने पर बोल्ड हो गए। ये दोनों इस तरह आउट नहीं हुए होते तो भारतीय संघर्ष और दमदार हो सकता था।
भारत की हार में सही चयन की भी थोड़ी बहुत भूमिका रही। सभी जानते हैं कि भारत को फाइनल तक पहुंचाने में रविचंद्रन अिन की अहम भूमिका रही। वह निर्विवाद रूप से भारत के नंबर एक स्पिनर भी हैं। लेकिन उन्हें फाइनल की टीम में शामिल नहीं करना बड़ी गलती रही। असल में इस टीम की मुख्य समस्या ऑलराउंडरों की कमी है। टीम में हार्दिक पांडय़ा जैसे ऑलराउंडर होने पर कप्तान को टीम को संतुलित करने में आसानी हो जाती है। टीम में हार्दिक होते तो भारत दो स्पिनरों के साथ भी उतर सकता था।
किसी प्रमुख बल्लेबाज के गेंदबाजी नहीं करना भी दिक्कत है। पहले टीम सहवाग, सचिन तेंदुलकर के गेंदबाजी करने से विकल्प बढ़ जाते थे। लेकिन मौजूदा टीम को विशुद्ध गेंदबाजों पर ही भरोसा करना पड़ता है। इसलिए टीम में एक - दो ऑलराउंडर रखने पर भी ध्यान देने की जरूरत है। टेस्ट क्रिकेट ही नहीं छोटे प्रारूपों वाले वनडे और टी-20 में भी हमारी टीम आईसीसी ट्रॉफी जीतने से दूरी बनाए हुए है। भारत 2013 में चैंपियंस ट्रॉफी जीतने के बाद से किसी आईसीसी ट्रॉफी को नहीं जीत सका है। इसलिए लगता है कि अब युवाओं पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। हो सकता है कि नई सोच वाले क्रिकेटर भारतीय टीम के एक दशक से चले आ रहे आईसीसी ट्रॉफी जीतने के सपने को साकार कर सकें। बेहतर हो कि घर में इस साल के आखिर में होने वाले वनडे विश्व कप में हार्दिक की अगुआई में टीम उतारी जाए ताकि टीम की नई सोच सपने को साकार कर सके।
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