लॉजिस्टिक : लागत घटने का पुरसुकून परिदृश्य

Last Updated 14 Jun 2023 01:34:29 PM IST

इस समय लॉजिस्टिक लागत से संबंधित विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि भारत में लॉजिस्टिक लागत में कमी करके उत्पादकता और निर्यात तेजी से बढ़ाए जा सकते हैं।


लॉजिस्टिक : लागत घटने का पुरसुकून परिदृश्य

यातायात प्रबंधन में सुधार करके जहां लॉजिस्टिक लागत कम की जा सकती है, वहीं समय व ऊर्जा की बचत करते हुए दुर्घटनाओं में भी कमी लाई जा सकती है। गौरतलब है कि देश में एक-दो वर्षो में लॉजिस्टिक लागत में कुछ कमी दिखाई देने लगी है। विश्व बैंक के लॉजिस्टिक प्रदशर्न सूचकांक-2023 में भारत 6 पायदान की छलांग के साथ 139 देशों की सूची में 38वें स्थान पर पहुंच गया है। 2018 में 44वें तथा 2014 में 54वें स्थान पर था। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अक्टूबर, 2021 में घोषित पीएम गतिशक्ति योजना और सितम्बर, 2022 में घोषित राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (एनएलपी) के कार्यान्वयन और 2020 से लागू उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) के प्रारंभिक अपेक्षित परिणामों से लॉजिस्टिक लागत में कमी आने का परिदृश्य निर्मिंत होने लगा है।  

लॉजिस्टिक प्रदशर्न सूचकांक के तहत कुछ महत्त्वपूर्ण मापदंडों, बुनियादी ढांचे, अंतरराष्ट्रीय शिपमेंट और लॉजिस्टिक क्षमता संबंधी भारत की बढ़त दुनिया भर में रेखांकित हो रही है। आधुनिकीकरण व डिजिटलीकरण से भी लॉजिस्टिक प्रदशर्न बेहतर हुआ है। सामान्यतया उत्पादन में कच्चे माल की लागत पहले क्रम पर और मजदूरी की लागत दूसरे क्रम पर होती है। फिर लॉजिस्टिक लागत का क्रम आता है। लॉजिस्टिक लागत का मतलब है, उत्पादों एवं वस्तुओं को उत्पादित स्थान से गंतव्य तक पहुंचाने में लगने वाले परिवहन, भंडारण व अन्य खर्च। लॉजिस्टिक लागत कम या अधिक होने में बुनियादी ढांचे की अहम भूमिका होती है।

सड़कें बेहतर और अन्य बुनियादी ढांचे की सुविधाएं उपयुक्त हों तो तेजी से सामान पहुंचने, परिवहन संबंधी चुनौतियां और ईधन लागत कम होने से भी लॉजिस्टिक लागत कम हो जाती है। यदि निर्धारित समय में बुनियादी ढांचे संबंधी परियोजनाएं पूरी हो जाती हैं, तो भी लॉजिस्टिक लागत में कमी आती है।

उल्लेखनीय है कि गतिशक्ति योजना करीब 100 लाख करोड़ रु पये की महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जिसका लक्ष्य देश में एकीकृत रूप से बुनियादी ढांचे का विकास करना है। वस्तुत: देश में सड़क, रेल, जलमार्ग आदि का जो इंफ्रास्ट्रक्चर है, वह अलग-अलग 16 मंत्रालयों और विभागों के अधीन है, उनके बीच में सहकार व समन्वय बढ़ाना गतिशक्ति योजना का मुख्य फोकस है। वस्तुत: नई लॉजिस्टिक पॉलिसी गतिशक्ति योजना की अनुपूरक है। नई लॉजिस्टिक नीति के जरिए 10 सालों में लॉजिस्टिक्स सेक्टर की लागत 10 प्रतिशत तक लाई जाएगी।

चूंकि वर्तमान में लॉजिस्टिक्स का ज्यादातर काम सड़कों के जरिए होता है, अतएव नई नीति के तहत रेल ट्रांसपोर्ट के साथ-साथ शिपिंग और एयर ट्रांसपोर्ट पर जोर दिया जा रहा है। लगभग 50 प्रतिशत कागरे रेलवे के जरिए भेजे जाने का लक्ष्य आगे बढ़ाया जा रहा है, और सड़कों पर ट्रैफिक को कम किया जा रहा है। इस समय केंद्र सरकार सड़क और रेल मार्ग, दोनों में सुधार पर ध्यान दे रही है। शहरों और औद्योगिक व कारोबारी केंद्रों के बीच की दूरी कम करने के लिए डेडिकेटेड फ्रेट कोरिडोर के जरिए रेल मार्ग से माल ढुलाई तेज करने की कवायद कर रही है , तो देश के लगभग हर हिस्से में ग्रीनफील्ड हाईवे प्रोजेक्ट चल रहे हैं। राजमागरे पर आधारित इंडस्ट्रियल कोरिडोर भी बनाए जा रहे हैं।  

यह बात भी उभर कर दिखाई दे रही है कि बुनियादी ढांचे के तहत सड़कों, रेलवे, बिजली और हवाई अड्डों के अलावा बंदरगाह से संबंधित सड़क और रेल कनेक्टिविटी में भी निजी निवेश का प्रवाह अहम भूमिका निभा रहा है। यात्रा के आधार पर भारत का लगभग 95 फीसदी विदेश व्यापार समुद्री मार्ग से होता है। नवीनतम बंदरगाह नीति के तहत बंदरगाह ‘लैंडलॉर्ड मॉडल’ की शुरुआत के साथ सरकार के स्वामित्व वाले ‘प्रमुख बंदरगाह’ की परिचालन जिम्मेदारियां निजी क्षेत्र को सौंपने की रणनीति के कारण बंदरगाह विकास और संचालन में घरेलू और विदेशी निजी क्षेत्र की भागीदारी तेजी से बढ़ी है।

यह भी उल्लेखनीय है कि देश के कोने-कोने के शहरी भागों में सड़कों पर वाहनों की भरमार और इससे यातायात में होने वाली असुविधाओं से जहां समय और ऊर्जा की हानि होती है, वहीं उत्पादकता एवं जीडीपी पर भी प्रभाव पड़ता है। सामान्यतया विस्तरीय सड़कों के मापदंडों पर सड़क निर्माण पर काफी धनराशि खर्च की जाती है, मगर यातायात सुगम बनाने के परिप्रेक्ष्य में उपयुक्त पार्किंग पर पर्याप्त खर्च पर ध्यान नहीं दिया जाता। ऐसे में वाहन चालक सड़कों के किसी भी हिस्से पर वाहन खड़ा करना शुरू कर देते हैं। इससे आवागमन में असुविधा होती है। सड़कों पर बड़ी संख्या में लोग तनाव, वाद विवाद और दुर्घटनाओं का सामना भी करते हैं। 15 मई, 2023 को रोड एक्सीडेंट सैंपलिंग सिस्टम फॉर इंडिया के डेटाबेस के आधार पर बॉश लिमिटेड की प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2021 में सड़कों पर पैदल चलने वाले घायल लोगों की संख्या 29200 थी जो यूरोप और जापान की संयुक्त सड़क दुर्घटनाओं से अधिक थी। ऐसे में शहरों में सड़क एवं यातायात व्यवस्था में सुधार के कदम बढ़ाना जरूरी है। 

डॉ. जयंतीलाल भंडारी


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