राजनीति : बेवजह की बयानबाजी
उद्धव गुट शिवसेना (Uddhav faction Shiv Sena) के नेता संजय राउत (Sanjay Raut) भाजपा (BJP) और मोदी सरकार (Modi Govt) के विरुद्ध हर विषय पर तीखे बयान को अपनी पहचान बना चुके हैं।
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कोल्हापुर (Kolhapur) में औरंगजेब टीपू सुल्तान (Aurangzeb Tipu Sultan) को लेकर हुए तनाव पर भी उन्होंने प्रदेश की BJP Govt को घेरा है। उन्होंने कहा है कि बजरंगबली (Bajrangbali) काम नहीं आए तो अब औरंगजेब (Aurangjeb) को ले आए हैं। कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति उनके बात से सहमत नहीं होगा क्योंकि औरंगजेब और टीपू सुल्तान की तस्वीर लहराने वाले सोशल मीडिया पर डालने वाले भाजपा के लोग नहीं थे।
सच यह है कि इसके विरुद्ध हिंदू संगठनों (Hindu Communities) ने बंद का आयोजन किया था जिस पर पथराव हुआ और फिर तनाव बढ़ गया। संजय राउत (Sanjay Raut) ने इसमें यह भी कह दिया कि उसी तरह ठोक देना चाहिए था जैसे उत्तर प्रदेश में ठोक देते हैं। राउत ने किसके संदर्भ में ठोकने के लिए कहा यह वही जानें। क्योंकि इसमें हिंदू और मुस्लिम दो पक्ष है। किंतु इसका महत्त्व इस मायने में है कि संजय राउत जैसा भाजपा से जला-भुना और प्रतिशोध की आग में जलते हुए व्यक्ति के मुंह में भी ऐसी स्थितियों पर नियंतण्रऔर भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न होने के लिए उत्तर प्रदेश का उपचार सही नजर आया है। अगर संजय राउत की बातों का सीधा अर्थ लगाएं तो वह यही कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में ऐसी घटनाएं हुई होती तो अभी तक दोषी दिखने वाले व्यक्तियों की शामत आ चुकी होती। तो इसे किस तरह देखा जाए? उत्तर प्रदेश सरकार के लिए ठोको शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता अखिलेश यादव ने किया था।
ठोको से उनका तात्पर्य था कि यहां मुठभेड़ के नाम पर सीधे गोली मार दी जाती है। अखिलेश की ओर से आरोप था कि योगी सरकार के अंदर कानून ताक पर रख दिया गया है और पुलिस सरेआम गोली मारती है। प्रदेश में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के नेतृत्व में भाजपा सरकार आने के बाद यहां के मुठभेड़ों तथा अपराधियों - माफियाओं-दंगाइयों-गुंडों आदि पर चौतरफा टूट पड़ने की कार्रवाई की विरोधियों द्वारा लगातार आलोचना की गई है। दूसरी ओर आप देखेंगे कि उत्तर प्रदेश की ऐसी कार्रवाइयों को आम लोग देश भर में उदाहरण के रूप में पेश करते हैं। आप सहमत हो या असहमत, सच यही है। मैं पिछले कई दिनों से उत्तर प्रदेश की यात्रा पर हूं। लोगों से प्रतिदिन संवाद होता है।
ऐसा नहीं है कि प्रदेश सरकार के सारे कायरे से लोग संतुष्ट हैं। अनेक कायरे से असंतोष है किंतु ज्यादातर के मुंह से एक ही बात निकलती है कि इस सरकार में हम चैन की नींद सोते हैं, हमें किसी प्रकार का डर भय नहीं है। यह प्रदेश में आम प्रतिक्रिया है। दूसरे प्रदेशों में जाइए जब भी कोई बड़ा अपराध या तनाव होता है आम लोग कहते हैं कि यहां भी उत्तर प्रदेश का इलाज जरूरी है। संजय राउत भले पूछे जाने पर कुछ और स्पष्टीकरण दें उनके बयान में भी इसी भाव की अभिव्यक्ति होती है। कल्पना करिए अगर कोल्हापुर और अहमदनगर की वारदात उत्तर प्रदेश के शहरों में हुई होती तो वहां सरकार और पुलिस प्रशासन कैसे उससे निपटता? कोल्हापुर की तरह अगर यहां औरंगजेब की तस्वीर कोई लहराता या सोशल मीडिया पर डालता तो उसके लिए यह अंतिम सांप्रदायिक कट्टरता का दुस्साहस साबित होता।
यही स्थिति विरोध प्रदर्शन पर पथराव करने वाले की भी होती। ऐसा नहीं है कि महाराष्ट्र की भाजपा शिवसेना सरकार ने स्थिति को संभाला नहीं। पुलिस ने त्वरित कार्रवाई से स्थिति को नियंत्रित किया और तीन दर्जन से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। हालांकि महाराष्ट्र की पुलिस पर यह आरोप लगा है कि उसने जुलूस निकाल रहे हिंदुओं पर ही लाठीचार्ज किया। भाजपा समर्थक कह रहे हैं कि औरंगजेब और टीपू सुल्तान की तस्वीरों से चिढ़ाने और उत्तेजित करने का अपराध जिन लोगों ने किया उनका विरोध करने वालों पर पुलिस टूट पड़ी तो इसे न्याय कैसे कहा जाएगा? इस कारण हिंदू संगठन के लोग सरकार के विरुद्ध आक्रोश प्रकट कर रहे हैं। वैसे कार्रवाई मुसलमानों के विरुद्ध भी हुए। उत्तर प्रदेश में हमने ज्ञानवापी मुद्दे पर पिछले वर्ष जून में शुक्रवार की नमाज के बाद दंगा करने की कोशिशें देखीं हैं। उसके बाद क्या हुआ? जिनके चेहरे वीडियो फुटेज में दिखे उन पर पुलिस ऐसे टूट पड़ी जैसे हिंसक जानवर के विरुद्ध कार्रवाई हो। मुख्य चेहरों की संपत्तियों की समीक्षा की गई और बुलडोजर ने अपना काम शुरू कर दिया। बुलडोजर की कार्रवाई पर लगातार छाती पीटकर स्यापा करने वाले सामने आते रहे, पर यह रुका नहीं। करोड़ों की संपत्तियां ध्वस्त हुई। याद करिए, अतीक अहमद ने हत्या के कुछ ही दिनों पूर्व गांधीनगर से प्रयागराज आते समय कातर भाव से बोला था कि मिट्टी में तो मिल चुके हैं अब रगड़ा जा रहा है।
ऐसा भी नहीं है कि उप्र में अपराध का पूरी तरह अंत हो गया। यह भी कहना गलत होगा कि मजहबी कट्टरता की सोच से हिंसा और तनाव पैदा करने वाले प्रदेश की सीमा के अंदर नहीं रहे। सच यह है कि उप्र को सांप्रदायिक हिंसा और तनाव की आग में झोंकने की सोच रखने वालों की संख्या देश के किसी भी राज्य से संभवत: ज्यादा है। कारण, ऐसे लोगों को लगता है कि अगर उप्र में हमने उथल-पुथल मचा दिया तो हिंदुत्व की लहर कमजोर पड़ेगी, भाजपा की आवाज क्षीण होगी क्योंकि योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व के एक प्रमुख चेहरा बन चुके हैं। मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री से लेकर पूरी सरकार की छवि हिंदुत्व की है। बावजूद अगर ये शक्तियां सफल नहीं हो रहीं तो इनके कारणों का निष्पक्षता से अध्ययन होना चाहिए। मनुष्य समाज में अपराध पूरी तरह खत्म होने या ना रहने का समय इतिहास में कभी नहीं था।
अपराधियों के अंदर भय होना चाहिए कि अगर उन्होंने साहस किया तो उनकी खैर नहीं। यह स्थिति उत्तर प्रदेश में कायम हुई है। संजीव जीवा की लखनऊ न्यायालय में हत्या ने निस्संदेह पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था पर फिर प्रश्न खड़ा किया है। क्या किसी दूसरी सरकार के अंदर मुख्तार की ऐसी दुर्दशा और सजा मिलने की कल्पना की जा सकती थी? कानून के राज का एक अर्थ पुलिस प्रशासन की धाक और कानून तोड़ने वालों, उसकी मंशा रखने वालों के अंदर भय कायम रखना है। हां, इसमें पुलिस प्रशासन की जिम्मेवारी बनती है कि वह अपनी सीमाओं को पार न करें तथा छोटी-मोटी गलतियां करने वालों के साथ भी अपराधियों जैसा व्यवहार करने से बचे। आम लोग, आम कार्यकर्ताओं की बातें सुने उनका सम्मान करें। सरकार में राजनीतिक नेतृत्व को भी इस पर दृष्टि रखनी पड़ेगी।
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