ईद-उल-फितर : शांति के प्रतीक का त्योहार

Last Updated 22 Apr 2023 01:05:16 PM IST

मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही तीज त्योहारों की परंपरा रही है इसलिए दुनिया के लगभग सभी सभ्यताओं में किसी-न-किसी नाम और रूप से कोई-न-कोई त्योहार की धारणा रही है।


ईद-उल-फितर : शांति के प्रतीक का त्योहार

अरब और उसके आस पास के समाज में भी मुहम्मद (स0) के अवतरण से पहले भी त्योहार और मेलों का चलन था। इस्लाम (Islam) के शुरू में मुस्लिम समाज (Muslim society) में अभी तीज त्योहारों की कोई परिकल्पना नहीं थी। जब लोगों ने अपने नबी से इस संबंध में आग्रह किया तो नबी ने इसे सहर्ष स्वीकारते हुए कहा कि सभी कौमों में त्योहार होते हैं, लेकिन हम मुसलमानों के लिए दो त्योहार है। एक ईद उल फितर और दूसरी ईद उल अजहा (Eid un Azaha) । जहां ईद उल फितर रमजान (Ramadan) के एक पूरे महीने उपवास के उपरांत मनाया जाता है वहीं ईद उल अजहा पैगंबर इब्राहिम द्वारा अपने बेटे को ईश्वर के लिए बलिदान करने की घटना के याद के रूप में चौपाए की बली देकर मनाया जाता है।

ईद उल फितर (Eid-ul-Fitr) जिसे सिर्फ  ईद (Eid) भी कहा जाता है; प्रत्येक वर्ष अरबी कैलेंडर के माह रमजान में पूरे महीने के निर्जला व्रत की समाप्ति के बाद शव्वाल माह की प्रथम तिथि को मनाया जाता है। ऐसी धारणा है कि यह ईश्वर द्वारा प्रदत्त एक पुरस्कार है जो उसके भक्तों को एक माह के निर्जला व्रत, संयम और धर्म परायणता के फल स्वरूप दिया जाता है। ईद का शाब्दिक अर्थ खुशी होता है जो त्योहार का पर्याय है। मुस्लिम श्रद्धालु इसे ईश्वर को धन्यवाद ज्ञापन के साथ-साथ आपसी भाईचारे और सौहार्द के रूप में भी मनाते हैं। इस दिन सामान्य दिनचर्या के अलावा सुबह एक विशेष प्रार्थना सभा नमाज ईदगाह या किसी भी मस्जिद में अदा की जाती है।

मुस्लिम बंधु नये कपड़े पहनते हैं, बच्चों को उपहार स्वरूप ईदी के रूप में पैसे और गिफ्ट दिए जाते हैं। लजीज पकवान बनाए जाते हैं और एक स्पेशल मिष्ठान सेवई भारतीय ईद की विशेषता रही है। लोग एक-दूसरे के घर जाकर उनसे मिलकर ईद की बधाई देते और एक-दूसरे से गले मिलते हैं। मुस्लिम श्रद्धालु रमजान और ईद के ही अवसर पर जकात (एक प्रकार का धार्मिंक आर्थिक कर जो इस्लाम की पांच बुनियादी स्तंभों में से एक है। जिसका निकालना प्रत्येक आर्थिक रूप से संपन्न मुसलमान के लिए अनिवार्य है) निकालते हैं, जो उनकी कुल वार्षिक बचत का लगभग 2.5 फीसद होता है।

जिसे वो अपने निर्धन रिश्तेदारों, पड़ोसियों और गरीबों में बांटते हैं। फितर जो एक प्रकार का धार्मिंक आर्थिक उपहार है, उसे भी बेसहारा और जरूरतमंद लोगों को ईद की विशेष नमाज से पहले ही देने की परंपरा है ताकि वो अपनी जरूरत के सामान खरीद कर ईद की खुशी में समाज के साथ भागीदार हो सकें। इसी फितर दान के कारण इस ईद का नाम ईद उल फितर रखा गया है। इसके अतिरिक्त ईद के दिन एक दूसरे को क्षमा करने और क्षमा मांगने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है। मुस्लिम महिलाएं भी इस पर्व पर घर गृहस्थी को सजाने संवारने में तत्पर रहती है। मौजूदा दौर में अपवाद स्वरूप ही सही कुछ घरों में गांव-मुहल्ले की महिलाएं इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से जमात बनाकर ईद की नमाज भी पढ़ती हैं।

ईद एक ऐसा पर्व है जो सालों-साल से बिछड़े एवं रूठे परिवार को परिवार से, दोस्त को दोस्त से, भाई को भाई से और दुश्मन को  दुश्मन से मिलाकर दोस्ती, हमदर्दी, भाईचारा पैदा करती है। इतना ही नहीं ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी से उठकर मेल-जोल एवं मुहब्बत से रहने का संदेश देती है। आपसी भाईचारा और शांति तथा सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाने का बहुमुल्य अवसर प्रदान करती है। पैगंबर साहब के समय ईद हर्ष उल्लास के साथ उत्पीड़ित, उपेक्षित, प्रताड़ित समाज को मुख्यधारा में लाने और उनकी जकात, फितर से आर्थिक मदद द्वारा सामाजिक उत्थान के रूप में मनाया जाता था एवं महिलाएं भी ईद की विशेष प्रार्थना सभा में मौजूद रहा करती थीं।
पैगंबर मुहम्मद चाहते थे कि उनके अनुयायी अपने सुख-दुख बिना किसी नस्लीय, जातियां, आजाद-गुलाम और लैंगिक भेदभाव के आपस में साझा करें। उनका स्पष्ट संदेश था कि ना सिर्फ  ईद के दिन बल्कि हर समय समाज के बीच आपसी सहायता एवं सहयोग हो।

पैगंबर मुहम्मद ईद के दिन किसी भी प्रकार के शक्ति प्रदर्शन, रौबदारी, दिखावा और अतिक्रमण को उचित नहीं मानते थे। देशज पसमांदा मुस्लिम समाज भी अपने अभावग्रस्त स्थिति के बावजूद अपने धर्म परायणता और भारत के आध्यात्मिकता से वशीभूत होकर, बढ़-चढ़ कर ईद के त्योहार को अपने हिंदू भाईयों के साथ मिल-जुल कर मनाता है। आज जब देश में सांप्रदायिकता का माहौल चरम पर है तो ऐसे में ईद जैसे त्योहार और प्रासंगिक हो जाते हैं। सभी देशवासियों को चाहिए कि ऐसे त्योहारों को हम आपसी सौहार्द और भाईचारे के बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल करें। आइए आज ईद के इस पावन पर्व पर हम सब मिल कर भाईचारे, खुशहाली के साथ-साथ, सामाजिक न्याय और महिला उत्थान का प्रणलें और एक समृद्ध और उन्नत भारत के निर्माण के साक्षी बनें।

डॉ. फैयाज अहमद फैजी
नई दिल्ली


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