Tobacco Gutkha : सरकार पान मसाला एवं तंबाकू के गुटखों पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगा पा रही
हाल में सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) की इस तल्ख टिप्पणी ने सबका ध्यान खींचा है कि सरकार पान मसाला एवं तंबाकू के गुटखों पर प्रतिबंध (Ban on pan masala and tobacco gutkhas) क्यों नहीं लगा पा रही।
![]() गुटखा पर रोक : कमजोर क्यों है सरकार |
समाज को भी उन प्रश्नों पर विचार करना होगा कि वास्तव में सरकार इसे नियंत्रित क्यों नहीं कर पा रही: क्या हमारे कानून अपर्याप्त हैं? क्या कानूनों में अस्पष्टता है? गुटखा कंपनियों का व्यवहार निरंकुश क्यों है? गुटखा कंपनियों का विज्ञापन करने वाले रोल मॉडल का क्या कोई सामाजिक दायित्व नहीं है? क्या निरक्षरता इसका प्रमुख कारण है? गुटखे की पीक से लाल दीवारों से क्या हम स्वच्छ भारत की दिशा में बढ़ सकेंगे?
भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा तंबाकू उपभोक्ता देश है। ग्लोबल यूथ टोबाको सव्रे, 2019 के अनुसार भारत में 15 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 26.7 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करते हैं यानी हर 5वां भारतीय तंबाकू का सेवन कर रहा है। भारत में तंबाकू एवं पान मसाला गुटखा का बाजार 40 हजार करोड़ रुपये से अधिक का है। ऐसे में गुटखा निर्माता कंपनियां बाजार पर पकड़ बनाए रखने के लिए सारे तरीके इस्तेमाल करती हैं। भारत में तंबाकू लॉबी इतनी मजबूत है कि राजनीतिक दलों पर उनका बहुत गहरा प्रभाव है। तंबाकू की खपत के खिलाफ कोई भी कार्रवाई राजनीतिक मुद्दा बन जाएगी और उन लोगों की लोकप्रियता को प्रभावित करेगी जिन्होंने प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। गुटखा निर्माता इस बात को भी अच्छी प्रकार से जानते हैं कि सरकार गुटखा कभी बंद नहीं करवा सकती।
यदि सरकार गुटखा पर प्रतिबंध (ban on gutka) लगाना भी चाहे तो नशा करने की आदत पर प्रतिबंध कैसे लगाएगी? यदि गुटखे पर प्रतिबंध लगा भी दिया जाता है तो इसकी कालाबाजारी बढ़ जाती है जिससे गुटखा निर्माता कंपनियों के लाभ कम होने की बजाय और अधिक बढ़ जाते हैं। इसका प्रमुख कारण है कि भारत की 25 प्रतिशत निरक्षर और 40 प्रतिशत केवल साक्षर जनता को गुटखा निर्माता कंपनियों ने आकषर्क विज्ञापनों द्वारा मनोवैज्ञानिक रूप से गुलाम बना रखा है। आज के युवाओं में उद्देश्यहीनता के कारण इन विज्ञापनों में दिखाई जाने वाली टैगलाइन जैसे: ‘कुछ कर ऐसा दुनिया बनना चाहे तेरे जैसा’ से बहुत प्रभावित होते हैं। गुटखा एवं तंबाकू को खाकर उन्हें लगता है कि वे भी वही सब कुछ कर सकते हैं, जो उनका हीरो करता है। विज्ञापनों के मनोविज्ञान का लाभ लेकर गुटखा निर्माता कंपनियां बड़े-बड़े होर्डिग्स लगवाती हैं कि न चाहकर भी लोगों का पान मसाला गुटखा पर ध्यान निरंतर बना रहे।
दोस्तों के साथ शौकिया या फिर बड़ों की देखा देखी नये-नये युवाओं को गुटखा खाने की इतनी लत लग जाती है कि वे पान मसाला के एडिक्ट हो जाते हैं। यद्यपि पान मसाला, गुटखा, जर्दा, खैनी आदि बनाने वाली कंपनियां दावा करती हैं कि वे प्रसंस्कृत तंबाकू बेचती हैं। इसमें रसायनों के साथ इलायची, लौंग और केसर, फ्लेवर जैसी सामग्री मिलाकर तंबाकू को स्वादिष्ट बनाया गया है। यह गुटखा हर साइज और हर कीमत में आसानी से उपलब्ध है।
तंबाकू के बढ़ते सेवन को नियंत्रित करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा निरंतर प्रतिबंध लगाए जाते रहे हैं। 2003 में सीओटीपीए एक्ट के कारण गुटखा के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। गुटखा निर्माता कंपनियों ने अधिनियम के छिद्रों का लाभ लेते हुए गुटखा के विज्ञापन को इलायची ब्रांड के नाम के साथ प्रोमोट करना शुरू कर दिया जबकि वे स्पष्ट रूप से पान मसाला और तंबाकू के गुटखे का ही प्रचार करती हैं। सभी कंपनियां अपने विज्ञापन का मनोवैज्ञानिक तरीके से इस्तेमाल कर गुटखा का उपयोग कम नहीं होने देतीं। 2011 में फेडरल फूड सेफ्टी एंड रेग्युलेशन एक्ट के अंतर्गत व्यवस्था की गई कि कोई कंपनी अपने उत्पादों में तंबाकू मिला कर बेचेगी तो उसे बैन कर दिया जाएगा। तंबाकू को बेचने पर प्रतिबंध न होने के कारण कंपनियों ने पान मसाला और तंबाकू के दो पाउच बनाने शुरू कर दिए। 2011 के अधिनियम में यह व्यवस्था भी की गई सरकार एक निश्चित समय के लिए इन उत्पादों पर बैन लगा सकती है। इस एक्ट के अंतर्गत मई, 2013 तक 24 राज्यों और 3 केंद्रशासित प्रदेशों में गुटखे पर रोक लगा दी गई थी। इसके बावजूद गुटखे की मांग बनी रही।
जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य है कि लोग जानते हैं कि तंबाकू सेवन उनके स्वास्थ्य के लिए जहर है, इसके बावजूद वे अपनी मौत को खरीदने के लिए पैसे देते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार विश्व में प्रति वर्ष लगभग 80 लाख मौतें और भारत में 2.3 लाख मौतें तंबाकू सेवन के कारण होती हैं। राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम की वेबसाइट के अनुसार तंबाकू के सेवन के कारण भारत में प्रति दिन 3500 लोगों की अकाल मृत्यु हो जाती है। देश में होने वाले कैंसर में से 70 प्रतिशत से अधिक मामले मुंह के कैंसर के होते हैं, जिसका प्रमुख कारण पान मसाला और तंबाकू ही है। एक शोध के अनुसार तंबाकू चबाना तंबाकू खाने का सबसे खराब तरीका है, और मानव शरीर को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है।
आम तौर पर गुटखा खाने वाला औसतन 3 से 4 गुटखा प्रति दिन खा लेता है। यदि इसे वर्ष के आधार पर जोड़ा जाए तो साल में एक व्यक्ति औसतन 6000 से 6500 रुपये का गुटखा चबा जाता है। यदि इसे कुल तंबाकू खाने वालों की संख्या के आधार पर निकाला जाए तो रकम लाखों करोड़ों में है जबकि सरकार को मिलने वाला राजस्व स्वास्थ्य पर किए व्यय की तुलना में बहुत कम होता है। 2020 में सरकार को तंबाकू से 1234 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ था जबकि सरकार ने तंबाकू से होने वाली बीमारियों पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से 1,77,000 करोड़ व्यय किए थे। यदि सरकार इसे रोकने में स्वयं को असमर्थ महसूस करे तो उसे इस पर से प्रतिबंध हटाने के साथ एक निश्चित नियमावली के साथ बेचने की छूट देनी चाहिए क्योंकि तंबाकू पर लगने वाले प्रतिबंधों के कारण लोग अन्य अधिक शक्तिशाली दवाओं की ओर मुड़ सकते हैं।
सरकार को इस पर भारी कर आरोपित करना चाहिए। करों से होने वाली आय से तंबाकू के दुष्प्रभावों के प्रति लोगों को जागरूक करे। गुटखा जैसी दिखने वाली वस्तुओं के विज्ञापनों एवं इसको प्रोत्साहित करने वाले सभी प्रकार के विज्ञापनों पर रोक लगनी चाहिए। रोल मॉडल्स को तंबाकू एवं पान मसाला गुटका के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूकता के लिए सामाजिक दायित्व का निर्वाह करना चाहिए। तंबाकू एवं पान मसाला गुटखा के दुष्प्रभावों को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
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