बाघ अर्थव्यवस्था : आसान नहीं भारत की राह

Last Updated 22 Apr 2023 01:15:38 PM IST

बाघ अर्थव्यवस्था’ शब्दावली का प्रयोग आमतौर पर दक्षिण-पूर्व एशिया में बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के लिए किया जाता है। ए


बाघ अर्थव्यवस्था : आसान नहीं भारत की राह

शियाई बाघ अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में सिंगापुर, हांगकांग, दक्षिण कोरिया, ताइवान आदि शामिल हैं। ऐसी अर्थव्यवस्था में विकास का आधार  निर्यात होता है। अर्थात ऐसे देश निर्यात की मदद से विकास की रफ्तार को कायम रखते हैं। सिंगापुर, हांगकांग, दक्षिण कोरिया, ताइवान आदि देशों ने निर्यात और मुक्त व्यापार की नीतियाँ अपनाई और विकास के प्रवाह को कायम रखने में सफल रहे।

भारत भले ही इंग्लैंड को पछाड़कर विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और अब सिर्फ संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी की अर्थव्यवस्था उससे बड़ी है, लेकिन भारत के विकास के पीछे निर्यात न होकर दूसरे कारक हैं। भारत में निर्यात की रफ्तार धीरे-धीरे तेज हो रही है, लेकिन इसे अपेक्षित कतई नहीं कहा जा सकता है। भारतीय बाजार को कारोबार हेतु दुनिया के लिए अभी भी पूरी तरह से नहीं खोला गया है। देश में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्र मिलकर काम कर रहे हैं, लेकिन निजी क्षेत्र की भागीदारी कम है। भारत जब आजाद हुआ था, तब भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2.7 लाख करोड़ रुपये की थी, जो वित्त वर्ष 2020-21में बढ़कर 135.13 लाख करोड़ रुपये की हो गई।

वर्ष 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना शुरू हुई, लेकिन अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में यह बहुत सफल नहीं रही। बाद की पंचवर्षीय योजनाओं का भी अपेक्षित परिणाम नहीं निकल सका। हालांकि, वर्ष 1961 से भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि दृष्टिगोचर होने लगा। वर्ष 1950 से वर्ष 1979 तक देश की जीडीपी औसतन 3.5 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रही थी, जिसे भारतीय अर्थव्यवस्था में ‘हिंदू वृद्धि दर’ कहा गया, जबकि वर्ष 1950 से वर्ष 2020 तक भारत की जीडीपी वृद्धि दर औसतन 6.15 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ी। वर्ष 2010 की पहली तिमाही में जीडीपी दर 11.40 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। हालांकि, कोरोना काल में आधार प्रभाव के कारण इससे भी बेहतर जीडीपी वृद्धि दर देखी गई, जबकि वर्ष 1979 की चौथी तिमाही में इसने 5.20 की सबसे कम वृद्धि दर्ज की। उल्लेखनीय है कि महामारी में जीडीपी वृद्धि दर माइनस में चली गई थी। वर्ष 1960 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 81.3 अमेरिकी डॉलर थी, जो अप्रैल 2021 में बढ़कर 7332.9 अमेरिकी डॉलर हो गई। देश में प्रति व्यक्ति आय की वार्षिक वृद्धि दर वित्त वर्ष 1980-81 से वित्त वर्ष 1991-92 के दौरान औसतन 3.1 प्रतिशत रही, जो वित्त वर्ष 1992-93 से वित्त वर्ष 2002-03 के दौरान बढ़कर औसतन 3.7 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई, जो पुन: वित्त वर्ष 2003-2004 से वित्त वर्ष 2007-2008 के दौरान दोगुनी होकर औसतन 7.2 प्रति वर्ष के स्तर पर पहुंच गई। बाद के वर्षो में भी इसमें उतरोत्तर तेजी देखी गई।

वित्त वर्ष 2021-22 की दिसम्बर तिमाही के दौरान जीडीपी 5.4 प्रतिशत रही और तीसरी और  चौथी तिमाही में भी जीडीपी वृद्धि दर में कमी दर्ज की गई, लेकिन समग्र रूप से वित्त वर्ष 2021 के दौरान जीडीपी में 8.7 प्रतिशत की प्रभावशाली वृद्धि दर्ज की गई। इतना ही नहीं, वित्त वर्ष 2021की चौथी तिमाही और वित्त वर्ष 2022की पहली तिमाही के दौरान भी जीपीपी में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई, लेकिन वित्त वर्ष 2022 में जीडीपी घटकर 4.1 प्रतिशत रह गई। जीडीपी में कमी के कारक महामारी, भू-राजनैतिक संकट, रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध, महंगाई की ऊंची दर आदि रहे। वर्ष 1991 में विदेश व्यापार, कर सुधार, विदेशी निवेश आदि क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए अनेक उपाय किए गए, जिनसे भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ने में मदद मिली। वर्ष 2015 में भारतीय अर्थव्यवस्था 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से आगे निकल गई और विश्व बैंक के अनुसार वर्ष 2021 में भारत की जीडीपी बढ़कर 3.1 ट्रिलियन डॉलर की हो गई। देश में उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद निजी क्षेत्र का तेजी से विकास हुआ, लेकिन अभी भी भारतीय अर्थव्यवस्था मिश्रित बनी हुई है अर्थात देश में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र मिलकर काम कर रहे हैं। वैसे, आधारभूत संरचना को मजबूत बनाने में निजी क्षेत्र अभी भी बहुत पीछे है।

वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज (Global Rating Agency Moodys) ने 9 भारतीय निजी और सरकारी बैंकों की रेटिंग का उन्नयन करते हुए उसे आउटलुक निगेटिव से स्टेबल कर दिया गया है। मूडीज ने जिन बैंकों की रेटिंग का उन्नयन किया है, उनमें निजी क्षेत्र के एक्सिस बैंक, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और सरकारी क्षेत्र के बैंक ऑफ बड़ौदा, केनरा बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, एक्जिम बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया शामिल हैं। मूडीज ने बैंकों के अलावा भारत की रेटिंग का भी उन्नयन करते हुए सॉवरेन निगेटिव से स्टेबल कर दिया है। भारत की रेटिंग फिलवक्त बीएए3 है। मूडीज द्वारा भारत और भारतीय बैंकों की रेटिंग उन्नयन का अर्थ है कि भारतीय अर्थव्यवस्था और भारतीय बैंकों से जुड़े जोखिम में कमी आ रही है। आज दुनिया के विकसित देश मंदी की गिरफ्त में आने के कगार पर हैं, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है। मंदी के प्रमुख कारकों, जीडीपी, बेरोजगारी, महंगाई आदि के मामलों में भारत दुनिया के विकसित देशों से बेहतर स्थिति में है।

फिलवक्त, भारत के तमाम पड़ोसी देशों सहित यूरोप और अमेरिका में महंगाई से हाहाकार मचा हुआ है, लेकिन भारत में महंगाई मार्च 2023 में घटकर 15 महीनों के निचले स्तर 5.66 प्रतिशत पर पहुंच गई। इधर, यूरोपीय देशों की मुद्राएं डॉलर के मुकाबले कमजोर हो गई हैं, लेकिन रुपये की स्थिति उनके मुकाबले बेहतर है और हाल में रुपये की तुलना में डॉलर में कमजोरी देखी गई है। पड़ताल से साफ है, बाघ अर्थव्यवस्था के प्रमुख मानक निर्यात के मामले में भारत अभी भी बहुत पीछे है, जिसके कारण मौजूदा विकास दर कम है। ऐसे में जब तक भारत ‘मेक इन इंडिया’ की संकल्पना को पूरी तरह से साकार करने में सफल नहीं होता है, भारत का बाघ अर्थव्यवस्था बनने का सपना साकार नहीं हो सकता है। जब भारत सभी वस्तुओं के उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा, तब उसे स्वत: आयात से मुक्ति मिल जाएगी।

सतीश सिंह


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