Ukraine crisis: यूक्रेन के दलदल में जापान

Last Updated 23 Apr 2023 01:09:41 PM IST

यूक्रेन संकट (Ukraine crisis) को लेकर जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा (Japanese Prime Minister Fumio Kishida) की अतिसक्रियता ने भारत की विदेश नीति (India's Foreign Policy) के लिए एक नई समस्या पैदा कर दी है।


यूक्रेन के दलदल में जापान

भारत यात्रा के बाद किशिदा सीधे यूक्रेन पहुंचे तथा वहां घोषणा की कि ‘यूक्रेन एशिया का भविष्य (Ukraine the Future of Asia) है।’ ऐेसे समय जबकि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने ताइवान संकट में उलझने से इनकार किया है, उस समय किशिदा यूक्रेन को लेकर चिंतित क्यों हैं। हजारों मील दूर पूर्वी यूरोपीय देश में संघर्ष से जापान की सुरक्षा को क्या खतरा है यह समझ से परे है। किशिदा सरकार ने देश की ‘शांतिवादी’ विदेश और सुरक्षा नीति में बदलाव करते हुए रक्षा बजट में भारी वृद्धि की है। रूस जापान के इस बदलते रवैये से खुश नहीं है।

रूस (Russia) और जापान (Japan) के बीच कुछ द्वीपों (कुरील) को लेकर विवाद है। उसी क्षेत्र में रूस के तेल और गैस भंडार हैं जिनमें भारतीय कंपनियों का भारी निवेश है। इन्हीं संसाधनों का उपयोग करने के लिए भारत और रूस ने ब्लादिवोस्तोक और चेन्नई के बीच समुद्री परिवहन गलियारा संचालित करने की महत्त्वपूर्ण परियोजना पर काम शुरू किया है। किशिदा की यूक्रेन यात्रा के तुरंत बाद रूस ने अपने सुदूर-पूर्वी समुद्री बेड़े को सतर्क कर दिया तथा सैन्य अभ्यास शुरू किया। यह जापान के लिए सीधा संकेत था। अभी तक हिंद प्रशांत क्षेत्र में ताइवान ही संभावित संघर्ष का केंद्र माना जा रहा था। अब रूस और जापान के बीच तनातनी के संकेत से इस क्षेत्र में संघर्ष का एक नया क्षेत्र उभर रहा है। अब तक भारत यूक्रेन संकट को लेकर रूस और पश्चिमी देशों के साथ संबंधों में संतुलन बनाये रखा है। अब उसके सामने रूस और जापान के बीच संभावित शक्ति परीक्षण के संबंध में संतुलन कायम करने की चुनौती है। इन्हीं परिस्थितयों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अगले महीने के मध्य में जापान में आयोजित नेता के रूप में जी-7 शिखर वार्ता में आमंत्रित देश के नेता के रूप में भाग लेना है।

प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) को जी-7 शिखर वार्ता (G-7 Summit) में पश्चिमी देशों और जापान के दबाव का सामना करना होगा। इन देशों की ओर से यह दबाव डाला जाएगा कि भारत यूक्रेन युद्ध के संबंध में तटस्थता के अपने रवैये में बदलाव करे। वास्तव में अभूतपूर्व आर्थिक और राजनीतिक प्रतिबंधों का सामना कर रहे रूस को भारत से बहुत संबल मिला है। एक ओर चीन ने रूस के साथ अघोषित सैन्य लामबंदी की है वहीं दूसरी ओर भारत ने आर्थिक और राजनयिक नजरिये से रूस को अलग-थलग करने की कोशिशों को नाकाम बनाया है। भारत के इस रवैये से पश्चिमी देश नाराज हैं। हालांकि उन्होंने सार्वजनिक रूप से इसका इजहार नहीं किया है। लेकिन आने वाले दिनों में भारत के प्रति इन देशों का रवैया सख्त होगा। इसका संकेत जापान ने हाल में आयोजित जी-7 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में दिखाई दिया।

जी-7 देशों ने यह चेतावनी दी है कि रूस (Russia) के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों की अनदेखी करने वाले देशों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। यह धमकी देते समय संयुक्त वक्तव्य में चीन या भारत का नाम नहीं लिया गया। भारत रियायती मूल्य पर रूस से बड़ी मात्रा में कच्चे तेल का आयात कर रहा है। अभी तक रूसी तेल की कीमत जी-7 देशों की ओर से मनमाने तौर पर लागू की गई अधिकतम (प्राइसकैप) धनराशि के दायरे में ही थी। लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे मेल की कीमतों में हो रही वृद्धि के कारण यह संभव है कि भारत को रूसी तेल प्राइस कैप के ऊपर खरीदना पड़े। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल में कहा था कि भारत प्राइस कैप के ऊपर भी रूसी तेल खरीद सकता है। यदि ऐसा होता है तो यह पश्चिमी देशों को खुली चुनौती होगी।

दुनिया में अमेरिका के प्रभाव में कमी आ रही है, लेकिन इसके बावजूद वह किसी भी देश का हाथ मरोड़ सकता है। शीत युद्ध के दौरान अमेरिका ने विरोधी देशों में तख्ता-पलट कराने और राजनीतिक नेताओं की हत्या कराने के हथकंडे अपनाये थे। अब समय बदल गया है, लेकिन किसी भी देश को अमेरिका के कोप का सामना करना पड़ सकता है। प्रधानमंत्री मोदी को अगले वर्ष आम चुनाव में जनादेश लेना है। रूस के रियायती कच्चे तेल  से आर्थिक मोच्रे पर देश को राहत मिली है, लेकिन अमेरिका की कोप दृष्टि घरेलू मोच्रे पर भी मोदी के लिए सिरदर्द साबित हो सकती है।

डॉ. दिलीप चौबे


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