खतरनाक हो सकता है जाति का ककहरा पढ़ाना

Last Updated 23 Apr 2023 01:24:03 PM IST

अखिल भारतीय कांग्रेस ने अपने रायपुर अधिवेशन में अनुसूूचित जातियों/जनजातियों अन्य पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यकों के संबंध में उध्र्व और महिलाओं तथा युवाओं के संबंध में क्षैतिज अवसर उपलब्ध करने के बारे में फैसला लिया था, तब मुझे अतीव प्रसन्नता हुई थी कि कांग्रेस बदलते हुए हिन्दुस्तान को समझने का प्रयास करने लगी है।


खतरनाक हो सकता है जाति का ककहरा पढ़ाना

लेकिन हाल में कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के जाति-जनगणना (caste census) के संबंध में जो विचार व्यक्त किए हैं, उन्हें देख कर निराशा हुई।

प्रतीत होता है, राहुल ने बिहार में चल रही जाति-जनगणना के स्वरूप का समर्थन किया है, जो अपने आप में उलझा हुआ और कुल मिला कर प्रतिगामी कार्यक्रम है। यदि राहुल ने सचमुच जाति जनगणना के बिहार मॉडल का समर्थन (Bihar model support0 किया है, तो यह मेरी दृष्टि से कांग्रेस के लिए खतरनाक है, ठीक वैसे ही जैसे शाह बानो मामले में उसकी गैर-वाजिब दखलंदाजी थी। नतीजतन,  कांग्रेस अपनी राजनीति में ढलान की तरफ अग्रसर हो गई। कांग्रेस का जाति-विषयक चिंतन (Congress's caste-related thinking) एक बार फिर ऐसे ही मोड़ पर दिख रहा है। इस विषयक जिस बिहार-मॉडल का वह अनुसरण करने जा रही है, अपने मूल में लोकदली-चिंतन है, जिसमें चरण सिंह के जमाने में तो थोड़ी आर्यसमाजी छौंक भी होती थी; लेकिन उनके उपरांत उसकी पृष्ठभूमि केवल खाप-दिमाग वाली रह गई है। इस खाप-दिमाग का अनुसरण कांग्रेस करे, यह राष्ट्रीय राजनीतिक ट्रैजेडी ही कही जाएगी।

जाति और वर्ण के सवाल पर इस मुल्क में पुराने जमाने से विमर्श होते रहे हैं। ठीक-ठीक कोई नहीं जानता कि जाति-वर्ण कब बने। भारतीय इतिहास के पूर्व-मध्यकाल और उसके पहले ज्यादातर भारतीय शासक गैर-ब्राह्मण तबकों से रहे। नंद पहला साम्राज्य था जिसने महाजनपदीय राजनीतिक स्थिति को एक राष्ट्र में बदलने की कोशिश की। वह शूद्र यानी मिहनतकश तबके से था। मौर्य भी ऐसे ही थे। शुंगों के बारे में जो जानकारी है उनका मूल द्विज था। लेकिन बाद के गुप्त वैश्य थे। पश्चिम में शक और हूण जैसी जातियों के लोग भी शासक बन रहे थे। पूरब में पाल वंश निश्चित तौर पर अद्विज था। दक्खिन में जो कलचुरी थे, वे वैश्य अथवा नापित ( हजाम ) थे। नाग वंश के बारे में इतिहास ने कोई खास जानकारी इकट्ठी नहीं की है लेकिन कश्मीर के अनंतनाग से लेकर दक्कन के नागपुर और असम के इलाकों तक नागवंशियों का इकबाल कायम था। ये प्राय: भारशिव अर्थात शैव थे। इन सबके होते जाति-वर्ण की सामाजिक व्यवस्था बहुत ताकतवर नहीं रही। बौद्धों के रूप में वर्णवाद का एक प्रबल आलोचक पक्ष भारतीय समाज में हमेशा उपस्थित रहा। लेकिन राजपूतों के हिन्दू द्विज व्यवस्था में शामिल होने की अभिलाषा ने वर्णवादी व्यवस्था को राजकीय ताकत दी। इस काल में जाति व्यवस्था को बल मिलना स्वाभाविक था।

सल्तनत और उससे बढ़ कर मुगल काल में सभी हुक्मरानों ने ब्राह्मणवादी जाति-व्यवस्था को इसलिए मजबूत किया कि इससे शासन करने में सुविधा होती थी। भारतीय इतिहास के सिक्ख, जाट सतनामी और डेक्कन के शिवाजी विद्रोह का ठीक ढंग से अध्ययन नहीं हुआ है। जब अध्ययन होगा और इसके नतीजे आएंगे, तब हमें मालूम होगा कि जाति प्रथा के खिलाफ विद्रोह की जड़ें कितनी गहरी थीं। पूरा भक्ति आंदोलन जाति प्रथा के विरु द्ध दीर्घ आंदोलन के सिवा आखिर है क्या? कबीर, रैदास, नानक आदि कवियों ने जातिवाद के विरुद्ध खुला विद्रोह किया। ‘जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान’ और ‘जातपात पूछे नहीं कोय, हरि को भजै सो हरि का होय’ का अभिप्राय क्या है? लेकिन इसी दौर में मुगल शासक अपने इस्लामी सामाजिक ढांचे का भी जातिकरण कर रहे थे। क्योंकि अकबर की हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए यह जरूरी कदम था। द्विज हिन्दू संभवत: मुसलमानों से सामाजिक स्तर पर जुड़ने के पूर्व उनके सामाजिक स्तरीकरण के आग्रही थे। नतीजतन मुसलमानों के बीच भी असारफ,  अजलाफ और अरजाल का वर्णानुक्रम बन गया। ब्रिटिश राज ने आरंभ में जाति व्यवस्था को चुनौती दी और सामाजिक सुधारों पर बल दिया। भारत में अंग्रेजी राज अद्विज जातियों के विद्रोह और सहयोग से संभव हुआ था। 1757 के पलासी, 1799 के मैसूर और 1818 के भीमा-कोरेगांव युद्ध में ब्रिटिश कंपनी फौज का साथ दलित योद्धाओं ने दिया था। इसलिए वे चाहते थे कि भारत में हिन्दू-मुसलमानों के ऊंचे तबकों का प्रभाव खत्म हो। लेकिन 1857 के बाद उनकी मानसिकता बदल गई। भारतीय समाज में फूट डालने के लिए उन्हें जाति व्यवस्था और सांप्रदायिक विभेद को मजबूत करना उपयोगी लगा। 1872 में जब सेन्सस आरंभ हुआ तो तब उन लोगों ने इसका पूरा उपयोग करना चाहा। सेन्सस में जाति को जोड़ना पहली बार 1881 हुआ।

जाति व्यवस्था का विरोध दूसरे स्तर पर विभिन्न रूपों में हो रहा था। महाराष्ट्र में जोतिबा फुले ने भक्तिकाल की ब्राह्मणवाद विरोधी और सामाजिक समत्व की भावना वाले सांस्कृतिक आग्रहों को पुरजोर गति दी। शिक्षा और वैज्ञानिक चेतना पर उनका जोर था। उनके अनुयायी भीमराव अंबेडकर ने बीसवीं सदी के तीसरे दशक में जातिवाद विरोधी आंदोलन की बागडोर संभाली। उनकी किताब ‘अनीहिलेशन ऑफ कास्ट’ को समझा जाना चाहिए। आधुनिक शासन-प्रशासन में आरक्षण या भागीदारी जाति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए नहीं, उसे समाप्त करने के लिए होनी चाहिए। इसलिए अंबेडकर की संकल्पना में आरक्षण को अनंतकाल तक के लिए नहीं चलना है। उनका मकसद जातिविहीन समाज है। यह सही है कि जाति के मौजूदा स्वरूप का पर्याप्त राजनीतिकरण हुआ है। इसके चुनावी जोड़- घटाव की शुरु आत चरण सिंह ने  की थी, जब उन्होंने उत्तर प्रदेश के बनिया-ब्राह्मण राजनीति को जवाब देने के लिए अजगर (अहीर, जाट, गुर्जर, राजपूत) समूह बनाया था। गुजरात में कांग्रेस नेता माधव सिंह सोलंकी ने इसी तर्ज पर पटेलों की राजनीति को ध्वस्त करने के लिए-क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी, मुसलमान-मोर्चा बनाया। इन सबका नतीजा अंतत: क्या निकला? सामाजिक-आर्थिक सवाल गौण पड़े और आधुनिक मूल्यबोध की जगह दकियानूसी मूल्यबोध प्रभावी हुए। समाज प्रगतिशील दौर से दकियानूसी दौर में आ गया। उत्तर प्रदेश और गुजरात आज किसके गढ़ बन गए हैं?

जाति अब वर्ग या जमात बनने लगी है, जो एक आधुनिक सामाजिक ढांचा है। किसी की सामाजिक स्थिति का परिचय ओबीसी, एससी या एसटी जैसे शब्दों से होने लगा है, जो अपेक्षाकृत अधिक उपयुक्त है। ओबीसी, एसटी या एससी जाति नहीं वर्ग है। ओबीसी अपने पूरे रूप में अन्य पिछड़ा वर्ग है, जाति नहीं। जनगणना का ढांचा ऐसा बनाना था कि केवल अन्य पिछड़ा वर्ग की घोषणा उन्हें करनी होती। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इस खाप विचारधारा को कांग्रेस का समर्थन मिला है। जैसे शाह बानो मामले में कांग्रेस के हस्तक्षेप ने मुस्लिम समाज और अंतत: पूरे भारतीय समाज को आधुनिक बोध से हटा कर मध्ययुगीन मूल्यबोध के बीच ला खड़ा किया और नतीजतन, दक्षिणपंथी सोच वाली राजनीतिक पार्टी भाजपा का ग्राफ आगे बढ़ा, वैसे ही जाति जनगणना वाले इस निर्णय से दबंग पिछड़ी जातियों के वर्चस्व-प्राप्त एक छोटे कुनबे का शेष पिछड़े समूहों पर वर्चस्व बढ़ेगा। समाज के आधुनिक की जगह मध्यकालीन मूल्यबोध से जुड़ने की संभावना बढ़ जाएगी। नई पीढ़ी को जाति का ऐसा ककहरा पढ़ाना खतरनाक हो सकता है।

प्रेमकुमार मणि


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