धार्मिक हादसों से छुटकारे की उम्मीद

Last Updated 03 Apr 2023 07:41:15 AM IST

देश के मंदिरों में जैसे-जैसे विशेष पर्व और भगवानों के प्रकट दिवस पर उत्सवधर्मिंता की धूम बढ़ रही है, वैसे-वैसे मंदिरों में जानलेवा हादसों की संख्या भी बढ़ रही है।


धार्मिक हादसों से छुटकारे की उम्मीद

उत्सवधर्मिंता बढ़ाने में सोशल एवं डिजिटल माध्यमों का खूब चामत्कारिक योगदान तो बढ़ रहा है, परंतु जब घटना घट जाती है, तब मौत से जूझ रहे लोगों को बचाने में इनका उपयोग सामने नहीं आ पाता?

200 साल पुरानी बावड़ी को 45 साल पहले 800 वर्ग फीट की छत डालकर ढका

ऐसा इंदौर में बालेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर हादसे में स्पष्ट रूप से देखने में आया है। हादसा घटने के पौन घंटे बाद पुलिस, प्रशासन और राहत दल मौके पर पहुंचे लेकिन एसडीआरएफ और पुलिस दलों के पास न तो बावड़ी में उतरने के लिए रस्सियां थीं और न ही सीढ़ियां। जबकि मंदिर प्रबंधन द्वारा सूचना दी गई थी कि यह हादसा बावड़ी की छत ध्वस्त हो जाने से हुआ है। छत पर पूजा-पाठ कर रहे लोग बावड़ी में गिर गए जिसमें पानी भी भरा है। गमीनत रही कि फायर ब्रिगेड की रस्सियां और सीढ़ियों का उपयोग किया गया। पानी खाली करने की बात आई, तब पता चला कि निगमकर्मिंयों के पास साठ फीट गहरी बावड़ी से पानी खींचने के लिए चालीस फीट लंबा ही पाइप है। नतीजतन, समय पर बचाव कार्य ठीक से शुरू ही नहीं हो सका और 35 लोगों ने जल समाधि ले ली। करीब 200 साल पुरानी इस बावड़ी को 45 साल पहले आठ सौ वर्ग फीट की छत डालकर ढंक दिया गया था। इसी पर बैठकर लोग अर्चना और हवन कर रहे थे। अतएव हवन करते हाथ जलने की कहावत चरितार्थ हुई है। मध्य प्रदेश में यह कोई धर्मस्थल पर हुआ पहला हादसा नहीं है। इसके पूर्व उज्जैन के सिंहस्थ, रतनगढ़ के देवी मंदिर और अशोक नगर के करीला माता मंदिर में इसी तरह के जानलेवा हादसे हो चुके है।

देश में धर्म-लाभ कमाने की प्रकृति से जुड़े हादसे अब लगातार देखने में आ रहे हैं। आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में पुश्करालू उत्सव में मची भगदड़ से 13 महिलाओं समेत 29 लोग मारे गए थे। इसी क्रम में मध्य प्रदेश के सतना जिले के प्रसिद्ध तीर्थस्थल चित्रकूट में कामतानाथ मंदिर की परिक्रमा करते हुए अचानक भीड़ में भगदड़ मच जाने से 10 श्रृद्धालुओं की मौत हो गई थी। मध्य प्रदेश में ही दतिया जिले के प्रसिद्ध रतनगढ़ माता मंदिर में नवमीं पूजा के दौरान आस्था के सैलाब में पुल टूटने की अफवाह से मची भगदड़ से 115 लोग मारे गए थे। इसी मंदिर में 3 अक्टूबर, 2006 को शारदेय नवरात्रि की पूजा के दौरान 49 श्रद्धालू मारे गए थे। फरवरी, 2013 में इलाहबाद के कुंभ मेले में बड़ा हादसा हुआ था, जिसमें 36 लोग मारे गए थे। मथुरा के बरसाना और देवघर के श्री ठाकुर आश्रम में मची भगदड़ से लगभग एक दर्जन श्रद्धालु मारे गए थे।

विश्व में शांति और सद्भावना की स्थापना के उद्देश्य से हरिद्वार में गायत्री परिवार द्वारा आयोजित यज्ञ में दम घुटने से 20 लोगों के प्राणों की आहुति लग गई थी। महज भगदड़ से अब तक तीन हजार से भी ज्यादा भक्त मारे जा चुके हैं। बावजूद लोग हैं  कि दर्शन, श्रद्धा, पूजा और भक्ति से यह अर्थ निकालने में लगे हैं कि इनको संपन्न करने से इस जन्म में किए पाप धुल जाएंगे, मोक्ष मिल जाएगा और परलोक भी सुधर जाएगा। गोया, पुनर्जन्म हुआ भी तो श्रेष्ठ वर्ण में होने के साथ समृद्ध और वैभवशाली होगा।

देश में हर प्रमुख धार्मिंक आयोजन छोटे-बड़े हादसों का शिकार हो रहा है। 1954 में इलाहबाद में संपन्न हुए कुंभ मेले में एकाएक गुस्साए हाथियों ने इतनी भगदड़ मचाई थी कि एक साथ 800 श्रद्धालु काल-कवलित हो गए थे। धर्म स्थलों पर मची भगदड़ से हुई, यह सबसे बड़ी घटना थी। सतारा के मांधर देवी मंदिर में मची भगदड़ में भी 300 से ज्यादा लोग असमय काल के गाल में समा गए थे। केरल के सबरीवाला मंदिर, जोधपुर के चामुंडा देवी मंदिर, और प्रतापगढ़ के कृपालू महाराज आश्रम में भी मची भगदड़ों में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। बावजूद अब तक के हादसों में देखने में आया है कि भीड़ प्रबंधन के कौशल में प्रशासन-तंत्र न केवल अक्षम साबित हुआ है, बल्कि उसकी अकुशलता के चलते हजारों लोग बेमौत मारे गए हैं।  

प्रचार-प्रसार के कारण धार्मिंक आयोजनों में लगातार बढ़ रही भीड़

भारत में पिछले दो दशक के दौरान मंदिरों और अन्य धार्मिंक आयोजनों में प्रचार-प्रसार के कारण उम्मीद से कई गुना ज्यादा भीड़ उमड़ रही है, जिसके चलते दर्शनलाभ की जल्दबाजी और कुप्रबंधन से उपजने वाले भगदड़ों का सिलसिला जारी है। धर्म स्थल हमें इस बात के लिए प्रेरित करते हैं कि हम कम से कम शालीनता और आत्मानुशासन का परिचय दें किंतु इस बात की परवाह आयोजकों और प्रशासनिक अधिकारियों को नहीं होती। इसलिए उनकी जो सजगता घटना के पूर्व सामने आनी चाहिए, वह अक्सर देखने में नहीं आती? इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया कर रहा है। वह हरेक छोटे बड़े मंदिर के दर्शन को चामत्कारिक लाभ से जोड़कर देश के भोले-भाले भक्तगण से एक तरह का छल कर रहा है। बहरहाल, धार्मिंक हादसों से छुटकारा पाने की कोई उम्मीद निकट भविष्य में दिखाई नहीं दे रही? लिहाजा, हादसों का दुर्भाग्यपूर्ण सिलसिला तत्काल तो टूटता दिखाई नहीं देता?

प्रमोद भार्गव


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