ऊर्जा संरक्षण दिवस : वक्त की जरूरत

Last Updated 14 Dec 2022 01:21:47 PM IST

पिछले 10 महीनों से यूक्रेन-रूस युद्ध चल रहा है। इस दरम्यान दुनिया भर में क्रूड आयल के दामों में तेजी की वजह से ईधन की कीमतें बढ़ी रहीं।


ऊर्जा संरक्षण दिवस : वक्त की जरूरत

युद्ध की वजह से यूरोप बिजली, प्राकृतिक गैस और ऊर्जा संकट से जूझ रहा है और कुछ समय से पूरी दुनिया महंगाई व ऊर्जा संकट का सामना कर रही है। भारत अपनी जरूरत का 90 फीसदी  क्रूड आयल आयात करता है। ऐसे में हम अपनी ईधन और ऊर्जा जरूरतों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर हैं। किसी भी देश के आधारभूत विकास के लिए ऊर्जा का सतत और निर्बाध प्रवाह बहुत जरूरी है। किसी देश में प्रति व्यक्ति औसत ऊर्जा खपत वहां के जीवन स्तर की सूचक होती है। इस दृष्टि से दुनिया के देशों में भारत का स्थान काफी नीचे है।

देश की बढ़ती आबादी के उपयोग के लिए तथा विकास को गति देने के लिए ऊर्जा की हमारी मांग भी बढ़ रही है। द्रुत गति से विकास के लिए औद्योगीकरण, परिवहन और कृषि के विकास पर ध्यान देना होगा। इसके लिए ऊर्जा की आवश्यकता है। दुर्भाग्यवश खनिज तेल, पेट्रोलियम, गैस, उत्तम गुणवत्ता के कोयले के हमारे प्राकृतिक संसाधन बहुत सीमित हैं। हमें बहुत सा पेट्रोलियम आयात करना पड़ता है। विद्युत की हमारी मांग उपलब्धता से बहुत ज्यादा है। आवश्यकता के अनुरूप विद्युत का उत्पादन नहीं हो पा रहा है।

रेटिंग एजेंसी इक्रा ने यह अनुमान जताते हुए कहा है कि वित्त वर्ष 2021-22 में अखिल भारतीय स्तर पर बिजली की मांग 1,380 अरब यूनिट थी। भारत करीब 200 गीगावॉट यानी करीब 70% बिजली का उत्पादन कोयले से चलने वाले प्लांट्स से करता है, लेकिन ज्यादातर प्लांट्स बिजली की बढ़ती मांग और कोयले की कमी की वजह से बिजली की अपेक्षित सप्लाई कर पा रहे हैं। देश के कोयले से चलने वाले बिजली प्लांट्स के पास पिछले 9 सालों में सबसे कम कोयले का भंडार बचा है। इस संकट की प्रमुख वजह है कोयले का आयात घटना। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े कोयला आयातक भारत ने पिछले वर्षो से लगातार अपना आयात घटाने की कोशिश की। लेकिन इस दौरान घरेलू कोयला सप्लायर्स ने उतनी ही तेजी से उत्पादन नहीं बढ़ाया। इससे सप्लाई गैप पैदा हुआ।

अब इस गैप को सरकार चाहकर भी नहीं भर सकती क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमत 400 डॉलर यानी 30 हजार रु पये प्रति टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। भारत करीब 20 करोड़ टन कोयला इंडोनेशिया, चीन और ऑस्ट्रेलिया से आयात करता है लेकिन अक्टूबर, 2021 के बाद इन देशों से आयात घटना शुरू हो गया और अब भी इन देशों से आयात प्रभावित है। नतीजतन, बिजली कंपनियां कोयले के लिए पूरी तरह कोल इंडिया पर निर्भर हो गई।  भविष्य उज्जवल बनाए रखने के लिए वर्तमान परिस्थितियों में सभी तरह की ऊर्जाओं तथा ईधन की बचत अत्यंत आवश्यक है क्योंकि आज बचत करेंगे तो ही भविष्य सुविधाजनक रह पाएगा।

हमारे विद्युत उत्पादन केंद्रों की उत्पादन क्षमता इतनी नहीं है कि बढ़ती हुई मांग की पूर्ति कर सकें। यह बात विद्युत के संबंध में ही नहीं, बल्कि पेट्रोलियम पदार्थों के संबंध में भी लागू होती है। हमें इन मुद्दोें पर ध्यान देना होगा। ऊर्जा बचत के उपायों को शीघ्रतापूर्वक और सख्ती से अमल में लाए जाने की जरूरत है। प्रत्येक नागरिक को इसमें जुट जाना चाहिए। बचत चाहे छोटे स्तर पर ही क्यों न हो, कारगर जरूर होगी क्योंकि बूंद-बूंद से ही सागर भरता है। संभल कर ऊर्जा के साधनों का इस्तेमाल करेंगे तो ही इनके भंडार भविष्य तक रह पाएंगे। कोशिश जमीन स्तर से की जाए तो आकाश छूने में समय नहीं लगेगा बशर्ते प्रत्येक नागरिक जागरूक हो। ऊर्जा की बचत करे तथा औरों को भी इसका महत्त्व  बताए।

भोजन, प्रकाश, यातायात, आवास, स्वास्थ्य की मूलभूत आवश्यकताओं के साथ मनोरंजन, दूरसंचार, सुख संसाधन, पर्यटन जैसी आवश्यकताओं में भी ऊर्जा के विभिन्न रूपों ने हमारी जीवन शैली में अनिवार्य स्थान बना लिया है। इस सब में भी बिजली ऊर्जा वह प्रकार है, जो सबसे सुगमता से हर कहीं सदैव हमारी सुविधा के लिए सुलभ है। इधर आपने बटन दबाया और फट से बिजली सेवा में हाजिर हुई। यही कारण है कि अन्य ऊर्जा विकल्पों को बिजली में बदल कर ही उपभोग किया जाता है।

ऊर्जा बचत में सबका सहयोग अत्यंत आवश्यक है। यदि ऊर्जा का उपयोग सोच-समझ कर नहीं किया गया तो इसका भंडार जल्द समाप्त हो सकता है। प्रकृति पर जितना अधिकार हमारा है, उतना ही हमारी भावी पीढ़ियों का भी है, जब हम अपने पूर्वजों के लगाए वृक्षों के फल खाते हैं, उनकी संजोई धरोहर का उपभोग करते हैं, तो हमारा दायित्व है कि हम भी भविष्य के लिए नैसर्गिक संसाधनों को सुरक्षित छोड़ कर जाएं, कम से कम अपने निहित स्वार्थों के चलते उनका दुरुपयोग तो न करें अन्यथा भावी पीढ़ी और प्रकृति माफ नहीं करेगी। कोरोना महामारी के बाद वैश्विक परिदृश्य बदल गया है। हमें हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना होगा। ऊर्जा क्षेत्र में आयात कम करके इसके संरक्षण पर ध्यान देना होगा।

शशांक द्विवेदी


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