भूकंप बिगाड़ सकते हैं हिमालय की सेहत

Last Updated 23 Nov 2022 01:46:03 PM IST

नवम्बर 6 और 12, 2022 को आए भूकंप के पांच झटकों ने संकेत दे दिया कि हिमालय के संवेदनशील पर्वत जो बाढ़ और भूस्खलन के लिए भी बहुत संवेदनशील है।


भूकंप बिगाड़ सकते हैं हिमालय की सेहत

 भविष्य में यहां फिर बड़ी तबाही का रूप धारण कर सकती हैं। पिछले 32 वर्षो के दौरान उत्तराखंड और नेपाल में आए भूकंप ने जिस तरह से हजारों लोगों की जान ले ली है, इसके बाद देखा गया कि पर्वतीय क्षेत्रों में बाढ़ एवं भूस्खलन ने बहुत तबाही मचाई है। कह सकते हैं कि पूरा हिमालय क्षेत्र आपदाओं का घर बन गया है। इसके बावजूद कोई सबक न लेकर हिमालय के विकास के स्थिर मॉडल के विषय पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा गया है।
सर्वविदित है कि भूकंप आते रहते हैं। यह ऐसी प्रक्रिया नहीं कि एक बार भूकंप आ गया तो उसके बाद शायद न आए। इसको समझने के लिए ढालदार व ऊंचे पर्वतों वाले हिमालय को जानना जरूरी है जिसके दो ढाल हैं उत्तरी और दक्षिणी। दक्षिणी ढाल में नेपाल, भूटान और भारत हैं। मध्य हिमालय (उत्तराखंड) दक्षिण ढाल पर है। हिमालय की 3 पर्वत श्रृंखलाएं हैं, जिसमें शिवालिक, लघु हिमालय और ग्रेट हिमालय हैं जो भूकंप के लिए अति संवेदनशील हैं। उत्तराखंड में आए 1991 के भूकंप के बाद वैज्ञानिकों के सर्वेक्षण से पता चला कि यमुना के उद्गम स्थल बंदरपूंछ से लेकर गंगोत्री, केदारनाथ, बदरीनाथ से पिथौरागढ़ और नेपाल तक की पहाड़ियों पर दरारें पड़ी हुई हैं जो लगातार आ रहे भूकंप के कारण चौड़ी होती जा रही है। यह भी सत्य है कि बार-बार भूकंप आने से कुछ दरारें आपस में पट जाती है और कुछ अधिक चौड़ी हो जाती है, जिसमें बरसात के समय पानी भरने से जगह-जगह भूस्खलन पैदा करते हैं, जिसके कारण हिमालय के लोग हर साल अपनी आजीविका के संसाधनों की लगातार कमी महसूस कर रहे हैं और मानवीय त्रासदी झेल रहे हैं। बाढ़, भूकंप, भूस्खलन के लिए भूगर्भ वैज्ञानिकों ने पूरे हिमालय क्षेत्र को जोन 4 और 5 में रखा है। इसके बावजूद चिंता है कि ऐसे संवेदनशील क्षेत्र में कहीं भी भूकंप का सामना करने और बाढ़ नियंत्रण के ऐसे उपाय निर्माण कार्यों के दौरान नहीं देखे जाते हैं, जिससे आपदा के समय बचा जा सके।

भूकंप का खतरा हिमालय में इसलिए भी अधिक है क्योंकि शेष भू-भाग हिमालय को 5 सेंटीमीटर प्रति वर्ष की रफ्तार से उत्तर की तरफ धकेल रहा है। इसका अर्थ है कि हिमालय क्षेत्र गतिमान है और यहां भूगíभक हलचल होती रहेगी। इसलिए भूकंप के बाद भूस्खलन स्वाभाविक घटना बन जाती है, लेकिन भूकंप की लगातार बढ़ती तीव्रता को ध्यान में नहीं रखेंगे तो हिमालय की खूबसूरती बिगड़ सकती है। क्योंकि हिमालयी राज्यों में अधिकतर निर्माण कार्य इन्हीं दरारों के आसपास हो रहे हैं और यहां की धरती में लगभग 15 किमी नीचे अनेकों भ्रंश सक्रिय हैं जो भूकंप की गतिशीलता को बढ़ाते रहते हैं। हिमालय की छोटी एवं संकरी भौगोलिक संरचना को नजरअंदाज करके सुरंग आधारित परियोजनाएं, बहुत चौड़ी सड़कें, बहुमंजिला इमारतों का निर्माण, वनों का व्यावसायिक कटान करने से बाढ़ एवं भूस्खलन के खतरे और अधिक बढ़ रहे हैं। इस तरह के निर्माण कार्य भूकंप की दरार वाले इलाकों में अधिक हो रहे हैं। लंबी-लंबी सुरंगों को बनाने के लिए विस्फोटों का इस्तेमाल हो रहा है। नदियों के किनारे अधिकतर घर, होटल और शहर बन रहे हैं। इसलिए बरसात के समय नदियों में आने वाली बाढ़ के लिए पर्याप्त स्थान न मिलने के कारण यहां पर बेतरतीब ढंग से खड़े किए गए घरों को ही अधिक नुकसान पहुंचता है। अत: दरार वाले इलाकों में बड़े निर्माण कार्य करना एक तरह से भूस्खलन को न्योता देने जैसा ही है। हर निर्माण कार्य में जल निकासी का रास्ता अवरु द्ध नहीं किया जाना चाहिए।
जापान और ऑस्ट्रेलिया में भी जगह-जगह भूकंप की दरारें हैं, लेकिन वहां सड़क मार्ग की ऐसी तकनीकी है कि निर्माण के दौरान जल निकासी का पूरा ध्यान रखा जाता है जिसके कारण वहां बरसात के समय सड़कें स्थिर रहती हैं, जबकि हिमालय क्षेत्र में निर्माण कार्यों के कारण ही जल निकासी अवरुद्ध हो रही है और जो मलबा निर्माण कार्यों से निकल रहा है वह सारा का सारा जल संरचनाओं के ऊपर उड़ेला जा रहा है। नदियों के अविरल बहाव को जगह-जगह रोकने के लिए जल विद्युत परियोजनाएं स्वीकृत की जा रही हैं। उत्तर भारत की सभी नदियों के उद्गम भूकंप से प्रभावित हैं। इसके निकट जितनी भी सुरंग आधारित परियोजनाएं निर्मिंत एवं निर्माणाधीन हैं, वह सभी भविष्य में बड़ी आपदा को न्योता दे रहे हैं, जबकि छोटी-छोटी सिंचाई नहरों से लघु पनिबजली बनाई जा सकती हैं। इन महत्त्वपूर्ण विषयों पर ध्यान न देकर हिमालय सरंक्षण के लिए हर रोज प्रतिज्ञा करने वाले योजनाकारों ने ऐसे विकास कार्यों को तवज्जो दे दी है, जिसमें विनाश के रास्ते साफ तौर पर देखे जा रहे हैं। हिमालय के जलस्रोत न हों तो भारत की आधी आबादी के समक्ष पीने के पानी का संकट खड़ा हो जाएगा। पर्वतराज कहे जाने वाले हिमालय को केवल शब्दों में महिमामंडित करने की इतनी जरूरत नहीं है, जितनी कि हिमालय में भूकंप के कारण जो स्थिति पैदा हो रही है। उसके अनुकूल विकास योजनाओं पर ध्यान देने की अधिक जरूरत है। समय रहते हिमालय की कांपती धरती के संदेश को लोग सुनें और लापरवाही नहीं  बरतने का संकल्प लें।

सुरेश भाई


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