अर्थव्यवस्था : डॉलर के दबाव में सभी करेंसी

Last Updated 05 Nov 2022 01:30:34 PM IST

अमेरिकी डॉलर इस समय 20 वर्षो के सबसे ऊंचे स्तर पर है, जबकि विश्व की अधिकांश मुद्राएं नीचे जा रही हैं, जिनमें भारतीय रुपया भी है, यद्यपि रुपये की कीमत में गिरावट यूरो, पाउंड, येन और युवान जैसी वैश्विक लेनदेन की मुद्राओं के मुकाबले कम है, किंतु फिर भी अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय है।


अर्थव्यवस्था : डॉलर के दबाव में सभी करेंसी

 इसको स्थिर करने के रिजर्व बैंक के प्रयास के फलस्वरूप विदेशी मुद्रा में कमी हुई है। आयात का बिल बराबर बढ़ता जा रहा है, व्यापार घाटा तेजी से बढ़ा है।

रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ने के बाद से पूरे विश्व में महंगाई तेजी से बढ़ी है। दोनों देश गेहूं, खाद्य तेल, र्फटलिाइजर जैसी आवश्यक वस्तुओं के बड़े सप्लायर हैं, यूरोप के अधिकांश देश रूसी गैस की सप्लाई पर निर्भर हैं। वैश्विक महंगाई के कारण विश्व की अधिकांश मुद्राओं की कीमत में गिरावट आई है। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने आग में घी डालने का काम किया है। कच्चे तेल के उत्पादक कुछ ही देश हैं, अधिकांश देश उनके ऊपर निर्भर हैं, उनके द्वारा निर्धारित कीमत देने को बाध्य हैं। मुद्राओं की कीमत में कमी का एक बहुत बड़ा कारण अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज नीति भी है जो बराबर बढ़ती जा रही है, बड़े निवेशकों को विश्व के अन्य देशों से अपनी ओर खींच रही है। विश्व बाजार में मुद्राओं की कीमत मांग और पूर्ति के सिद्धांत पर निर्धारित होती है। अमेरिकी डॉलर की कीमत में जो उछाल आ रहा है उसका बड़ा कारण है उसकी मांग में तेजी से वृद्धि।

अधिकांश देशों को कच्चे तेल और आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए डॉलर में भुगतान करना पड़ता है, विश्व का लगभग 40 फीसद व्यापार अमेरिकी डॉलर के माध्यम से होता है, बाकी अन्य वैश्विक मुद्राओं-यूरो, ब्रिटिश पाउंड, येन, युवान आदि से। पिछले कुछ महीनों में भारत का निर्यात बढ़ा है किंतु आयात उससे अधिक बढ़ा है, जिसके फलस्वरूप डॉलर की मांग बढ़ी है। भारत जब आजाद हुआ था तो Rs13 में 1 डॉलर आता था, जिसके अनुसार Rs4 .13 .1 डॉलर के बराबर था। 1992 में रुपये को फ्लोटिंग करेंसी बनाई गई तब से इसकी कीमत विश्व बाजार में मांग और सप्लाई पर निर्भर हो गई। इसके पहले अन्य मुद्राओं के साथ रुपये का एक्सचेंज रेट रिजर्व बैंक निर्धारित करती थी, जिसमें उतार-चढ़ाव एक सीमा के अंदर ही हो सकती थी। विश्व व्यापार में उत्पन्न परिस्थितियों के कारण भारत को फिक्स की जगह फ्लोटिंग एक्सचेंज रेट अपनाना पड़ा था।

पिछले 10 महीनों में अमेरिकी डॉलर का सूचकांक 9 फीसद बढ़कर 112.78 पर पहुंच गया। उसके मुकाबले विश्व की अधिकांश मुद्राएं गिरावट की स्थिति में रही। भारतीय रुपये की कीमत में लगभग 10 फीसद की गिरावट हुई। श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश की करेंसियों में भारी गिरावट हुई। पाकिस्तानी रुपया 26.17 फीसद नीचे आया। एक डॉलर के मुकाबले श्रीलंका का रुपया 201 से 370 के बीच रहा।

बड़ी वैश्विक मुद्राओं में भी भारतीय रुपये की अपेक्षा अधिक गिरावट हुई। डॉलर के मुकाबले ब्रिटिश पाउंड 20.9 फीसद, जापानी येन 20.05 फीसद, यूरो 14.2 फीसद नीचे आया। भारतीय मुद्रा के मुकाबले भी बड़ी करेंसियां नीचे आई। जनवरी 2022 में 1 पाउंड के लिए Rs84.75 देना पड़ता था, 22 अक्टूबर को यह Rs81.55 पर आ गया, इस बीच 1  पाउंड 101.47 से घटकर Rs93.42 पर आ गया। रुपये की कीमत में अपेक्षाकृत कम गिरावट का एक कारण भारत में संस्थागत विदेशी निवेशकों का पूंजी बाजार में, बीच-बीच में शेयर बाजार में बिकवाली के बावजूद, बढ़ता निवेश भी रहा। अमेरिकी फेडरल रिजर्व एवं अधिकांश विकसित देशों के केंद्रीय बैंकों की सख्त मुद्रा नीति का असर भारत पर पड़ा, किंतु भारतीय रुपये की कीमत में अपेक्षाकृत कम गिरावट हुई। कच्चे तेल और खाद्य पदाथरे की एवं आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में भारी इजाफा होने से अधिकांश विकासशील और आर्थिक दृष्टि से कमजोर देशों का विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से घटा है।

कुछ  देशों में विदेशी मुद्रा का भंडार इतना कम हो गया कि वे आयात के बिल भरने के लायक नहीं हैं, न ही विदेशों से लिए कर्जे वापस करने की स्थिति में है। श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इथोपिया, घाना, अल सल्वाडोर एवं दक्षिण अमेरिका के कुछ देश भी इनमें शामिल हैं। ऐसी स्थिति में अधिकांश देश अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की शरण में जाने को मजबूर हो जाते हैं। भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में जनवरी 2022 से सितम्बर 2022 के बीच 101अरब डॉलर की गिरावट हुई। बांग्लादेश का मुद्रा भंडार एक वर्ष में 46 अरब डॉलर से घटकर 36 अरब डॉलर पर आ गया। श्रीलंका ने अपनी मुद्रा का 15 फीसद अवमूल्यन किया। पाकिस्तान के स्टेट बैंक ने सरकार को अनावश्यक वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध की सलाह दी। डॉलर का बढ़ता प्रभुत्व अधिकांश देशों के लिए सर दर्द बनता जा रहा है। इसके विकल्प की खोज शुरू हो गई है। रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ने के बाद भारत ने बड़ी मात्रा में रूस से कच्चा तेल खरीदना शुरू किया, भारत रूस के बीच व्यापार में पिछले एक वर्ष में 120 फीसद की वृद्धि हुई, रुपया-रूबल व्यापार की प्रक्रिया तेज की गई। अंतर बैंक विनिमय में रूसी मीर एवं भारतीय रूपे भी स्वीकृत होंगे। स्विफ्ट की सुविधा से प्रतिबंधित रूस के लिए यह प्रक्रिया लाभदायक होगी,भारत में डॉलर की मांग मे कमी आएगी, रुपया मजबूत होगा।

जुलाई 14, 2022 को रिजर्व बैंक ने अंतरराष्ट्रीय विनिमय दर पर रुपये के माध्यम से व्यापार उन सभी देशों के लिए खोल दिया जो इसके लिए तैयार हों। अधिकृत बैंकों को रुपया वोस्ट्रो खाता खोलने की अनुमति दे दी। इसके अंतर्गत खाता एक अधिकृत बैंक दूसरे बैंक की ओर से रखता है, भारतीय आयातक रुपये में भुगतान कर सकेगा। पड़ोसी देशों नेपाल और भूटान से पहले ही व्यापार रुपये के माध्यम से होता रहा है, सऊदी अरब से रुपया-रियाल, बांग्लादेश से रुपया-टका के माध्यम से व्यापार की चर्चा हो रही है। ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध के पहले भारत ईरान से बड़ी मात्रा में कच्चा तेल रुपये के भुगतान से करता था, ईरान रुपये का इस्तेमाल भारत से आयात के लिए करता था। इस व्यवस्था को पुन: कारगर करने की कोशिश हो रही है।

प्रो. लल्लन प्रसाद


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