जनसंख्या संतुलन की है जरूरत

Last Updated 15 Oct 2022 01:27:24 PM IST

विजय दशमी को नागपुर में अपने वार्षिक उद्बोधन में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने देश में बढ़ती जनसंख्या पर अपनी चिंता व्यक्त की।


जनसंख्या संतुलन की है जरूरत

कहा कि जनसंख्या की वृद्धि और असंतुलन देश में बड़ी समस्या बन रहे हैं, और इस पर आने वाले 50 वर्षो को ध्यान में रख कर समग्र नीति बनाने की आवश्यकता है।

संघ प्रमुख द्वारा जनसंख्या वृद्धि और संतुलन जैसे महत्त्वपूर्ण विषय का उल्लेख अत्यंत सामयिक है। यह हमारे सामने घटती ऐसी विकराल समस्या है जिसे समय रहते नहीं रोका गया तो यह राष्ट्र के अस्तित्व को ही संकट में डाल सकती है। बीती जुलाई संयुक्त राष्ट्र संघ ने ‘विश्व जनसंख्या संभावना-2022’ शीषर्क से रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसके अनुसार आगामी 15 नवम्बर को विश्व की जनसंख्या 8 अरब हो जाएगी और 2050 तक 10 अरब। यह वृद्धि मुख्यत: आठ देशों में सीमित होगी जिनमें भारत प्रमुख है। जनसंख्या की भारी वृद्धि के कारण आने वाला समय चुनौतियों से भरा होगा। देश के हर व्यक्ति को न्यूनतम जीवन गुणवत्ता देना देश के नीति-नियंताओं के लिए असंभव सा लक्ष्य होगा। जब जनसंख्या विस्फोटक स्थिति में पहुंच जाती है, तो संसाधनों के साथ उसकी गैर-अनुपातित वृद्धि होने लगती है, इसलिए  इसमें स्थिरता लाना जरूरी होता है।

ब्रिटिश अर्थशास्त्री माल्थस के अनुसार संसाधनों में वृद्धि की तुलना में जनसंख्या दोगुनी रफ्तार से बढ़ती है। यह हम देश में भी देख रहे हैं। हमारे विकास की गति बहुत तेज है पर जनसंख्या वृद्धि उससे भी अधिक। इसी असमानता की वजह से भारत विकास की ओर बढ़ते हुए भी वैश्विक सूचकांकों में पिछड़ जाता है। बढ़ती आबादी को काबू में करने के लिए संकीर्ण वर्गीय सोच और दलगत स्वार्थ से परे हट कर कार्य करने की जरूरत है।

जनसंख्या में तीव्र वृद्धि का प्रतिकूल प्रभाव सभी पर पड़ता है। प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव, उनका अत्यधिक दोहन, उत्पादन में कमी, पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव, जलवायु परिवर्तन, अकाल, बाढ़, सूखा और परिणामत: प्रति व्यक्ति आय में कमी, निर्धनता, बेरोजगारी, अपर्याप्त जीवन, कुपोषण, महामारी आदि के लिए बढ़ती आबादी जिम्मेदार है पर जनसंख्या वृद्धि के साथ जनसंख्या असंतुलन भी अहम मुद्दा है, जिसका उल्लेख संघ प्रमुख ने किया। दरअसल, जनसंख्या संतुलन सामाजिक संतुलन का आधार है। जनसंख्या के असंतुलन से देश के अस्तित्व और पहचान के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है। तथ्य यह है कि यह पहचान यहां के बहुसंख्यक समाज के कारण बनी है।

जनसंख्या का असंतुलन यह सांस्कृतिक पहचान मिटा सकता है। इस दिशा में गंभीरता से सोचने का वक्त आ गया है। भारत में बीते दशक में मुस्लिम आबादी में लगभग 2.5 गुना बढ़ोतरी हुई है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य, बढ़ती कट्टरता और अहिष्णुता से जुड़ी चिंताओं के केंद्र में है। यही उल्लेख संघ प्रमुख ने किया। बीती जुलाई में विश्व जनसंख्या दिवस पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की वर्ग विशेष की बढ़ती आबादी पर चिंता भी इसी संदर्भ में थी। उनकी और संघ प्रमुख की चिंता को मजहबी नजरिए से इतर स्वस्थ संदर्भ में देखने की जरूरत है। यह सार्वभौमिक सत्य है कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए सभी वगरे की आबादी पर नियंत्रण रखना अनिवार्य है अन्यथा किसी वर्ग विशेष की आबादी यदि असामान्य रूप से बढ़ती रही तो देश में संसाधनों के उचित वितरण से जुड़ी समस्याओं के साथ-साथ अराजकता के हालात तक पैदा हो सकते हैं।

संघ प्रमुख ने जनसंख्या वृद्धि दर को लेकर एक आंकड़े पर बात करते हुए कहा, ‘वर्ष 1951 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अंतर के कारण देश की जनसंख्या में जहां भारत में उत्पन्न मत पंथों के अनुयायियों का अनुपात 88 प्रतिशत से घटकर 83.8 प्रतिशत रह गया है, वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8 प्रतिशत से बढ़ कर 14.23 प्रतिशत हो गया है।’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘विविध संप्रदायों की जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अंतर, अनवरत विदेशी घुसपैठ और मतांतरण के कारण देश की समग्र जनसंख्या विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों की जनसंख्या के अनुपात में बढ़ रहा असंतुलन, देश की एकता एवं अखंडता और सांस्कृतिक पहचान के लिए गंभीर संकट का कारण बन गया है।’

धर्म आधारित जनसंख्या असंतुलन महत्त्वपूर्ण विषय है, जिसको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जनसंख्या असंतुलन से भौगोलिक सीमाओं में परिवर्तन होता है, जिसका उल्लेख संघ प्रमुख मोहन भागवत ने किया। उदाहरण के तौर पर उन्होंने ईस्ट तिमोर, दक्षिण सूडान और कोसोवो का जिक्र किया जिनका सृजन मूल देश में जनसंख्या में संतुलन बिगड़ने से हुआ। समय आ गया है कि अब जनसंख्या नीति पर गंभीर मंथन हो। ऐसी समग्र नीति बने जो सब पर समान रूप से लागू हो। समान नागरिक संहिता इसके लिए पहला सार्थक कदम होगा।
(लेखक भाजपा के निवर्तमान राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)

श्याम जाजू


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