सामयिक : उपेक्षित न रह जाएं बड़े सवाल

Last Updated 13 Oct 2022 01:45:01 PM IST

यूक्रेन युद्ध आरंभ होने के बाद ऐसी समस्याएं और विकट हुई हैं, जिनके कारण धरती की जीवनदायिनी क्षमता भी खतरे में पड़ जाती है। इस संकट के चार पक्ष हैं।


सामयिक : उपेक्षित न रह जाएं बड़े सवाल

पहला पक्ष, पर्यावरणीय संकट। पर्यावरणीय संकट के भी अनेक पक्ष-जलवायु परिवर्तन, जल संकट, वायु व समुद्र प्रदूषण, जैव विविधता हृास, फासफोरस व नाइट्रोजन चक्र में बदलाव, अनेक खतरनाक नये रसायनों और उत्पादों का बिना पर्याप्त जानकारी के प्रसार, ओजोन परत में बदलाव आदि हैं। दूसरा पक्ष, महाविनाशक हथियारों विशेषकर परमाणु, रासायनिक व जैविक तथा रोबोट हथियार। इनमें रासायनिक व जैविक हथियार प्रतिबंधित हैं। रोबोट हथियार अभी विकास की अपेक्षाकृत आरंभिक स्थिति में हैं। परमाणु हथियारों के साथ ये अन्य हथियार भी जीवन को संकट में डाल सकते हैं। तीसरा पक्ष, कुछ तकनीकों जेनेटिक इंजीनियरिंग, रोबोट आदि का एक सीमा से आगे विकास; और चौथा पक्ष है-संक्रमण रोगों के बरक्स नई समस्याएं आना।

इसका अर्थ यह नहीं है कि इन संकटों से हमें अलग-अलग ही जूझना होगा। अनेक संकट साथ-साथ बढ़ रहे हैं और व्यावहारिक स्तर पर हमें इनके मिले-जुले असर को ही सहना होगा। जलवायु बदलाव के संकट का असर जो हम झेलेंगे, वह जल-संकट, समुद्रों में आ रहे बदलावों, जैव विविधता के हृास आदि से नजदीकी तौर पर जुड़ा है। परमाणु हथियारों का उपयोग होता है तो उसके बाद बड़े क्षेत्र में जो बदलाव आएंगे वे विभिन्न पर्यावरणीय संकटों के साथ मिलकर धरती की जीवनदायिनी क्षमता को प्रभावित करेंगे। रोबोट तकनीक के सिविल उपयोग से उसके सैन्य उपयोग की संभावनाएं बढ़ेंगी। कृषि व स्वास्थ्य में जेनेटिक इंजीनियरिंग के उपयोग से नये बायोलोजिकल हथियारों की संभावनाएं खुलेंगी। स्टॉकहोम रेसिलियंस सेंटर के वैज्ञानिकों के अनुसंधान ने हाल के समय में धरती के सबसे बड़े संकटों की ओर ध्यान केंद्रित करने के प्रयास किए हैं। अनुसंधान में धरती पर जीवन की सुरक्षा के लिए नौ विशिष्ट सीमा-रेखाओं की पहचान की गई है, जिनका अतिक्रमण मनुष्य की क्रियाओं को नहीं करना चाहिए। चिंता की बात है कि इन नौ में से तीन सीमाओं का अतिक्रमण आरंभ हो चुका है।

ये हैं-जलवायु बदलाव, जैव-विविधता का हृास और भूमंडलीय नाइट्रोजन चक्र में बदलाव। चार अन्य सीमाएं ऐसी हैं, जिनके अतिक्रमण की संभावना निकट भविष्य में है। ये चार हैं-भूमंडलीय फासफोरस चक्र, भूमंडलीय जल उपयोग, समुद्रों का अम्लीकरण और भूमंडलीय स्तर पर भूमि उपयोग में बदलाव। ये विभिन्न संकट अनेक स्तरों पर एक दूसरे से मिले हुए हैं और एक सीमा (जिसे प्राय टिपिंग प्वाइंट कहा जा रहा है) पार करने पर धरती की जीवनदायिनी क्षमता की इतनी क्षति हो सकती है, उसे लौटा पाना कठिन होगा। पिछले सात दशकों में विश्व की बड़ी विसंगति रही है कि महाविनाशक हथियारों के इतने भंडार मौजूद हैं, जो मनुष्यों और अधिकांश अन्य जीवन-रूपों को एक नहीं, कई बार ध्वस्त करने की क्षमता रखते हैं। परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए गठित आयोग ने दिसम्बर, 2009 में अपनी रिपोर्ट में कहा कि जब तक कुछ देशों के पास परमाणु हथियार हैं, अनेक अन्य देश भी उन्हें प्राप्त करने के प्रयास करेंगे। आतंकवादी संगठन तक भी इन हथियारों को प्राप्त करने की क्षमता रखते हैं। अन्य महाविनाशक हथियारों विशेषकर रासायनिक और जैविक हथियारों के प्रतिबंध के समझौते चाहे हो चुके हैं, पर विश्व इन हथियारों से मुक्त नहीं हुआ है।  

अत: महाविनाशक हथियारों जैसे खतरों के प्रति सचेत होना जरूरी है। यह समझ बनाना भी जरूरी है कि इनके उपयोग की संभावना क्यों बढ़ रही है। विश्व में विभिन्न देशों विशेषकर अधिकतर ताकतवर देशों का संचालन मूलत: अपने देश की आर्थिक-राजनीतिक शक्ति और आधिपत्य बढ़ाने की दृष्टि से हो रहा है। इस स्थिति में धरती पर जीवन की रक्षा करने जैसे सबसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य पीछे पड़ जाते हैं। विभिन्न देशों की आंतरिक राजनीति भी प्राय: क्षुद्र उद्देश्यों, तरह-तरह की स्वार्थी और संकीर्ण राजनीतिक उठापटक, उग्र पूंजीवाद और याराना पूंजीवाद (क्रोनी कैपिटलिज्म) से प्रभावित है। इस स्थिति में राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसी कोई बड़ी पहल नहीं हो पा रही है, जो अन्य देशों को धरती की रक्षा की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित कर सके। ऐसी अनेक स्थितियां हैं, जो तनाव बढ़ाने वाली हैं। वित्तीय और व्यापारिक संस्थान विश्व व्यापार संगठन, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि स्वयं अन्याय और विषमता की व्यवस्था के प्रतीक हैं। अमेरिका जैसी बड़ी ताकतों द्वारा विश्व व्यापार व निवेश में ऐसे बदलाव लाने के प्रयास हो रहे हैं, जो बड़ी ताकतों और उनकी बड़ी संपत्तियों के वर्चस्व को और बढ़ाएंगे। पूरे विश्व में मान्य करंसी जैसे बड़े सवालों का अभी तक संतोषजनक समाधान नहीं हुआ है जबकि चीन, रूस, ईरान जैसे देश अमेरिकी डॉलर की सर्वमान्यता को चुनौती देना चाह सकते है, और इस कारण तनाव तेजी से भड़क सकते हैं।

धरती की जीवनदायिनी क्षमताओं की रक्षा करनी है, तो इसके लिए पहले अमन-शांति आधारित कानून-व्यवस्था देशों के आंतरिक स्तर पर जरूरी है। जरूरी है कि विश्व में मजबूत लोकतंत्र हो। यह तभी संभव है जब जनशक्ति से लोकतंत्र, अमन-शांति और न्याय-समता के पक्ष में एक बड़ा उभार आए। लोकतंत्र मजबूत नहीं होगा तो जीवन को संकट में डालने वाली स्थितियों के दौर में स्वार्थी तरह-तरह के अटपटे समाधान सामने लाएंगे जिससे समस्याएं और बढ़ सकती हैं। न्याय व समानता की दिशा में प्रयास नहीं हुए तो जनसाधारण के समर्थन वाला कोई बड़ा उभार नहीं आ सकेगा। जरूरी है कि जो भी न्याय, समता, अमन-शांति और लोकतंत्र को मजबूत करने के संगठन व जन-आंदोलन हैं, वे आपसी एकता और एकजुटता बढ़ाएं। धरती की जीवनदायिनी शक्ति की रक्षा से जुड़ने के लिए अपने कार्य में जरूरी विस्तार भी करें। धरती की रक्षा के व्यापक मुद्दों को लोगों के दुख-दर्द कम करने के मुद्दों से जोड़कर इनके लिए व्यापक समर्थन प्राप्त किया जा सकता है। ऐसे प्रयासों के दौरान जनसाधारण की धरती की जीवनदायिनी क्षमताओं संबंधी समझ भी बढ़ाई जा सकती है।

भारत डोगरा


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