चाइल्ड पोर्नोग्राफी : भेंट चढ़ती मासूमियत

Last Updated 06 Oct 2022 01:27:10 PM IST

बच्चे मासूमियत के पुतले होते हैं। उनके दिलोदिमाग छल-कपट से खाली होते हैं। इसीलिए अक्सर बड़ों के बुने बहकावे और फुसलाहट के जाल में फंस में जाते हैं, और यौन शोषण तक के शिकार हो जाते हैं।


चाइल्ड पोर्नोग्राफी : भेंट चढ़ती मासूमियत

मोबाइल और इंटरनेट के आज के जमाने में बाल यौन शोषण और उससे संबंधित सामग्री अर्थात चाइल्ड पोर्नोग्राफी का चलन भी खतरनाक स्तर तक बढ़ रहा है। हाल में सीबीआई ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी के विरुद्ध देशभर में बड़ी कार्रवाई की है। बीस राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश के 59 स्थानों पर छापेमारी की और 50 लोगों के मोबाइल, लैपटॉप और दीगर इलेक्ट्रॉनिक सामान जब्त कर फोरेंसिक जांच की। इन पर चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज मैटेरियल (सीएसएएम) डाउनलोड करने, एकत्र करने, प्रेषित करने या किसी ग्रुप में शेयर करने के आरोप हैं।

सीबीआई ने यह कार्रवाई इंटरपोल की सिंगापुर स्थित विशेष यूनिट क्राइम अगेंस्ट चिल्ड्रन (सीएसी) से मिले इनपुट पर की। सीबीआई ऑनलाइन चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ ग्लोबल ऑपरेशन का नेतृत्व कर रही है। इसके तहत चाइल्ड पोर्नोग्राफी के अतंरराष्ट्रीय लिंक की पहचान की जाती है, और दूसरे देशों के साथ साझा की जाती है। उन देशों की खुफिया एजेंसियों और इंटरपोल के साथ समन्वय कर चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ कार्रवाई की जाती है। हालिया कार्रवाई सीबीआई के लिए गौरव की बात है। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि हमारा पुलिसिया तंत्र और दीगर जांच एजेंसियां इससे अनजान क्यों रह जाती हैं?

इसकी बड़ी वजह बच्चों, उनके मां-बाप और बड़ों का सतर्क न होना भी है। इसीलिए हमें बड़ी कार्रवाई के लिए इंटरपोल के इनपुट पर निर्भर रहना पड़ता। सभी जानते हैं कि मुजरिम अपराध से बचने के लिए हर तरह के पैंतरे आजमाते हैं। चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामले में भी ऐसी ही एक बात सामने आई कि जांच से बचने के लिए क्लाउड आधारित स्टोरेज का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसीलिए ‘क्लाउड’ पर इस ऑपरेशन को ‘मेघचक्र’ का कोड नाम दिया गया। सीबीआई के जरिए पिछले साल भी ऑपरेशन ‘कॉर्बन’ चलाया गया था जिसके तहत 13 राज्यों एवं एक केंद्रशासित प्रदेश के 76 स्थानों पर छापे मारे गए और 80 लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई थी।

सीबीआई के जरिए इन व्यापक अभियानों के पीछे  बड़ी वजह चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामलों में अचानक वृद्धि है। महज दो सालों में इसमें 17 गुना बढ़ोतरी हुई है। 2018 में चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मात्र 44 मामले दर्ज हुए थे वहीं 2020 में इनकी तादाद 738 तक पहुंच गई। सवाल उठता है कि इस घिनौने अपराध में बेतहाशा वृद्धि की आखिर वजह क्या है? कहीं उनकी गरीबी तो नहीं है, या कुछ और ही सामाजिक कारण हैं? दरअसल, सीएसएएम के मामलों में उछाल की बड़ी वजह भारत का 2019 में अमेरिकी संस्था नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लाइटेड चिल्ड्रन (एनसीएमईसी) के साथ किया गया करार है। इसके कारण साझा की जानी वाली सूचनाओं से ऐसे मामले ज्यादा पकड़ में आ रहे हैं। कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है।

शायद यही वजह है कि लॉकडाउन के दौरान चाइल्ड पोर्नोग्राफी की मांग काफी बढ़ गई। पोर्नहब के डेटा के अनुसार 24 मार्च से 26 मार्च, 2020 के दौरान इसमें 95 प्रतिशत का उछाल आया। इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड (आईसीपीएफ) के अनुसार इस दौरान ‘चाइल्ड पोर्न’, ‘सेक्सी चाइल्ड’ और ‘टीन सेक्स वीडियोज’ खूब सर्च किए गए। जब दुनिया कारोना और लॉकडाउन से जूझ रही थी, उसी दौरान नवम्बर, 2020 में सीबीआई ने उत्तर प्रदेश के बांदा जिले से सिंचाई विभाग के एक जूनियर इंजीनियर को बाल शोषण के आरोपों में गिरफ्तार किया। वह पिछले एक दशक से बच्चों का यौन शोषण करने के साथ उनके आपत्तिजनक वीडियो और फोटोग्रॉफ डार्कवेब के जरिए बेचता रहा। अक्टूबर, 2020 में मुंबई में सीबीआई ने हरिद्वार के रहने वाले कथित टीवी अदाकार को सीएसएएम का इंटरनेशनल रैकेट चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया था। उसी दौरान सीबीआई ने दिल्ली से सीएसएएम का गोरखधंधा करने वाले एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था।

ऐसा नहीं है कि भारत में बाल यौन शोषण और चाइल्ड पोर्नोग्राफी के विरुद्ध सख्त कानून नहीं हैं। पॉक्सो और आईटी कानूनों के तहत तीन से पांच साल की सजा और लाखों रु पये की जुर्माने का प्रावधान है। बावजूद तल्ख हकीकत है कि ऐसा हो रहा है। इन कानूनों का सही से क्रियान्वयन न होना इसकी बड़ी वजह है। इसके लिए कहीं न कहीं समाज खुद भी जिम्मेदार है। अक्सर देखा गया है कि ऐसे अपराधों में लिप्त लोग बच्चों के करीबी, रिश्तेदार, पड़ोसी और परिचित होते हैं। ऐसे में बच्चों के माता-पिता, अध्यापकों और दीगर बड़े लोगों की जिम्मेदारी है कि उन्हें इनके बुरे पैंतरों से वाकिफ करवाएं। इस घिनौने जुर्म के प्रति सतर्क कर उससे बचने के काबिल बनाएं।

मो. शहजाद


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