यूरोप बनाम इंडो पैसिफिक

Last Updated 10 Jul 2022 11:13:57 AM IST

यूक्रेन में युद्ध के मोर्चे पर गतिरोध की स्थिति है, लेकिन युद्ध के सैनिक और आर्थिक प्रभाव दुनिया के अनेक देशों में महसूस किए जा रहे हैं।


यूरोप बनाम इंडो पैसिफिक

सबसे बड़ा संकट ऊर्जा सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा को लेकर है। ऊर्जा संकट की आशंका सबसे अधिक यूरोप विशेषकर जर्मनी में है। रूस से गैस की आपूर्ति में व्यवधान के कारण जर्मनी के लोगों को यह चिंता सता रही है कि आगामी जाड़े के मौसम का सामना वे किस प्रकार करेंगे। दूसरी ओर, यूक्रेन से खाद्यान्न आपूर्ति में रुकावट के कारण अफ्रीका सहित दुनिया के विभिन्न देशों में खाद्य संकट पैदा होने की चेतावनी दी जा रही है।
काला सागर के बंदरगाहों पर जलयानों का आवागमन ठप है। खाद्यान्न से भरे यूक्रेन के जलयान वहां से नहीं जा सकते। इस स्थिति के लिए रूस और यूक्रेन एक दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं। रूस का कहना है कि खाद्यान्न वाले जलयानों पर उसकी ओर से कोई रोक नहीं है। स्वयं यूक्रेन ने ही सुमद्री तट क्षेत्र में बारूदी सुरंग बिछा रखी है, जिस कारण जलयानों का आवागमन ठप है। बाली (इंडोनेशिया) में आयोजित प्रमुख अर्थव्यवस्था वाले देशों के संगठन जी-20 की बैठक में भी यूक्रेन युद्ध से जुड़े खाद्य संकट की चर्चा हुई। जी-20 शिखर वार्ता के कुछ महीने पूर्व हुई विदेश मंत्रियों की इस बैठक में परस्पर गुटों के विदेश मंत्रियों ने भाग लिया। अमेरिका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन और रूस के विदेश मंत्री सग्रेई लावरोव एक कक्ष में मौजूद रहे, हालांकि दोनों ने एक दूसरे की मौजूदगी को नजरअंदाज किया। इस बैठक के बाद न तो विदेश मंत्रियों का कोई ग्रुप फोटोग्राफ हुआ और न ही कोई संयुक्त वक्तव्य ही जारी हुआ।

इससे जाहिर है कि यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस और अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के बीच तकरार और तनाव जल्द खत्म होने वाला नहीं है। वैसे इस बैठक का आयोजन रूस के लिए इस दृष्टि से संतोषजनक रहा कि उसे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अलग-थलग करने की अमेरिका की कोशिश नाकाम रही। रूस के विदेश मंत्री सग्रेई लावरोव ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर सहित अनेक देशों के विदेश मंत्रियों से मुलाकात और वार्ता की। बैठक के बाद सबसे महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच मुलाकात का था। यह मुलाकात नाटो सैन्य संगठन की मैड्रिड (स्पेन) में आयोजित बैठक के बाद हुई थी। मैड्रिड बैठक में नाटो ने पहली बार चीन को एक चुनौती के रूप में इंगित किया है। लेकिन यूक्रेन युद्ध के कारण अमेरिका सहित पश्चिमी देश उस दुविधा के शिकार हैं कि उनकी प्राथमिकता यूरोप हो या हिंद प्रशांत क्षेत्र। फिलहाल पश्चिमी देशों ने यूक्रेन पर जिस तरह का भारी दांव लगा रखा है, उसके कारण हिंद प्रशांत क्षेत्र पीछे छूट गया है।
अमेरिका के लिए चीन भारी चुनौती है। जबकि यूक्रेन में रूस की सैनिक कार्रवाई वर्तमान में सबसे बड़ी चुनौती है। यूक्रेन में यदि रूस अपने सैनिक लक्ष्यों को हासिल करता है तो ये अमेरिका के लिए वियतनाम और अफगानिस्तान से भी बड़ी हार होगी। यूरोप और कथित लोकतांत्रिक देशों में अमेरिका की साख को गहरा धक्का लगेगा। यही कारण है कि अमेरिका की रणनीति है कि रूस के विरुद्ध यूक्रेन युद्ध जीते। इतना ही नहीं रूस इतना कमजोर हो जाए कि उसकी सैनिक और आर्थिक स्थिति जर्जर हो जाए। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अमेरिका चीन और भारत का सक्रिय सहयोग चाहता है। ब्लिंकन और वांग यी के बीच वार्ता में अमेरिका ने इस बात पर जोर दिया कि वह रूस की मदद न करे। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन में विशेष सैनिक अभियान शुरू करने के पहले चीन के साथ अपनी साझेदारी को पुख्ता बनाया था। अमेरिका इस साझेदारी को कमजोर बनाना चाहता है ताकि रूस की घेरेबंदी को मजबूत किया जा सके। अमेरिका की ओर से कुछ सीमा तक भारत पर भी ऐसा ही दबाव बनाया जा रहा है।
भारत ने इस बात को नजरअंदाज करते हुए रूस से कच्चे तेल की खरीद जारी रखी है। साथ ही भारत-ईरान-रूस के बहुआयामी परिवहन कॉरिडोर के माध्यम से माल ढुलाई का काम शुरू हुआ है। राष्ट्रपति पुतिन उन कॉरिडोर को मध्य एशिया और यूरोप में आर्थिक गतिविधियों को व्यापक बनाने का माध्यम मानते हैं। इसे भारत और ईरान का सक्रिय समर्थन हासिल है।

डॉ. दिलीप चौबे


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