चढ़ा दो नूपुर को फांसी पर
झल्लन बोला, ‘ददाजू, आप हमें प्यार-मोहब्बत, शांति-सद्भाव, सहयोग-भाईचारे की इतनी बातें समझाते हैं पर हम समझते-समझते भी ज्यादा नहीं समझ पाते हैं।
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हमारे भीतर का डर गहरा होता जा रहा है और सोचते-सोचते हमारे दिमाग का संतुलन खोता जा रहा है।’ हमने कहा, ‘हम जितना समझते हैं उतना ही समझाएंगे और जिसे समझा सकते हैं उसे ही समझाएंगे। बाकी तो हमें मालूम हैं कि प्यार-मोहब्बत के संदेश न इस जमात को पच पाएंगे न उस जमात को पच पाएंगे, नफरत के पैरोकार अपना रंग जरूर दिखाएंगे। रही तेरे डर की बात, तो तू तो न जाने कब से डर रहा है पर ये बता क्या कोई नया डर फिर तेरे भीतर घर कर रहा है?’ झल्लन बोला, ‘हमारा डर तो नया नहीं है पर इस बार हमारे डर की सूरत नयी और ज्यादा डरावनी है, डर के साथ-साथ बहुत घिनावनी है।’ हमने कहा, ’अब तू अपनी रौ में ही बहता जाएगा या आगे भी हमें कुछ बताएगा।’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, हम बहुत कोशिश किये कि दिमाग से निकाल दें पर निकाल नहीं पा रहे हैं, निरीह कन्हैया और उसके डरावने हत्यारों के चेहरे बार-बार हमारी आंखों के आगे आ रहे हैं।’ हमने कहा, ‘तू काहे इसे एक आम घटना की तरह नहीं ले रहा है और काहे अपने दिमाग पर इतना जोर दे रहा है। ऐसी घटनाएं सदियों से होती आ रही हैं, होती रहेंगी और ये हमारे रोके नहीं रुकेंगी। सो, इस घटना में ऐसा क्या है जो तुझे इतना ज्यादा डरा रहा है और जो तेरे दिमाग से निकल नहीं पा रहा है?’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, हत्याएं तो पूरी दुनिया में आम हैं, हर जगह होती हैं, कभी छोटी बात पर होती हैं, कभी बड़ी बात पर होती हैं लेकिन कन्हैया की हत्या जिस तर्ज पर की गयी वह रूह कंपाने वाली थी, इंसानियत से भरोसा डिगाने वाली थी। क्या इस्लाम सचमुच ऐसा सिखाता है कि जो मोहम्मद की शान में गुस्ताखी करे उसे न गोली मारी जाये, न फांसी पर लटकाया जाये बल्कि हाथ में छुरा लिया जाये और गर्दन रेत दी जाये।’
हमने कहा, ‘देख झल्लन, इस्लाम बहुत कुछ अच्छा सिखाता है लेकिन इस्लाम में एक डरावना कट्टरपंथ भी है जो सिखाता है कि मुल्लाओं को गलत लगने वाली किसी भी बात को पैगम्बर साहब की शान में गुस्ताखी माना जाये और ऐसा करने वाले का सर कलम कर मौत के घाट उतारा जाये। हाल में कन्हैया के साथ-साथ उमेश के साथ भी यही किया गया और कुछ दिन पहले कमलेश तिवारी को भी इसी तरह मौत के घाट उतारा गया। तो यह तो होता रहेगा और कानून अपना काम करता रहेगा।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, हमें हत्या नहीं हत्यारों का मुस्कुराता चेहरा, कानून को खुली चुनौती देने का उनका अंदाज, अपने क्रूर हत्याकांड का वीडियो बनाकर अपनी बहादुरी दिखाने का उनका आत्मविश्वास और किसी भी तरह के पछतावे से दूर बहुत ही ‘जायज’ काम कर डालने की उनकी शहीदाना खुशी, ये सब ही हमें बुरी तरह डरा रहे हैं और इंसानियत से हमारे भरोसे को हिला रहे हैं। और दूसरी बात ये ददाजू कि इस घटना ने बहुत से हिंदुओं के मन में डर पैदा कर दिया है तो बहुतों के दिलों को इस्लाम के प्रति नफरत से भर दिया है।’
हमने कहा, ‘हम तेरी बात से सहमत हैं झल्लन, पर मेरे-तेरे जैसों के आगे यही तो सवाल है कि नफरत की इस खाई को कैसे पाटा जाये और लोगों में प्यार-मोहब्बत का संदेा कैसे बांटा जाये? पर जब हमें कुछ नहीं सूझता है तो सोचते हैं कि चुप रहा जाये और जो हो रहा है उसे चुपचाप होने दिया जाये।’ झल्लन बोला, ‘कैसी बातें करते हो ददाजू, इस्लामी कट्टरता 9/11 से लेकर 26/11 तक पूरी दुनिया को कई बार हिला चुकी है, बड़ों-बड़ों के झंडे झुका चुकी है, इराक से लेकर अफगानिस्तान तक अपनी ताकत दिखा चुकी है। तो ऐसी सूरत में हमारा ये निरीह भारत इस्लामी कट्टरता का क्या कर पाएगा जितना इससे टकराने की कोशिश करेगा उतना ही मात खाएगा। सो हम चाहते हैं कि कट्टरता का यह फैलाव यहीं रुकजाये और हमारा रहा-बचा, कटा-फटा विभाजित मुल्क फिर से कटने-फटने और बंटने से बच जाये और इसके लिए नूपुर शर्मा का कुछ न कुछ जरूर हो जाये।’
हमने कहा, ‘देख झल्लन, दोषी तो उस चैनल को भी माना जाना चाहिए जो हिंदू-मुसलमान को सामने बिठाकर भिड़वा रहा था, मुसलमान के मुंह से भी अनाप-शनाप निकलवा रहा था, उकसा रहा था और जुबानी जंग लड़वा रहा था। जिसने गलत प्रतिक्रिया दी सिर्फ उसे ही क्यों दोषी माना जाये, जिन्होंने गलत प्रतिक्रिया को पैदा कराया उन्हें भी तो अपराधी ठहराया जाये।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, कौन अपराधी है कौन नहीं यह हमें नहीं मालूम पर हम इतना जरूर जानते हैं कि हिंदुस्तान में इस्लामी कट्टरता की जड़ नूपूर शर्मा है पर फिर भी हम चाहते हैं कि कोई बर्बर तरीके से उसका गला न काट पाये, कोई गला काटने की कोशिश करे इससे पहले ही उसे लोकतांत्रिक तरीके से फांसी दे दी जाये। हो सकता है इससे मौलानाओं की गला काट धमकियां रुक जायें और बहुत से लोगों के गले कटने से बच जायें।’
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