मुद्दा : पुलिस की मजबूरी

Last Updated 08 Jul 2022 12:50:36 AM IST

हाल ही में हुई दो पत्रकारों की गिरफ्तारी को लेकर पुलिस की कार्यशैली पर एक बार फिर से सवाल उठने लगे हैं।


मुद्दा : पुलिस की मजबूरी

ताजा मामला एक राष्ट्रीय टीवी चैनल के एंकर की गिरफ्तारी से संबंधित है। इस घटना में जिस तरह दो राज्यों की पुलिस इस एंकर की गिरफ्तारी को लेकर आपस में भिड़ी है वो नई बात नहीं है। कुछ हफ्तों पहले भी ऐसा कुछ हुआ था जब एक राजनैतिक पार्टी के प्रवक्ता की गिरफ्तारी के समय पंजाब, दिल्ली और हरियाणा की पुलिस आपस में उलझ गई थी। जब कभी ऐसी परिस्थिति पैदा होती है पुलिस अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठते आए हैं।
न्यूज एंकर रोहित रंजन की गिरफ्तारी के समय हुई घटना के तथ्यों को देखें। छत्तीसगढ़ पुलिस के पास उन्हें पूछताछ के लिए ले जाने वाला एक वारंट था, जिसका वो पालन कर रहे थे। छत्तीसगढ़ पुलिस का आरोप है कि नोएडा पुलिस ने उस वारंट को अनदेखा कर रोहित को अपनी हिरासत में ले लिया। नोएडा पुलिस ने ऐसा एक दूसरी शिकायत के आधार पर किया। गौरतलब है कि नोएडा पुलिस को रोहित के खिलाफशिकायत देने वाला और कोई नहीं बल्कि वही न्यूज चैनल है, जहां रोहित बतौर एंकर काम करते हैं। जब उसी चैनल को अपनी गलती का एहसास हुआ तब उन्होंने अपने चैनल पर न सिर्फ गलती की माफी मांगी बल्कि उस कार्यक्रम के दो निर्माताओं को भी इस गलती के लिए निलम्बित कर दिया। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि न्यूज एंकर तो केवल लिखी हुई स्क्रिप्ट पढ़ते हैं। प्राय: अपनी तरफ से नहीं बोलते। एक शिकायत पर इस नोएडा पुलिस की तत्परता पर कई सवाल उठते हैं। आमतौर पर जब तक कोई संगीन आरोप न हो और पुलिस को लिखित शिकायत न मिले तो पुलिस गिरफ्तारी से पहले आरोपी को संदेश देकर जांच में सहयोग करने के लिए बुलाती है। यदि जांच में यह पाया जाता है कि आरोपी पर लगाए गए आरोप सही हैं तब उसकी गिरफ्तारी कर ली जाती है। उसे जमानत मिलेगी या नहीं वो आरोपी पर लगी धाराओं पर निर्भर करता है।

एक राजनीतिक पार्टी के प्रवक्ता के बयान पर पंजाब, दिल्ली और हरियाणा पुलिस के बीच हुई रस्साकशी में जो बवाल हुआ वो कोर्ट के दखल के बाद ही सुलझा। वहीं देखा जाए तो सोशल मीडिया में चलने वाली खबरों के ‘फैक्ट चेकर’ मोहम्मद जुबैर की जब 4 साल पुराने ट्वीट को लेकर गिरफ्तारी हुई तो दिल्ली पुलिस के काम में दूसरे राज्य की पुलिस ने कोई दखल नहीं दिया। ये बात अलग है कि जुबैर के खिलाफ शिकायत करने वाला ट्वीटर हैंडल, इस गिरफ्तारी के बाद रहस्यमयी ढंग से डिलीट कर दिया गया। पुलिस की मुस्तैदी से अपराध रोकने में हमेशा मदद मिलती है। परंतु जब मुस्तैदी सही समय पर न हो तो इस पर पुलिस को कई तरह के सवालों का सामना करना पड़ता है। परंतु पुलिस हर मामले में ऐसी ही मुस्तैदी दिखाती हो प्राय: ऐसा देखने में नहीं आता। मिसाल के तौर पर नोएडा के एक व्यापारिक समूह पर कई निवेशकों के साथ धोखाधड़ी के आरोप के चलते नॉएडा फेज 1 के थाने के अंतर्गत एफआईआर संख्या 0047/2022 गत 23 फरवरी 2022 को दर्ज हुई थी। यह एफर्आआर शरद अरोड़ा और 12 अन्य व्यक्तियों के खिलाफ आईपीसी की 8 संगीन धाराओं में दर्ज कराई गई थी। फिलहाल ये मामला नोएडा क्राइम ब्रांच के पास लंबित है। एफआइआर पढ़ने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि आरोपी शरद अरोड़ा की कंपनी ने करोड़ों रुपये का गबन करके कई कंपनियों को धोखा दिया है। एफआईआर के अनुसार अरोड़ा ने अपनी कंपनी में होने वाली बोर्ड मीटिंग के दस्तावेजों को भी जालसाजी कर, फर्जी बोर्ड मीटिंग होना दिखाया है। इस पर आरोप है कि इनकी कंपनी ने फर्जीवाड़ा कर निवेशकों के करोड़ों रु पयों को गैरकानूनी तरीकेसे कंपनी से निकाल लिया। इस एफआईआर के खिलाफ जमानत लेने के लिए इन 13 आरोपियों में से एक आरोपी ने नॉएडा कोर्ट में अर्जी लगाई जिसे कोर्ट ने 25 अप्रैल 2022 को रद्द कर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में इन आरोपियों को जांच में सहयोग करने के आदेश भी दिए।
इतना ही नहीं मुख्य आरोपी शरद अरोड़ा ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इस एफआईआर को रद्द करने की याचिका भी दाखिल की, जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 12 अप्रेल 2022 को अपने आदेश द्वारा रद्द कर दिया। कोर्ट के आदेश स्थानीय पुलिस को न मिले हों ऐसा हो नहीं सकता। क्योंकि जब भी कोई मामला अदालत के समक्ष जाता है तो दोनों पक्षों को सुना जाता है। एक ओर कुछ ही घंटों पहले दी गई तहरीर के आधार पर आनन-फानन में तथ्यों से छेड़छाड़ के आरोप पर न्यूज एंकर को उत्तर प्रदेश पुलिस गिरफ्तार कर लेती है। वहीं करोड़ों की धोखाधड़ी के आरोपी अरोड़ा परिवार और उनके सहयोगियों को पुलिस किस मजबूरी या दबाव के चलते पिछले पांच महीनों से गिरफ्तार नहीं कर पा रही? ये एक गंभीर सवाल है। इसलिए कहना पड़ता है कि कभी-कभी पुलिस अपने ही गलत कारनामों से विवादों में रहती है।

रजनीश कपूर


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