नीरज चोपड़ा- ऋषभ पंत : आसमान छूने की चाहत
ओलंपिक चैंपियन नीरज चोपड़ा और चमत्कारी क्रिकेटर ऋषभ पंत उस भारत की नुमाइंदगी करते हैं, जो विश्वास से लबरेज है।
![]() नीरज चोपड़ा- ऋषभ पंत : आसमान छूने की चाहत |
वे अपने हिस्से का आसमान छू लेना चाहते हैं। दोनों अपने विरोधी खिलाड़ियों की आंख में आंख डालकर खेलना जानते हैं। ऋषभ तो बचपन से मेरे द्वारा स्थापित दि इंडियन पब्लिक स्कूल, देहरादून से ही 100 प्रतिशत स्कॉलरशिप पर पढ़ा है, और उसने टेस्ट क्रिकेटर बनने का सपना मेरे यहां रहकर ही देखा है। अत: मैं जानता हूं कि असमान छू लेने वाले खिलाड़ियों का जज्बा कैसा होता है। पिछले साल टोक्यो ओलंपिक खेलों की भाला फेंक स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीतने वाले नीरज चोपड़ा को पूरा यकीन है कि इस साल के अंत तक जेवलिन थ्रो में 90 मीटर की दूरी तय कर लेंगे। उनकी प्रैक्टिस में सुधार लगातार जारी है।
रुड़की में पैदा हुए और देहरादून के इंडियन पब्लिक स्कूल में पढ़े ऋषभ पंत ने चालू भारत-इंग्लैंड सीरीज के पहले ही दिन अपने टेस्ट कॅरियर का 5वां शतक जड़ा। मेजबान टीम के गेंदबाजों की कसकर कुटाई की। हर बार की तरह से बेखौफ बल्लेबाजी करते रहे। क्रिकेट के कई ज्ञानी समीक्षक उन्हें समझाते हैं कि वे किस तरह से खेलें पर पंत का अपना अलग स्टाइल है। वे दिल से खेलते हैं, दिमाग से नहीं। बड़े से बड़े गेंदबाज की सबसे बेहतर गेंद पर भी छक्का मारने की क्षमता रखते हैं। यह आत्मविश्वास उन्होंने अपने देहरादून स्कूल के ध्यानचंद ग्राउंड पर देसी गायों का दूध पीकर विकसित किया है।
दरअसल, नीरज चोपड़ा और पंत का संबध छोटे शहरों से है। नीरज हरियाणा के पानीपत के सामान्य से गांव से आते हैं। उस गांव में खेल का मैदान तक नहीं है। उन्हें आगे बढ़ने का मौका तब मिला जब वे अपने गांव से बाहर निकले। उन्हें सरकार और निजी क्षेत्र ने हर संभव मदद दी। उधर, पंत रु ड़की से अंडर-13 एसपी सिन्हा टूर्नामेंट में भाग लेने मेरे देहरादून कैम्पस आया और उसे स्कूल ने 100% स्कॉलरशिप देकर यहीं रख लिया। यहां से दसवीं बोर्ड पासकर उसने क्रिकेट की बारीकियों को संवारने के लिए दिल्ली का रु ख किया। वे दिल्ली में खेलने के लिए मंदिरों-गुरुद्वारों में रात गुजारने लगे। देखिए कि अगर धीरे-धीरे भारत खेल के मैदान में जगह बना रहा है तो उसका कुछ श्रेय तो निजी क्षेत्र को भी देना होगा। नीरज और पंत सिद्ध करते हैं कि प्रतिभा बड़े शहरों की गुलाम नहीं है।
नीरज के जेवलिन थ्रो को 90 मीटर की दूरी तक फेंकने संबंधी दावे को सही परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है। जेवलिन थ्रो में 90 मीटर अहम मानक माना जाता है, और लगातार इस दूरी तक जेवलिन फेंकने वाले खिलाड़ियों की संख्या काफी कम है। कहते ही हैं कि अगर आप कोई सपना देखोगे तो उसे पूरा भी कर लोगे। हां, कड़ी मेहनत तो करनी ही होगी।
पंत मूल रूप से बिग मैच प्लेयर बनकर उभरे हैं। बोल्ट, डिएगो माराडोना, पेले, लारा, राहुल द्रविड़, सचिन तेंदुलकर बिग मैच प्लेयर रहे हैं। ये उन मैचों में छा जाते हैं, जो मैच अपने आप में खास होते हैं। माराडोना पक्के बिग मैच प्लेयर थे। बड़े और अहम मैचों में छा जाते थे तो उनका जलवा देखते ही बनता था। बड़े खिलाड़ी का यही सबसे बड़ा गुण होता है कि वे खास मैचों या विपरीत हालात में भी पूरे मैच में छा जाता है। माराडोना छोटी-कमजोर टीमों के खिलाफ अपने जौहर नहीं दिखा पाते थे।
अगर बात फिर से नीरज की करें तो उनकी बॉडी लैंग्वेज को देखकर ही समझ आ जाता है कि वे भीड़ का हिस्सा नहीं हैं। याद करें जब उन्होंने टोक्यो में अपनी स्पर्धा के फाइनल में जेवलिन हाथ में लिया तब उनके चेहरे के भावों को पढ़ा जा सकता था। साफ लग रहा था कि वे देश की झोली में कोई मेडल तो अवश्य डालेंगे पर उन्होंने तो देश को सोना देकर आनंदित कर दिया था। खेलों की जननी मानी जाती है एथलेटिक्स। उसमें भारत के हिस्से में ओलंपिक खेलों में कभी कोई शानदार सफलता नहीं आई थी। हम मिल्खा सिंह, पीटी उषा, जीएस रंधावा तथा श्रीराम सिंह के ओलंपिक खेलों में ठीक-ठाक प्रदशर्न को याद करके खुश हो जाते थे। पर भारत को अभी नीरज चोपड़ा और पंत जैसे विश्वास से लबरेज सैकड़ों खिलाड़ियों की दरकार है। किसी भी देश का विकास इस बात से साबित होता है कि वहां खेलों की दुनिया में किस तरह की उपलब्धियां अर्जित की जा रही हैं।
कहीं नीरज और ऋषभ की उपलब्धियों के आगे नेपथ्य में न चली जाए भारत की पुरुष बैडमिंटन टीम की हालिया इतिहास रचना। आप जानते हैं कि भारत ने थामस कप के फाइनल में 14 बार के चैंपियन इंडोनेशिया को 3-0 के अंतर से हराकर यह उपलब्धि हासिल की। लक्ष्य सेन, के. श्रीकांत, सात्विक साईराज और चिराग शेट्टी ने भारत को थामस कप जितवाया जिसे बैडमिंटन की विश्व चैंपियनशिप माना जाता है। थामस कप में विजय से पहले भारत के बैडमिंटन सेंसेशन लक्ष्य सेन ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंच गए थे।
और अंत में बात भारतीय मुक्केबाज निखत जरीन की। जरीन कुछ समय पहले इस्तांबुल में महिला विश्व चैंपियनशिप के फ्लाइवेट (52 किग्रा) वर्ग के एकतरफा फाइनल में थाईलैंड की जिटपोंग जुटामस को 5-0 से हराकर विश्व चैंपियन बनीं। तेलंगाना की मुक्केबाज जरीन ने टूर्नामेंट के दौरान प्रतिद्वंद्वियों पर दबदबा बनाए रखा और फाइनल में थाईलैंड की खिलाड़ी को सर्वसम्मत फैसले से हराया। इस जीत के साथ जरीन विश्व चैंपियन बनने वाली पांचवीं भारतीय महिला मुक्केबाज बनीं। छह बार की चैंपियन एमसी मैरीकोम (2002, 2005, 2006, 2008, 2010 और 2018), सरिता देवी (2006), जेनी आरएल (2006) और लेखा केसी इससे पहले विश्व खिताब जीत चुकी हैं। तो बात यह है कि भारतीय खिलाड़ी एकल और टीम खेलों में भारत का नाम रोशन कर रहे हैं। उनको जीत का स्वाद रास आने लगा है। अब उन्हें आगे से कोई रोक नहीं सकता।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)
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