पर्यावरण : गौरा देवी का संदेश देते युवा

Last Updated 07 Jul 2022 01:28:40 AM IST

चिपको आंदोलन की चर्चित महिला नेत्री गौरा देवी ने 1974 में अपने गांव के जंगल का व्यवसायिक दोहन रुकवाया था।


पर्यावरण : गौरा देवी का संदेश देते युवा

उस समय वह पहली महिला थी, जिसने अपने रैणी गांव की दर्जन भर से अधिक महिलाओं का नेतृत्व करके सरकारी नीति से काटे जा रहे बहुमूल्य प्रजाति के पेड़ों को बचाया था। वनों के संरक्षण के लिए उनका यह अहम योगदान दुनियाभर के लोग आज भी आदर्श उदाहरण के रूप में याद करते हैं।
लेकिन चमोली जिले में उनके जन्म और कर्मक्षेत्र में भी 25 वर्षो से गौरा देवी पर्यावरण एवं प्रकृति पर्यटन मेले के रूप में उन्हें याद किया जा रहा है। जून के प्रथम सप्ताह में लगने वाले इस मेले में हजारों महिलाएं एकत्रित होकर वन एवं पर्यावरण की रक्षा का संदेश देती हैं। छात्र-छात्राएं पर्यावरण के विषय पर प्रतियोगिताएं करते हैं, जिनमें गढ़वाली और हिंदी भाषा के लोकगीत, लोकनृत्य, संगीत, नाटक आदि प्रस्तुत किए जाते हैं। मेले में वन एवं कृषि उत्पादों की प्रदशर्नी लगाई जाती हैं। घर-घर पकने वाली खाद्य सामग्री के स्टॉल मेले मे सजे रहते हैं, जिनमें मेले में बाहर से  पहुंचे लोग यहां के विविध व्यंजनों का आनंद उठाते हैं। सरकारी विभागों द्वारा भी किसानों के लिए प्रदशर्नी लगाई जाती हैं,  और उनके द्वारा प्रकाशित साहित्य, पर्चे, पोस्टर आदि उपलब्ध करवाए जाते हैं। सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्र में स्वास्थ्य के काम में लगे कार्यकर्ता और डॉक्टर मेले में लोगों की स्वास्थ्य जांच करने के लिए पहुंचते हैं। स्वच्छ भारत अभियान और जैविक-अजैविक कचरे का प्रबंधन कैसे हो? इस पर भी कार्यक्रम और प्रदशर्नी लगाई जाती है।  महिलाएं रंग-बिरंगे परिधानों में गढ़वाली लोक नृत्य प्रस्तुत करती हैं। दो तीन दिन तक चलने वाले मेले में गौरा देवी के कार्यों पर चर्चा होती हैं। क्षेत्रीय विधायक और पंचायत प्रतिनिधि अपने कार्यों का विवरण जनता के सामने रखते हैं। स्थानीय लोगों की मांग के अनुसार अपने द्वारा भविष्य में किए जाने वाले कार्यों की घोषणाएं भी करते हैं।

यहां उर्गम घाटी में लगने वाले इस मेले की शुरुआत  स्थानीय नौजवानों ने 1998 से प्रारंभ की थी जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मण सिंह नेगी प्रमुख भूमिका निभाते आ रहे हैं। वे 1992 में इंटरमिडियट करने के बाद से ही गौरा देवी के काम को जमीन पर उतारने के प्रयास में जुट गए थे। इस काम के लिए ‘जनदेश’ नामक संगठन बनाया जिसमें कई नौजवान शामिल हुए। सबने साथ मिलकर गांव-गांव में पदयात्राएं कीं। फलस्वरूप क्षेत्र के सामाजिक व राजनैतिक, दोनों तरह के लोग जुड़कर साथ काम करने लगे। पिलखी गांव में गौरा देवी के नाम पर ‘वन’ बनाया गया, जिसमें दर्जन भर प्रजातियों के वृक्ष फल-फूल रहे हैं। इसी सीख को आगे ले जाकर आसपास के आधा दर्जन गांवों में भी महिला संगठनों ने अपना जंगल पाला है,  जहां से घास, लकड़ी, पानी मिल रहा है। पर्यावरण सुधार और आजीविका संरक्षण के काम में जुटे इन युवकों में अधिकांश गांव के प्रधान, ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत सदस्य भी निर्वाचित हुए हैं, जिनके द्वारा उर्गम घाटी में रोड नेटवर्क, बिजली ,पानी की आपूर्ति और इको टूरिज्म के विषय पर मिलकर काम किया जा रहा है। गौरा देवी की स्मृति में हर वर्ष जो मेला लग रहा है,  उसमें गौरा देवी स्मृति सम्मान भी उन लोगों को दिया जा रहा है, जो पर्यावरण के क्षेत्र में अहम भूमिका निभा रहे हैं। काबिले गौर है कि गौरा देवी सम्मान को देने वाले मौजूदा नवयुवकों ने भले ही गौरा देवी को नहीं देखा है, लेकिन जब वे उनके विषय में बोलते हैं, तो बाहर से आने वालों को भी गौरा देवी की सच्ची कहानी सुनने को मिलती है। मेले की विशेषता यह भी है कि उपस्थित जन समूह के लिए सामूहिक भोजन की व्यवस्था रहती हैं, जहां सभी वगरे के लोग साथ भोजन करके सामाजिक समरसता का उदाहरण पेश करते हैं।
उर्गम घाटी मध्य हिमालय की एक खूबसूरत जगह है, जहां से नंदीकुंड, वंशीनारायण, मदमहेर, रु द्रनाथ आदि पर्वत मालाओं तक पहुंचने का ट्रैकिंग रूट हैं। सोना शिखर ग्लेशियर से आ रही कल्पगंगा हेलंग के पास पवित्र अलकनंदा में मिलती हैं। इसी के किनारे से बने हुए रास्ते से होकर साहसिक एवं पर्वतारोही दल उच्च पर्वत शिखरों तक पहुंचते हैं। इसको ध्यान में रखकर 2002 में जनदेश संगठन ने स्थानीय युवकों को रोजगार देने के लिए इको टूरिज्म का प्रशिक्षण भी दिलाया था। फलरूस्वरूप यहां के दर्जनों लोगों की रोजी-रोटी चल रही है, और वे यहां पर आ रहे सैंकड़ों पर्यटकों को रास्ता दिखा रहे हैं। यह एक उदाहरण है कि यहां के युवकों ने मिलकर विकास, पर्यावरण, पर्यटन और रोजगार के बीच एक सृजनात्मक संबंध को मजबूत करने के लिए गौरा देवी की स्मृति में पर्यावरण एवं प्रकृति पर्यटन जैसे अहम विषय को मजबूती देने के लिए युवक एक दूसरे का हाथ थामकर गौरा देवी की राह पर अग्रसर हैं।
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं)

सुरेश भाई


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