सामयिक : कतर और भारत का इस्लाम

Last Updated 15 Jun 2022 01:55:08 AM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2016 में अपनी कतर यात्रा में भारतीय कामगारों से मुखातिब होते हुए कहा था, ‘मुझे बड़ी खुशी होती है कि विदेशों में भारतीयों का सम्मान उनके काम के साथ आचरण और व्यवहार से बढ़ जाता है, और यह बात स्वयं कई राष्ट्र अध्यक्ष उनसे बताते हैं।’


सामयिक : कतर और भारत का इस्लाम

दरअसल, पैगम्बर मोहम्मद पर नूपुर शर्मा की एक टीवी डिबेट के दौरान कथित टिप्पणी को लेकर इस्लामिक देशों की जो प्रतिक्रिया सामने आई है, वह हैरान करने वाली है। धार्मिंक आजादी को लेकर भारत पर कभी सवाल खड़े नहीं किए जा सकते और किसी एक शख्स के विचार किसी भी सूरत में राष्ट्रीय विचारों या नीतियों को प्रतिबिम्बित नहीं कर सकते।
लोकतांत्रिक भारत में इस्लाम के मूल्यों और परंपराओं की तुलना राजशाही से अभिशप्त खाड़ी के देशों से तो की ही नहीं जा सकती। पैगम्बर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं को सामने रखकर भारत के बहिष्कार की अपील करने वाले इस्लामिक देश कतर के बारे में जानना बेहद जरूरी है। इस्लामिक दुनिया में शिया-सुन्नी विवाद को हवा देकर आतंक फैलाने के लिए खाड़ी के देशों में कतर बेहद बदनाम रहा है। पैगम्बर मोहम्मद की समावेशी विचारधारा के अनुरूप कतर को लोकतांत्रिक देश होना चाहिए। लेकिन कतर अल-थानी खानदान की विरासत समझा जाता है, जहां इस खानदान का कतर पर पूरी तरह से कब्जा है। मोहम्मद साहब के सादगीपूर्ण जीवन से इतर कतर की मूल आबादी बेहद आधुनिक जीवन जीती है। लंदन में अल-थानी खानदान के पास महारानी एलिजाबेथ द्वितीय से ज्यादा दौलत है। दुनिया में दहशत फैलाने वाले हमास, मुस्लिम ब्रदरहुड, अल कायदा, इस्लामिक स्टेट से लेकर कई आतंकी समूहों को मदद देने के लिए कतर इतना बदनाम रहा है कि इस देश से सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र और बहरीन जैसे देश अपने राजनयिक संबंध तोड़ चुके हैं। कतर से संचालित अल-जजीरा चैनल इस्लामिक चरमपंथी हमलों को लाइव दिखाने को लेकर चर्चित रहा है। माना जाता है कि अमेरिका की शह पर संचालित इस चैनल ने इस्लाम की छवि को गहरा नुकसान पहुंचाया है। कतर की अपनी कोई सेना नहीं है, और यहां पर अमेरिका के सैन्य अड्डे हैं। अमेरिका इस्लामिक दुनिया को रक्तरंजित करने के लिए कतर का खूब इस्तेमाल करता है। अफगानिस्तान को तालिबान के हवाले कर अमेरिका के वहां से लौट जाने के पीछे भी कतर की भूमिका अहम मानी जाती है।

इस्लाम धर्म की मान्यताओं में मानवता की रक्षा और समानता का प्रमुख स्थान है। ऐसे में कतर में काम करने वाले अन्य देशों से आने वाले मुस्लिम कामगारों के बारे में जानना भी बेहद जरूरी है। कतर के आधुनिकीकरण के लिए काम करने वाले अधिकांश मजदूर भारत से हैं, और इनमें सबसे ज्यादा मुस्लिम ही हैं। मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल का आरोप है कि कतर में निर्माण कार्यों में लगे मजदूरों को अक्सर मजदूरी न दिए जाने, खतरनाक स्थितियों में काम कराए जाने और घटिया आवास जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। मजदूरों को कतर की गर्मी की बेहद तपते दिनों मे भी सप्ताह में एक दिन की भी छुट्टी नहीं मिलती। 2014 में एक रिपोर्ट आई थी जिसके अनुसार उस दौरान महज 1000 दिनों में 500 भारतीय मजदूरों की मौत हो गई थी, जिनमें अधिकांश मुसलमान थे।
भारत में रहने वाले मुसलमानों से तुलना की जाए तो कतर में रहने वाले मुसलमान महज उसका एक फीसद भी नहीं हैं। गैस संसाधनों से समृद्ध कतर दुनिया का सबसे धनी देश है, इसकी औसत प्रति व्यक्ति आय एक लाख डॉलर है, जो दुनिया में सर्वाधिक है। इस्लाम में सामूहिक परिवारों की मान्यता से अलग कतर के माता-पिता अपने बच्चों का ख्याल रखने के लिए भी नौकर का  इंतजाम करते हैं। कतर में करीब 40 फीसद शादियों का अंत तलाक में हो जाता है, काम न करने और आधुनिक जीवन शैली अपनाने के कारण यहां के दो तिहाई वयस्क और बच्चे मोटापे की चपेट में हैं। मोहम्मद साहब की मान्यताओं के अनुसार बिना मेहनत के रोटी खाना हराम है। वहीं कतर के लोगों को मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य, नौकरी की गारंटी, घर बनाने के लिए अनुदान और यहां तक कि पानी और बिजली भी मुफ्त है। कतर के परिवार बिखर रहे हैं। बच्चों की परवरिश फिलीपींस, नेपाल और इंडोनेशिया आदि देशों से आने वाली आया कर रही हैं। इससे यहां की संस्कृति पर खतरा मंडरा रहा है। कतर, सऊदी अरब, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों में राजशाही निजाम हैं, जिसके खिलाफ प्रदशर्न करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती और न ही किसी राजनीतिक दल का इन देशों में गठन ही किया जा सकता है।
भारत में मुसलमान अल्पसंख्यक माने जाते हैं, लेकिन इस्लामिक संस्कृति और मूल्यों को यहां बेहतर तरीके से सहेजा जाता है। राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर देश में मुस्लिम नेताओं की कमी नहीं है। कतर, सऊदी अरब, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात में कोई सामान्य मुस्लिम उच्च पद की कल्पना भी नहीं कर सकता वहीं भारत में सामान्य परिवारों से निकलने वाले मुस्लिम राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश जैसे कई संवैधानिक पदों पर काम करके देश का गौरव बढ़ा चुके हैं। भारत में स्थित दारुल उलूम, देवबंद को इस्लामिक शिक्षा का विश्व में बड़ा केंद्र माना जाता रहा है। वह भारत में अब भी वैसे ही काम करता है, जैसा सौ साल पहले करता था। भारत की किसी भी सरकार ने उसे बंद करने की बात कभी नहीं की। दुनिया की सबसे  बड़ी और भव्य जामा मस्जिद भारत में है।
इस्लामिक मूल्यों और आदशरे को लेकर भारत का लोकतांत्रिक समाज ज्यादा सजग है। राजशाही वाले देश कतर, सऊदी अरब, अमीरात जैसे अमीर देश विकासशील देशों में रहने वाले मुस्लिमों की धार्मिंक भावनाएं भड़का कर अपनी धार्मिंक और राजनैतिक महत्त्वाकांक्षाओं  की पूर्ति करते हैं। भारत के विभिन्नताओं वाले समाज में किसी एक शख्स की वैचारिक असहमति का मतलब व्यापक और बहुसंख्यक समाज द्वारा इस्लामिक विरोध कभी नहीं हो सकता। जाहिर है कि भारत की छवि खराब करने वाली वैदेशिक ताकतों का सभी के द्वारा मिलजुल कर मुकाबला किया जाना चाहिए।

डॉ. ब्रह्मदीप अलूने


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